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जहाँ-जहाँ बच्छा फिरै
जहाँ-जहाँ बच्छा फिरै, तहाँ-तहाँ फिरे गाय।कहैं मलूक जहाँ संत जन, तहाँ रमैया जाय॥
मलूकदास
जहं-जहं भेजै रामजी
जहं-जहं भेजै रामजी, तहं-तहं सुन्दर जाइ।दाणां पांणी देह का, पहली धर्या बनाइ॥
सुंदरदास
जहाँ जहाँ ठाढ़ौ लख्यौ
जहाँ जहाँ ठाढ़ौ लख्यौ, स्यामु सुभग-सिरमौरु।बिन हूँ उन छिनु गहि रहतु, दृगनु अजौं वह ठौरु॥
बिहारी
खग्ग-विसाहिउ जहिँ
खग्ग-विसाहिउ जहिँ लहहुँ पिय तहिंदेसहिँ जाहुँ।रण-दुब्भिक्खें भग्गाइं विणु जुज्झें न वलाहुँ॥
हेमचंद्र
सुन्दर हय हींसै जहाँ
सुन्दर हय हींसै जहाँ, गय गाजै चहूँ फेर।काइर भागै सटकदे, सूर अडिग ज्यौं मेर॥
सुंदरदास
बैंयाँ बैंयाँ जहँ तहाँ
बैंयाँ बैंयाँ जहँ तहाँ, बिहरत अति आनंद।मुख पुनीत नवनीतजुत, नौमि सुखद नंदनंद॥
दीनदयाल गिरि
जहाँ बीज उपजत तहाँ
जहाँ बीज उपजत तहाँ, गुन नहिं जानों जात।ज्यौं-ज्यौं दूरहि जात है, दूनो मोल बिकात॥
भूपति
जहाँ बाल विधवा-हिये
जहाँ बाल-विधवा-हिये, रहे धधकि अंगार।सुख-सीतलता कौ तहाँ, करिहौ किमि संचार॥
वियोगी हरि
जहँ नृत्यति नित चंडिका
जहँ नृत्यति नित चंडिका, तांडव-नृत्य प्रचंड।सुमन-बान तहँ काम के, हेतु आपु सतखंड॥
वियोगी हरि
जगी जोति जहँ जूझ की
जगी जोति जहँ जूझ की, खगी खंग खुलि झूमि।रँगा रूधिर सों धूरि, सो धन्य धन्य रण-भूमि॥
वियोगी हरि
प्रेम-पुंज प्रगटै जहाँ
प्रेम-पुंज प्रगटै जहाँ, तहाँ प्रगट हरि होय।‘दया’ दया करि देत है, श्री हरि दरशन सोय॥
दयाबाई
जगतु जनायौ जिहिं सकलु
जगतु जनायौ जिहिं सकलु, सो हरि जान्यौं नाँहि।ज्यौं आँखिनु सबु देखियै, आँखि न देखी जाँहिं॥
बिहारी
जिहिं कंन्या प्रिय वसत बहिं
जिहिं कंन्या प्रिय बसत बहिं, धसत खिसत नहिं नेंन।प्राची ओर चकोर जिमि, तकियंतु हे दिन-रेंन॥
दयाराम
निदरी प्रलय बाढ़त जहाँ
निदरी प्रलय बाढ़त जहाँ, बिप्लव-बाढ़-बिलास।टापतही रहि जात तहँ, टीप-टाप के दास॥
वियोगी हरि
तहाँ नहीं कछु भय जहाँ
तहाँ नहीं कछु भय जहाँ, अपनी जाति न पास।काठ बिना न कुठार कहुँ, तरु को करत बिनास॥
दीनदयाल गिरि
वहै विराजत थल जहाँ
वहै विराजत थल जहाँ, बुध हैं सहित उमंग।लसै हेम जिहि अंग मैं, बसै प्रभा तिहि अंग॥
दीनदयाल गिरि
जहँ गुलाबहू गात पै
जहँ गुलाबहू गात पै, गड़ि छाले करि देत।बलिहारी! बखतरनु के, तहाँ नाम तुम लेत॥
वियोगी हरि
पिक दुरवति जिहिं पीर सो
पिक दुरवति जिहिं पीर सो, कर बायस प्रतिपाल।काक छोड़ि भजि पीक पुनि, कारण कवन जमाल॥