प्रस्तुत पुस्तक आर्यभट्ट की जीवनी पर आधारित रचना है। उन्होनें 23 वर्ष की आयु में 'आर्यभटीय’नामक ग्रन्थ की रचना किया था। जिसका गणित के विकास में अमूल्य योगदान रहा है। विश्व में गणित की यह प्रथम पुस्तक है, जिसमें अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित तथा त्रिकोणमिति का समावेश है। वह नालन्दा विश्वविद्यालय के छात्र थे, जहाँ उन्होंने भू-भ्रमण के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया था। आर्यभट के जीवन का अधिकांश समय केरल परिक्षेत्र में व्यतीत हुआ था, जहाँ उन्होंने पुरातन पंचांग के संशोधन का कार्य किया तथा दो वेधशालाएं स्थापित किया।
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