प्रस्तुत उपन्यास में आज भी भारतीय नारी घुटन, तड़प, वेदना, अन्याय, अरक्षा से पीड़ित है और पुरूषों के राज्य में निम्न स्तर के प्राणी के रूप में जीने के लिए विवश है। जीवन की जटिलताओं में दबे-पिसे घरेलू जीवन की विषमताओं का मार्मिक चित्रण उपन्यास में हुआ है।
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