गोविन्द मिश्र अपनी कहानियों की लोकप्रियता के फेर में कभी नहीं पड़े। स्त्री-पुरुष संबंध; विवाह जैसी सामाजिक संस्थाएँ और स्त्री-व्यक्तित्व के विकास से जुड़ी तमाम समस्याएँ उनकी चिंता के केंद्र में हमेशा से रही हैं। गाँव-कस्बे; नगर-महानगरों की ही नहीं वरन् विदेशी धरती तक की यात्रा कर आते हैं। उनकी रचनाओं में जीवन-संघर्ष की द्वंद्वात्मकता के साथ मनुष्य-मन को आलोकित करती प्रेमानुभूति की अत्यंत सशक्त अभिव्यक्ति हुई है।
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