'गेशे जम्पा' तिब्बती शरणार्थियों की मातृभूमि से दूरी की पीड़ा, राजनैतिक दंश, मानवाधिकार के प्रश्न जहां एक ओर उपन्यास को वैश्विक आवाज बनाते हैं वहीं एक अव्यक्त प्रेम की धारा लगातार अंतरवर्तिनी शक्ति की तरह उपन्यास को एक लय और प्रवाह प्रदान करती है।
जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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