चौदह फेरे लेने वाली कर्नल पिता की पुत्री अहल्या जन्म लेती है। अलमोड़े में शिक्षा पाती है ऊटी के कान्वेंट में और रहती है पिता की मुँह लगी मल्लिका की छाया में। और एक दिन निर्वासित हिमालय में तपस्यारत माता के प्रबल संस्कारों में सहसा ही विवाह के दो दिन पूर्व वह भाग जाती है, कुमाऊँ अचल में। समूचा उपन्यास विविध प्राणवान चरित्रों, समाज, स्थान तथा परिस्थितियों के बदलते जीवन मूल्यों के बीच से गुजरता है आदि से अंत तक भरपूर रोचक तथा अविस्मरणीय।
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