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खैर, खून, खाँसी, खुसी
खैर, ख़ून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे ना दबैं, जानत सकल जहान॥
रहीम
पर औगुन मुख ना कहैं
पर औगुन मुख ना कहैं, पोषैं पर के प्रान।
बिपता में धीरज भजैं, ये लच्छन विद्वान॥
बुधजन
कहिं ससहरु कहिँ मयरहरु
कहिं ससहरु कहिँ मयरहरु कहिँ बरिहिणु कहिं मेहु।
दूर-ठिाएँ वि सज्जणहँ होइ असड्ढलु नेहु॥
हेमचंद्र
'झाम' राम सुमिरन बिना
'झाम' राम सुमिरन बिना, देह न आवै काम।
इतै उतै सुख कतहुँ नहिं, जथा कृपिन कर दाम॥
झामदास
कहूँ धरत पग परत कहुँ
कहूँ धरत पग परत कहुँ, डिगमिगात सब देह।
'दया' मगन हरि रूप में, दिन-दिन अधिक सनेह॥
दयाबाई
जाएँ कहब करतूति बिनु
जाएँ कहब करतूति बिनु, जाए जोग बिन छेम।
तुलसी जाएँ उपाय सब, बिना राम पद प्रेम॥
तुलसीदास
जम-करि-मुँह तरहरि परयौ
जम-करि-मुँह तरहरि परयौ, इहिं धरहरि चित लाउ।
विषय तृषा परिहरि अजौं, नरहरि के गुन गाउ॥
बिहारी
जानि परै कहुं रज्जु अहि
जानि परै कहुं रज्जु अहि, कहुं अहि रज्जु लखात।
रज्जु रज्जु अहि-अहि कबहुं, रतन समय की बात॥
रत्नावली
सद्गुरु महिमा कहन कौं
सद्गुरु महिमा कहन कौं, रसना हुई न कोरि।
सुन्दर क्यों करि बरनिये जो बरनिये सु थोरि॥