दूसरा न कोई प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने अपने विचारों का जो पुट पाठक के समक्ष पेश किया है उससेे उनकी इस रचना का प्रभाव और सार्थक हो जाता है। अपनी रचना के माध्यम से वैद जी जनता को हकीकत से परिचित कराते हैं।
कृष्ण बलदेव वैद हिंदी के आधुनिक गद्य के एक स्तंभ लेखक हैं। वह कथा, उपन्यास, नाटक, डायरी-लेखन और अनुवाद के क्षेत्र में आजीवन सक्रिय रहे। उनकी असाधारण भाषा की चर्चा अलग से होती है। इसका कारण था : उनके पालन-पोषण का भौगोलिक परिदृश्य। पंजाबी, उर्दू, परिवार का आर्यसमाजी संदर्भ, अँग्रेज़ी का विद्यार्थी होना आदि ने उनकी भाषा को एक आधुनिक परिमार्जन दिया। एक ऐसी भाषा जो आपको कई एक सांस्कृतिक इलाक़ों की सैर करवाती है। भाषा आवयविक रूप से मिश्रित संस्कृति, साझी संस्कृति की अभिव्यक्ति या प्रतिबिंब बन जाती है।
वैद साहब का जन्म डिंगा, पंजाब (पाकिस्तान) में 27 जुलाई 1927 को हुआ। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी में एम.ए. किया और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पी-एच.डी.। वह 1950 से 1966 के बीच हंसराज कॉलेज, दिल्ली और पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में अँग्रेज़ी साहित्य के अध्यापक रहे। 1966 से 1985 के मध्य न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी, अमेरिका और 1968-69 में ब्रेंडाइज यूनिवर्सिटी में उन्होंने अँग्रेज़ी और अमेरिकी-साहित्य का अध्यापन किया। 1985 से 1988 के मध्य वह भारत भवन, भोपाल में ‘निराला सृजनपीठ’ के अध्यक्ष रहे।
6 फ़रवरी 2020 को अमेरिका के न्यूयॉर्क में उनका निधन हुआ।
कहानी-संग्रह : बीच का दरवाज़ा, मेरा दुश्मन, दूसरे किनारे से, लापता, उसके बयान, मेरी प्रिय कहानियाँ, वह और मैं, ख़ामोशी, अलाप, प्रतिनिधि कहानियाँ, लीला, चर्तित कहानियाँ, पिता की परछाइयाँ, दस प्रतिनिधि कहानियाँ, बोधिसत्त्व की बीवी, बदचलन बीवियों का द्वीप, संपूर्ण कहानियाँ (दो जिल्दों में), मेरा दुश्मन, रात की सैर
नाटक : भूख आग है, हमारी बुढ़िया, कीजिए हाय हाय क्यों, सवाल और स्वप्न, परिवार अखाड़ा
समीक्षा : टेक्निक इन दि टेल्ज़ ऑफ़ हेनरी जेम्ज़
अनुवाद : अँग्रेज़ी में—स्टेप्स इन डार्कनेस (उसका बचपन), बिमल इन बाग़ (बिमल उर्फ़ जाएँ तो जाएँ कहाँ), डाइंग अलोन (दूसरा न कोई और दस कहानियाँ), द ब्रोकन मिरर (गुज़रा हुआ ज़माना), सायलेंस (चुनी हुई कहानियाँ।
हिंदी में—गॉडो के इंतज़ार में (सैमुअल बैकेट), आख़िरी खेल (सैमुअल बैकेट), फ़ेड्रा (रासीन), एलिस अजूबों की दुनिया में (लुइस कैरॅल)
अन्य : शिकस्त की आवाज़ (आत्मकथा), ख़्वाब है दीवाने का (डायरी), डुबोया मुझको होने ने (डायरी)
जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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