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ई मन चंचल ई मन चोर
ई मन चंचल ई मन चोर, ई मन शुद्ध ठगहार।मन-मन करते सुर-नर मुनि जहँड़े, मन के लक्ष दुवार॥
कबीर
पतिब्रत ही मैं शील है
पतिब्रत ही मैं शील है, पतिब्रत मैं संतोष।सुन्दर पतिब्रत राम सौं, वह ई कहिये मोष॥
सुंदरदास
ऐहैं कहु केहि काम ए
ऐहैं, कहु, केहि काम ए, कादर काम-अधीर।तिय-मृग-ई छनहीं जिन्हें, हैं अति तीछन तीर॥
वियोगी हरि
बाँह मरोरे जात हो
बाँह मरोरे जात हो, मोहि सोवत लिये जगाय।कहहिं कबीर पुकारि के, ई पिंडे होहु कि जाय॥