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मलयज के उद्धरण

काश, मैं पेड़ होता तो मेरे कहे-सुने को कोई समझ न सकता। होशियार आदमियों के बीच एक पेड़—लोग अपनी फ़ितरत में खोए-खोए मेरे पास से गुज़र जाते, मैं अपने में अपनी अस्मिता के साथ नई-नई कोंपलें, पत्ते, फूल, फल रचता हुआ—आसमान के नीलेपन में खिंचा खड़ा रहता।