‘चरसा’शीर्षक संग्रह में भी आत्ममंथन ही प्रमुख हो उठा है। इन कहानियों का विषय निरूपण तत्कालीन सामाजिक परिवेश के अनुरूप ही है। ग्रामीण पृष्ठभूमि पर इनमें चित्रित समस्याओं के कुछ रूप लगभग प्रेमचंदयुगीन समस्याओं का विकसित रूप है। किंतु बाद के संग्रहों की कहानियों का समाज भूमंडलीय प्रभावों के आगोश में हैं।
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