मनोहर श्याम जोशी के उद्धरण

तुतलाहट से आगे क्यों नहीं बढ़ पाती प्रीति की बानी? और क्यों, जब वह इस सीमा का उल्लंघन करना चाहती है, तुतलाहट से भी निम्नतर कोटि-हकलाहट में पहुँच जाती है वह? प्राचीन आचार्य भी इस तथ्य से अवगत रहे। वे कह गए हैं कि प्रेम में संलाप-प्रलाप-अनुलाप-अपलाप आदि ही होता है। हर प्रेमी जानता है कि प्रतिपक्ष क्या चाह रहा है, किंतु जानकर-भी-न-जानते का विधान है।
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