Font by Mehr Nastaliq Web

स्वतंत्रता की ओर

svtantrta ki or

सुभद्रा सेन गुप्ता

सुभद्रा सेन गुप्ता

स्वतंत्रता की ओर

सुभद्रा सेन गुप्ता

और अधिकसुभद्रा सेन गुप्ता

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा चौथी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    हिंदवी

    धनी को पता था कि आश्रम में कोई बड़ी योजना बन रही है, पर उसे कोई कुछ न बताता। “वे सब समझते हैं कि मैं नौ साल का हूँ इसलिए मैं बुद्धू हूँ। पर मैं बुद्धू नहीं हूँ!” धनी मन ही मन बड़बड़ाया।

    धनी और उसके माता-पिता, बड़ी ख़ास जगह में रहते थे—अहमदाबाद के पास, महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में। जहाँ पूरे भारत से लोग रहने आते थे। गांधी जी की तरह वे सब भी भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। जब वे आश्रम में ठहरते तो चरखों पर खादी का सूत कातते, भजन गाते और गांधी जी की बातें सुनते।

    साबरमती में सबको कोई न कोई काम करना होता—खाना पकाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, कुएँ से पानी लाना, गाय और बकरियों का दूध दुहना और सब्ज़ी उगाना। धनी का काम था बिन्नी की देखभाल करना। बिन्नी, आश्रम की एक बकरी थी। धनी को अपना काम पसंद था, क्योंकि बिन्नी उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी। धनी को उससे बातें करना अच्छा लगता था।

    उस दिन सुबह, धनी बिन्नी को हरी घास खिला कर, उसके बर्तन में पानी डालते हुए बोला, “कोई बात ज़रूर है बिन्नी! वे सब गांधी जी के कमरे में बैठकर बातें करते हैं। कोई योजना बनाई जा रही है। मैं सब समझता हूँ।”

    बिन्नी ने घास चबाते हुए सिर हिलाया। जैसे कि वह धनी की बात समझ रही हो। धनी को भूख लगी। कूदती-फाँदती बिन्नी को लेकर वह रसोईघर की तरफ़ चला। उसकी माँ चूल्हा फूँक रही थीं और कमरे में धुआँ भर रहा था।

    “अम्मा, क्या गांधी जी कहीं जा रहे हैं?” उसने पूछा।

    खाँसते हुए माँ बोलीं, “वे सब यात्रा पर जा रहे हैं।”

    “यात्रा? कहाँ जा रहे हैं?” धनी ने सवाल किया। “समुद्र के पास कहीं। अब सवाल पूछना बंद करो और जाओ यहाँ से धनी!” अम्मा ज़रा ग़ुस्से से बोलीं, “पहले मुझे खाना पकाने दो।”

    धनी सब्ज़ी की क्यारियों की तरफ़ निकल गया जहाँ बूढ़ा बिंदा आलू खोद रहा था। “बिंदा चाचा,” धनी उनके पास बैठ गया, “आप भी यात्रा पर जा रहे हैं क्या?” बिंदा ने सिर हिलाकर मना किया। उसके कुछ बोलने से पहले धनी ने उतावले होकर पूछा, “कौन जा रहे हैं? कहाँ जा रहे हैं? क्या हो रहा है?”

    बिंदा ने खोदना रोक दिया और कहा, “तुम्हारे सब सवालों के जवाब दूँगा पर पहले इस बकरी को बाँधो! मेरा सारा पालक चबा रही है!”

    धनी बिन्नी को खींच कर ले गया और पास के नींबू के पेड़ से बाँध दिया। फिर बिंदा ने उसे यात्रा के बारे में बताया। गांधी जी और उनके कुछ साथी गुजरात में पैदल चलते हुए, दांडी नाम की जगह पर समुद्र के पास पहुँचेंगे। गाँवों और शहरों से होते हुए पूरा महीना चलेंगे। दाँडी पहुँच कर वे नमक बनाएँगे।

    “नमक?” धनी चौंककर उठ बैठा, “नमक क्यों बनाएँगे? वह तो किसी भी दुकान से ख़रीदा जा सकता है।”

    “हाँ, मुझे मालूम है।” बिंदा हँसा” पर महात्मा जी की एक योजना है। यह तो तुम्हें पता ही है कि वह किसी बात के विरोध में ही यात्रा करते हैं या जुलूस निकालते हैं, है न?”

    “हाँ, बिल्कुल सही। मैं जानता हूँ। वे ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ सत्याग्रह के जुलूस निकालते हैं जिससे कि उनके ख़िलाफ़ लड़ सकें और भारत स्वतंत्र हो जाए। पर नमक को लेकर विरोध क्यों कर रहे हैं? यह तो समझदारी वाली बात नहीं है।”

    “बिल्कुल, धनी! क्या तुम्हें पता है कि हमें नमक पर 'कर' देना पड़ता है?”

    “अच्छा।” धनी हैरान रह गया।

    “नमक की ज़रूरत सभी को है...इसका मतलब है कि हर भारतवासी, ग़रीब से ग़रीब भी, यह कर देता है.” बिंदा चाचा ने आगे समझाया।

    हिंदवी

    “लेकिन यह तो सरासर अन्याय है!” धनी की आँखों में ग़ुस्सा था।

    “हाँ, यह अन्याय है। इतना ही नहीं, भारतीय लोगों को नमक बनाने की मनाही है। महात्मा जी ने ब्रिटिश सरकार को कर हटाने को कहा पर उन्होंने यह बात ठुकरा दी। इसलिए उन्होंने निश्चय किया है कि वे दांडी चल कर जाएँगे और समुद्र के पानी से नमक बनाएँगे।”

    “एक महीने तक पैदल चलेंगे!” धनी सोच कर परेशान हो रहा था। “गांधी जी तो थक जाएँगे। वे दांडी बस या ट्रेन से क्यों नहीं जा सकते?”

    “क्योंकि, यदि वे इस लंबी यात्रा पर दांडी तक पैदल जाएँगे तो यह ख़बर फैलेगी। अख़बारों में फ़ोटो छपेंगी, रेडियो पर रिपोर्ट जाएगी! और पूरी दुनिया के लोग यह जान जाएँगे कि हम अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं। और ब्रिटिश सरकार के लिए यह बड़ी शर्म की बात होगी।”

    “गांधी जी, बड़े ही अक़्लमंद हैं, हैं न?” धनी की आँखें चमकीं।

    हिंदवी

    बिंदा ने हँसकर कहा, “हाँ, वह तो हैं ही।”

    दुपहर को जब आश्रम में थोड़ी शांति छाई, धनी अपने पिता को ढूँढ़ने निकला। वह एक पेड़ के नीचे बैठकर चरखा कात रहे थे।

    “पिता जी, क्या आप और अम्मा दांडी यात्रा पर जा रहे हैं?” धनी ने सीधे काम की बात पूछी।

    “मैं जा रहा हूँ। तुम और अम्मा यहीं रहोगे।”

    “मैं भी आपके साथ चल रहा हूँ।”

    “बेकार की बात मत करो धनी! तुम इतना लंबा नहीं चल पाओगे। आश्रम के नौजवान ही जा रहे हैं।”

    धनी ने हठ पकड़ ली, “मैं नौ साल का हूँ और आपसे तेज़ दौड़ सकता हूँ।” धनी के पिता ने चरखा रोककर बड़े धीरज से समझाया, “सिर्फ़ वे लोग जाएँगे जिन्हें महात्मा जी ने ख़ुद चुना है।”

    “ठीक है! मैं उन्हीं से बात करूँगा। वह ज़रूर हाँ कहेंगे!” धनी खड़े होकर बोला और वहाँ से चल दिया। गांधी जी बड़े व्यस्त रहते थे। उन्हें अकेले पकड़ पाना आसान नहीं था। पर धनी को वह समय मालूम था जब उन्हें बात सुनने का समय होगा—रोज़ सुबह, वह आश्रम में पैदल घूमते थे।

    अगले दिन जैसे ही सूरज निकला, धनी बिस्तर छोड़कर गांधी जी को ढूँढ़ने निकला। वे गौशाला में गायों को देख रहे थे। फिर वह सब्ज़ी के बग़ीचे में मटर और बंदगोभी देखते हुए बिंदा से बात करने लगे। धनी और बिन्नी लगातार उनके पीछे-पीछे चल रहे थे।

    अंत में, गांधी जी अपनी झोंपड़ी की ओर चले। बरामदे में चरखे के पास बैठकर उन्होंने धनी को पुकारा, “यहाँ आओ, बेटा!”

    धनी दौड़कर उनके पास पहुँचा। बिन्नी भी साथ में कूदती हुई आई।

    “तुम्हारा क्या नाम है, बेटा?”

    “धनी, बापू।”

    “और यह तुम्हारी बकरी है?”

    “जी हाँ, यह मेरी दोस्त बिन्नी है, जिसका दूध आप रोज़ सुबह पीते हैं”, धनी गर्व से मुस्कुराया, “मैं इसकी देखभाल करता हूँ।”

    “बहुत अच्छा!” गांधी जी ने हाथ हिलाकर कहा, “अब यह बताओ धनी कि तुम और बिन्नी सुबह से मेरे पीछे क्यों घूम रहे हो?”

    “मैं आपसे कुछ पूछना चाहता था”, धनी थोड़ा घबराया। “क्या मैं आपके साथ दांडी चल सकता हूँ?” हिम्मत करके उसने कह डाला।

    गांधी जी मुस्कुराए, “तुम अभी छोटे हो बेटा! दांडी तो बहुत दूर है! सिर्फ़ तुम्हारे पिता जैसे नौजवान ही मेरे साथ चल पाएँगे।”

    “पर आप तो नौजवान नहीं हैं”, धनी बोला, “आप नहीं थक जाएँगे?”

    “मैं बहुत अच्छे से चलता हूँ”, गांधी जी ने कहा।

    “मैं भी बहुत अच्छे से चलता हूँ”, धनी भी अड़ गया।”

    हिंदवी

    “हाँ, ठीक बात है”, कुछ सोचकर गांधी जी बोले, “मगर एक समस्या है। अगर तुम मेरे साथ जाओगे तो बिन्नी को कौन देखेगा? इतना चलने के बाद, मैं तो कमज़ोर हो जाऊँगा। इसलिए, जब मैं वापस आऊँगा तो मुझे ख़ूब सारा दूध पीना पड़ेगा, जिससे कि मेरी ताक़त लौट आए।”

    “हूँ...यह बात तो ठीक है, बिन्नी तभी खाती है, जब मैं उसे खिलाता हूँ”, धनी ने प्यार से बिन्नी का सिर सहलाया, “और सिर्फ़ मैं जानता हूँ कि इसे क्या पसंद है।”

    “बिल्कुल सही। तो क्या तुम आश्रम में रहकर मेरे लिए बिन्नी की देखभाल करोगे?” गांधी जी प्यार से बोले। “जी, हाँ, करूँगा”, धनी बोला, “बिन्नी और मैं आपका इंतज़ार करेंगे।    

    हिंदवी

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    सुभद्रा सेन गुप्ता

    सुभद्रा सेन गुप्ता

    स्रोत :
    • पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 66)
    • रचनाकार : सुभद्रा सेन गुप्ता
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए