जल प्रलय

jal prlay

रामाज्ञा शशिधर

और अधिकरामाज्ञा शशिधर

     

    एक

    मेरे पाँव में पानी की रस्सियाँ 
    पीठ पर पानी का महाजाल

    पंखों को दगच रही पानी की कटार

    मैं सोरबरसा राज का संवदिया 
    सुरसा नदी के जबड़े में फँसी हुई मैना
    मैं   ना

    अब क्या करूँ कहाँ जाऊँ 
    आख़िरी चीत्कार से पहले किसको बचाऊँ

    न जाने कबसे तुम
    कटान धसान धार कोल ढाब में 
    गिन रहे हो साँसों का शोर

    खोज रहे हो जीवितों में अपने जीवित
    लाशों में अपनी लाश
    चीख़ों में अपनी चीख़

    उम्मीदों में अपनी उम्मीद
    जैसे बाढ़जल में आँखजल

    दो

    कुछ देर दम साधो, सको तो साधो 
    मैं आता हूँ

    हवा की नाव बनकर आता हूँ 
    कछुए की पीठ बनकर आता हूँ

    भैंस की गर्दन 
    गाय की पूँछ 
    झग्गड़ उभइन 
    केले की घिरनाई 
    साड़ी का कोचा 
    धोती का फेटा

    गाद बालू बाँस घास लाश 
    कुछ भी होकर पहुँच रहा हूँ पास

    तीन

    छत छप्पर कोरो बल्ली 
    मोखा कोठी छान बखार

    ऊखल मूसल खाट पलंग 
    डेगची जाँता सील मचान

    चूहे चींटी गिरगिट मेढ़क 
    बिल्ली बिच्छू साँप

    हड़हड़... गड़गड़...
    खरखर... भड़भड़...
    भटभट... भड़मभड़ाम
    काम तमाम

    चार

    होंठ को ढूँढ़ रहे हैं स्तन
    स्तन को होंठ
    लाठी को चश्मा
    चश्मे को लाठी

    चेहरे यादें गीत दुःख प्यार 
    सब भटक गए हैं

    पाँच

    जो तुम्हें अन्न देते हैं
    वे स्वाद नहीं देंगे

    जो नारे देते हैं
    वे गीत नहीं देंगे

    जो दवाइयाँ देते हैं 
    वे हथेलियाँ नहीं देंगे

    माचिस देने वाले लकड़ियाँ नहीं देते

    जो मोमबत्तियाँ दे रहे हैं 
    वे नहीं देंगे तुम्हें रोशनी

    स्रोत :
    • पुस्तक : बुरे समय में नींद (पृष्ठ 94)
    • रचनाकार : रामाज्ञा शशिधर
    • प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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