'अनपढ़ प्रजा' नरेंद्र नीरव द्वारा रचित वनवासी-अंचल की लोक-कथाएँ हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचने के साथ-साथ इन कथाओं का रूप भी बदलता रहता है। कहानियों में अनेक अंतर्कथाएँ तथा अंधविश्वास की घटनाएँ अपने माधुर्य के साथ अभिव्यक्त हैं। जंगल की जिंदगी में यह लोग आभावों और कठिनाइयों के बीच आए खुशियों के लम्हों को कैसे बिना समय व्यर्थ किए उत्साह से महसूस करते हैं इसलिए यह कहानियां बिना नाच-गाने की पूरी ही नहीं होती दिखती। लेखक ने इन्हें कैमूरघाटी के अंचल में तथा मध्यप्रदेश बिहार और उत्तर प्रदेश के विंध्य-क्षेत्र में लिपिबद्ध किया है। यह कहानियाँ मनोरंजन के साथ-साथ वन-जीवन की झांकी प्रस्तुत करने में सफल प्रतीत होती हैं।
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