अंगुलिमाल

angulimal

अज्ञात

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अंगुलिमाल

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    नोट

    प्रसतुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा छठी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    एक जंगल में अंगुलिमाल नाम का एक डाकू रहता था। वह बहुत निर्दयी था। वह जंगल से आने-जाने वालों को पकड़कर बहुत सताता था। वह उन्हें मार डालता था। वह उनकी अंगुलियों की माला बनाता था। उस माला को गले में पहनता था। इसीलिए लोग उसे अंगुलिमाल कहते थे। सभी लोग उससे बहुत डरते थे और जंगल में नहीं जाते थे।

    एक बार महात्मा बुद्ध वहाँ गए। सभी लोगों ने उन्हें प्रणाम किया। उन्हें जंगल में जाने से रोका। लोगों ने महात्मा बुद्ध को अंगुलिमाल के बारे में सब कुछ बताया।

    महात्मा बुद्ध ने लोगों की बातें बहुत धैर्य से सुनीं। वे बोले, ‘डरने की कोई बात नहीं है।’

    महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुए जंगल में चले गए। जब अंगुलिमाल को महात्मा बुद्ध के आने का पता चला तो उसे बहुत ग़ुस्सा आया। वह ग़ुस्से से भरा महात्मा बुद्ध के पास आया। महात्मा बुद्ध ने धैर्यपूर्वक मुस्कुराकर उसका स्वागत किया। इस प्रकार बिना डरे, मुस्कुराकर स्वागत करना अंगुलिमाल के लिए नई बात थी। सब लोग तो उससे डरते थे और उससे घृणा करते थे।

    महात्मा बुद्ध ने अंगुलिमाल से कहा, ‘भाई ग़ुस्सा छोड़ो और सामने वाले पेड़ से चार पत्तियाँ तोड़ लाओ।’ अंगुलिमाल पत्ते तोड़ लाया।

    बुद्ध मुस्कुराए और बोले, ‘इन पत्तों को जहाँ से तोड़ लाए हो, फिर से वहीं लगा आओ।’

    अंगुलिमाल बोला, ‘यह कैसे हो सकता है? जो पत्ता एक बार पेड़ से टूट गया वह फिर कैसे जुड़ सकता है?’

    बुद्ध ने उसे समझाया, ‘तुम यह जानते हो कि जो एक बार टूट गया वह दुबारा जुड़ता नहीं तो तुम तोड़ने का काम क्यों करते हो? जब तुम फिर से जोड़ नहीं सकते। पेड़ हो या अन्य प्राणी—सब में प्राण होते हैं। प्राणियों को तुम क्यों सताते हो? उन्हें मारते क्यों हो?

    अंगुलिमाल महात्मा बुद्ध की बात समझ गया। वह उनकी शरण में गया और उनका शिष्य बन गया। समझ गया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दूर्वा (भाग-1) (पृष्ठ 104)
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022

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