'भटको नहीं धनंजय' इस पुस्तक में लेखक ने भटकने की त्रासदी भी भयानक बताया है। भयानकता की दीवार पार करने के बाद भी भटकाव महसूस होता है, ठहराव कहीं नहीं मिलता है इसका कोई समाधान नहीं है।
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