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जिह घटि सिमरन राम को
जिह घटि सिमरन राम को, सो नर मुक्ता जान।तिहि नर हरि अंतर नहीं, नानक साची मान॥
गुरु तेग़ बहादुर
देखत बुरै कपूर ज्यौं
देखत बुरै कपूर ज्यौं, उपै जाइ जिन, लाल।छिन-छिन जाति परी खरी, छीन छबीली बाल॥
बिहारी
जाही कौ सुमिरन करै
जाही कौ सुमिरन करै, ह्वै ताही कौ रूप।सुमिरन कियें ब्रह्म कै, सुन्दर ह्वै चिद्रूप॥
सुंदरदास
'झाम' राम सुमिरन बिना
'झाम' राम सुमिरन बिना, देह न आवै काम।इतै उतै सुख कतहुँ नहिं, जथा कृपिन कर दाम॥
झामदास
सुमिरन तें संसय मिटै
सुमिरन तें संसय मिटै, सुमिरन मैं आनन्द।सुन्दर सुमिरन कैं किये, भागि जाहिं दुख द्वंद
सुंदरदास
सुमिरन तें श्रीपति मिलै
सुमिरन तें श्रीपति मिलै, सुमिरन तें सुखसार।सुमिरन तें परिश्रम बिना, सुन्दर उतरै पार॥
सुंदरदास
सुमिरन सेवा राम सों
सुमिरन सेवा राम सों, साहब सों पहिचानि।ऐसेहु लाभ न ललक जो, तुलसी नित हित हानि॥
तुलसीदास
सुमिरन ही मैं शील है
सुमिरन ही मैं शील है, सुमिरन मैं संतोष।सुमिरन ही तें पाइये, सुन्दर जीवन-मोष॥
सुंदरदास
जे जन हरि सुमिरन बिमुख
जे जन हरि सुमिरन बिमुख, तासूँ मुखहुँ न बोल।राम रूप में जे पगे, तासूँ अंतर खोल॥
दयाबाई
सुमिरण साँचो छोड़ के
सुमिरण साँचो छोड़ के, अंतर मन ही होय।पीपा तन सुध बिसरे, प्रेम छलै न कोय॥