हिंदी जगत में रवींद्र कालिया को एक उपन्यासकार-कहानीकार-संस्मरणकार के साथ ही एक संपादक के रूप में जाना जाता है। (क़लम ख़ुद—‘‘जालंधर में पैदा हुआ था ((11 नवंबर, 1938)। (सोलह जमातें) एम.ए. हिंदी, बी.ए. ऑनर्स) वहीं पास की पहला प्रेम (एकदम असफ़ल) तथा पहली नौकरी (हिंदी मिलाप वहीं की। (पहली कहानी (सिर्फ़ एक दिन) यहीं लिखी। मोहन राकेश, इंद्रनाथ मदान, उपेंद्रनाथ ‘अश्क’, नागार्जुन, यशपाल जी से वहीं परिचय हुआ। आधी-आधी रात तक कुमार विकल, कृष्ण अदीब, सुदर्शन फाक़िर, धनराज, कपिल मलहोत्रा, अग्निहोत्री, प्रवीण शर्मा, सुरेश सेठ, हमदम, शैल के साथ सड़कें नापी हैं, शेर गुनगुनाए हैं, गीत गाए हैं, चिल्लाए हैं। दिल्ली में ‘टी-हाउस’ मेरा घर और ‘ला बोहीम’ मेरी ससुराल थी। एक ओर जगदीश चतुर्वेदी, खोसा, एम.एल. ओबेरॉय, मेनरा, श्याम मोहन, सुरेंद्र प्रकाश, हमदम, सौमित्र, विमल गौड़, शेरजंग गर्ग, प्रयाग, हिमांशु, कश्यप आदि का परिवार था, दूसरी ओर राकेश, कमलेश्वर यादव का संसार या नामवर सिंह, देवीशंकर अवस्थी, श्रीकांत वर्मा, अशोक वाजपेयी, महेंद्र भल्ला, विश्वनाथ त्रिपाठी की दुनिया। मेरा प्रवेश कहीं वर्जित नहीं था। मगर राकेश मेरे लेखन से लगभग नाख़ुश थे। जल्द ही मुझे बंबई का रास्ता दिखा दिया। हाँ उन्होंने प्रतिष्ठ ‘धर्मयुग’ पत्रिका में कार्य किया। सन् 1969 में मैं अकेला इलाहाबाद चला जाया। 1970 में ममता कलिया) भी नौकरी छोड़-छाड़कर आ गई)...”
इलाहाबाद के रानी मंडी मुहल्ले में ‘इलाहाबाद प्रेस’ की स्थापना की। यह जगह साहित्यिक बैठकों का अड्डा बनी रही। ‘विकल्प’, ‘पहल’, ‘आधार’ जैसी पत्र-पत्रिकाएँ यहीं छपती थीं। वर्ष 1993 से 1999 तक वह ‘गंगा-यमुना’ अख़बार के संपादक रहे। इलाहाबाद हमेशा उनके अंदर आबाद बना रहा। उन्होंने अपनी अगली पारी ‘वागर्थ’ संपादक के रूप में कोलकाता में खेली। भारतीय ज्ञानपीठ का निदेशक बनने पर फिर वह दिल्ली आ गए और यहीं बस गए। रवींद्र कालिया ऐसे संपादक के रूप में याद किए जाते हैं जो पाठकों के नब्ज़ को और बाज़ार के तिलिस्म को बख़ूबी समझते थे। उनके संपादन कर्म के साथ उनका लेखन ज़ारी रहा और वह साठोत्तरी पीढ़ी के प्रमुख उपन्यासकार-कथाकार की श्रेणी में रखे जाते हैं। उनकी व्यंग्य रचनाएँ भी पसंद की गई हैं। एक संस्मरणकार के रूप में ‘ग़ालिब छूटी शराब’ उनकी चर्चित कृति रही है। ममता कालिया ने ‘अंदाज़-ए-बयाँ उर्फ़ रवि कथा’ में उन्हें शिद्दत से याद किया है।
प्रमुख कृतियाँ
उपन्यास : ख़ुदा सही सलामत है, ए बी सी डी, 17 रानडे रोड।
कहानी-संग्रह : काला रजिस्टर, नौ साल छोटी पत्नी, गरीबी हटाओ, गली कूंचे, चकैया नीम, सत्ताइस साल की उमर तक, ज़रा सी रोशनी।
संस्मरण : स्मृतियों की जन्मपत्री, कामरेड मोनालिसा, सृजन के सहयात्री, ग़ालिब छूटी शराब।
व्यंग्य-संग्रह : राग मिलावट मालकौंस, नींद क्यों रात भर नहीं आती, तेरा क्या होगा कालिया।
संपादन : मोहन राकेश संचयन, अमरकांत संचयन, वागर्थ, नया ज्ञानोदय, गंगा-जमुना।
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