'भीतर बाहर' इस पुस्तक में अनुभव दर्शक के नहीं भोक्ता के हैं। यथार्थ वर्णन कोे साहित्य में परिमार्जित करने वाला जो संवेदना का तंतु है। जिससे बाहर का अनुभव भीतर की आत्मानुभूति बन जाती है, संग्रह की अन्य कहानियों को भी पूरी तरह बाँधे हुए है।
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