नन्हा संगीतकार

nanhaa sangeetkaar

हेन्रिक एडम अलकसेनडर पियस सींकीविक्ज़

और अधिकहेन्रिक एडम अलकसेनडर पियस सींकीविक्ज़

    जब वह इस दुनिया में आया तो बेहद कमज़ोर और दुर्बल था। पड़ोसी पालने के इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गए। माँ और बच्चे को देख आपस में अफ़सोस ज़ाहिर करने लगे। उनमें लुहार की पत्नी सबसे तज़ुर्बेकार थी, सो अपने अंदाज़ में बीमार स्त्री को दिलासा देने लगी।

    तुम चुपचाप लेटी रहो, मैं पवित्र मोमबत्ती जलाती हूँ, तुम्हारे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है, दूसरी दुनिया में जाने की तैयारी करो। बेहतर होगा अगर कोई जल्दी से जाए और अंतिम क्रियाकर्म के लिए पादरी को बुला लाए।

    बच्चे का भी फ़ौरन नामकरण करना होगा,” दूसरी एक स्त्री बोली, मेरे ख़्याल से तो यह पादरी के आने तक भी नहीं बचेगा। बेहतर होगा कि जल्दी नामकरण हो जाए, वरना इसकी बेनाम आत्मा यहाँ-वहाँ भटकेगी।

    यह बोलते-बोलते उसने पवित्र मोमबत्ती जलाई। शिशु को गोद में उठाया। उस पर पवित्र जल का छिड़काव करती रही, जब तक शिशु ने आँखें झपकानी शुरू नहीं कर दीं। साथ में पवित्र पाठ का जाप करती जा रही थी।

    “परम पूज्य पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से मैं तेरा नामकरण करती हूँ। तेरा नाम होगा जेन, फिर वह मृत्यु के वक़्त की जाने वाली प्रार्थना को याद करते हुए जल्दी-जल्दी कुछ बुदबुदाने लगी।

    हे ईसाई आत्मा! इस दुनिया से अब विदा ले और जहाँ से जन्म लिया है वहीं शरण ले, आमीन!

    पर इस ईसाई आत्मा का इस दुनिया से विदा लेने का कोई इरादा नहीं था। उलटे वह ज़ोर-ज़ोर से लातें चलाने लगा और रोना शुरू कर दिया। बहरहाल उसके रोने का स्वर इतना क्षीण और मंद था, जैसे बिल्ली का कोई बच्चा हौले-हौले मिमिया रहा हो।

    पादरी को बुलाया गया था। उसने आकर पूजा-पाठ किया और चला गया। मरने की बजाय माँ पूरी तरह भली-चंगी हो गई। हफ़्ते-भर में काम-काज में भी जुट गई।

    शिशु की साँसें नाज़ुक डोर से लटकी हुई थीं। लगता था जैसे वह बड़ी मुश्किल से साँस ले पा रहा है, बेहद दुर्बल कमज़ोर जो था। पर जब वह चार बरस का था तो एक दिन कुटिया की छत पर पपीहे ने तीन बार कुहू-कुहू की तान छेड़ी। पोलिश लोक-विश्वास के अनुसार यह एक शुभ शकुन माना जाता है। उसके बाद शिशु की हालत सुधरने लगी। दिन बीतते गए और वह दस बरस का हो गया। पर हमेशा दुबला-पतला और नाज़ुक ही बना रहा। झुकी देह और पिचके गाल! उसके धूसर बाल हमेशा उसकी उजली चमकदार आँखों पर गिरते रहते। उन आँखों में सदैव एक ख़्वाब अँगड़ाई लेता रहता। आँखें हमेशा दूर, बहुत दूर कहीं टिकी रहतीं, मानो कुछ ऐसा देख रही हों, जो दूसरों से अनदेखा है।

    जाड़े के दिनों में वह सिगड़ी के पीछे दुबककर बैठ जाता और ठंड के मारे रोने लगता। अक्सर वह भूख से भी बिलखता क्योंकि माँ कई बार अलमारी या डिब्बे में खाने के लिए कुछ नहीं रख पाती थी। गर्मियों में छोटे सफ़ेद झबले में यहाँ-वहाँ दौड़-भाग करता रहता, जो रूमाल से उसकी कमर में बँधा रहता था। सिर पर पुआल की पुरानी टोपी रहती, जिसके सूराख़ों से उसके भूरे बाल बाहर झाँकते रहते। उत्सुक निगाहें पक्षी की भाँति यहाँ-वहाँ भटकती रहतीं। बेचारी माँ क्या करती, मुश्किल से दो जून की रोटी जुटा पाती थी। हालाँकि जेन से उसे बेइंतहा प्यार था से पर उसकी पिटाई भी ख़ूब करती। अकसर उसे 'चेंजलिंग' कहकर बुलाती। जब वह महज़ आठ बरस का था, तभी से उसने अपने बूते पर जीना और अपनी देखभाल ख़ुद करना शुरू कर दिया था। कभी भेड़ें चराने ले जाता, कभी जब घर पर खाने के लिए कुछ नहीं होता तो मशरूम खोजने घने जंगल में घुस जाता। ख़ुदा का शुक्र था कि ऐसी दिलेरी के वक़्त कभी किसी भेड़िए ने उसे अपना शिकार नहीं बनाया था। वह एहतियात बरतने वाले बच्चों में से नहीं था। देहाती बच्चों की तरह बातचीत के वक़्त मुँह में उँगली रख लेता था। उसे देख पड़ोसी भविष्यवाणी करने से बाज नहीं आते कि यह बच्चा ज़्यादा दिन जी नहीं पाएगा। अगर जीवित भी रहा तो माँ को कभी सुख नहीं दे पाएगा, क्योंकि उसका शरीर कभी इस लायक़ नहीं बन पाएगा कि वह कड़ी मेहनत कर सके।

    उसमें एक अनोखी ख़ूबी थी। क़ुदरत की जाने यह कैसी लीला थी कि उसे यह नियामत बख़्शी थी। संगीत से उसे बेइंतहा मुहब्बत थी और यह मुहब्बत ही उसका जुनून थी। हर क़िस्म की आवाज़ में उसे संगीत सुनाई देता। हर आवाज़ वह डूबकर सुनता। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, लय और सुर में उसकी दिलचस्पी बढ़ती गई। वह भेड़-बकरियाँ चराने जाता या साथियों के साथ जंगल में बेर चुनने, ख़ाली हाथ ही घर लौटता और माँ से तुतलाकर बोलता, ओह माँ, कैसा ख़ूबसूरत संगीत था! कैसी मधुर तान थी—ला ला...!

    चल हट, बंदर कहीं का! अब मैं तेरा बाजा बजाऊँगी, काम का, काज का! उसकी माँ ग़ुस्से चिल्लाती और करछी से उसकी पिटाई कर देती। बेचारा नन्हा सा बालक चीख़ता और दोबारा कभी संगीत सुनने का वादा करता; मगर उसका मन तो जंगल में ही बसता था। वह सोचता रहता कि वहाँ कितने मधुर स्वर हैं, जो गूँजते और बजते रहते हैं। पूरा जंगल गाता है और उसकी प्रतिध्वनि से जंगल गूँज उठता है। मेड़ों पर घास की पत्तियाँ गाती हैं, घर के पीछे बगिया में चिड़ियाँ चहकतीं हैं, चेरी का वृक्ष सरसराता और कँपकँपाता है। शाम ढलते ही उसे हर तरह की आवाज़ें सुनाई देतीं। देहात में सुनाई देने वाले एक से एक स्वर उसके ज़ेहन में बजने लगते। लगता, जैसे समूचे गाँव में मधुर स्वरलहरी गूँज उठी है। उसके संगी-साथी आश्चर्य जताते, क्योंकि उन्हें तो ऐसा कोई भी स्वर सुनाई नहीं देता था। काम के वक़्त जब वह खेतों में सूखी घास साफ़ करने जाता तो हवा की सरसराहट में खो जाता। दूर खड़ा निरीक्षक जब उसे यूँ ही निठल्ला, बाल पीछे की ओर खिसकाए, हवा के संगीत में खोया हुआ देखता तो फुटपट्टी उठाकर दो-तीन सटाक से दे मारता, ताकि इस स्वप्नद्रष्टा को होश में लाया जा सके। पर सब बेकार। आख़िरकार पड़ोसियों ने उसका नाम ही रख दिया संगीतकार जेन्को!

    रात में जब मेंढक टर्राते, चरागाहों पर कुक्कुट चीत्कार करते, दलदल में तितलौवे धमाचौकड़ी मचाते और बाड़ों के पीछे मुर्गे बाँग देते तो यह बालक सो नहीं पाता था। वह चरम आनंद की अनुभूति से भर उठता और इन स्वरों में खो जाता। उसे इन तमाम मिले-जुले स्वरों में एक अद्भुत सुरसंगति सुनाई देती। गनीमत थी कि माँ उसे गिरजाघर नहीं ले जाती, क्योंकि वहाँ जब वाद्ययंत्रों और घंटियों की झंकार गूँजती तो बालक की आँखें धुँधली और नम हो उठतीं और उनमें एक ऐसी चमक दमकने लगती, मानो वे किसी दूसरी ही दुनिया की रोशनी से प्रदीप्त हो उठी हों। रात के वक़्त गाँव में पहरा देने वाला चौकीदार कभी-कभार यूँ ही ख़ुद को जगाए रखने के लिए तारे गिनने लगता या बेहद धीमे-धीमे किसी कुत्ते से गपियाने लगता। ऐसे वक़्त कई बार उसने शराबख़ाने की धुँधली रोशनी में छोटे सफ़ेद झबले में जेन्को को यहाँ-वहाँ दौड़ते देखा था। हालाँकि वह बालक कभी शराबख़ाने के भीतर नहीं जाता था। वह दीवार से सटकर बैठ जाता और भीतर का संगीत सुनने की कोशिश करता। भीतर जब कई युगल संगीत की मधुर धुन पर थिरकते और झूमते तो पैरों की थाप और बालाओं के मस्ती-भरे स्वर सुनाई देते। हौले-हौले वायलिन बजता रहता। पियानो का तेज़ स्वर गूँजता रहता, खिड़कियाँ रोशनी से नहा उठतीं। डांस फ्लोर का काठ चरमराने, गाने और झूमने लगता। जेन्को तल्लीन होकर यह सब सुनता। ऐसी मधुर धुन वाले वायलिन को पाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था। मगर अफ़सोस, उसके नसीब में यह सब कहाँ? वह इसे कैसे पा सकता था? काश, वे उसे एक बार वायलिन हाथ में लेने भर देते तो वह धन्य हो उठता...पर नहीं, उसकी क़िस्मत में तो बस सुनना लिखा था। वह देर तक बुत बना सुनता रहता, जब तक दूर से अँधेरे को चीरती चौकीदार की आवाज़ जाती—

    चलो, अब जाओ, सोने का वक़्त हो गया है।

    तब वह नन्हा-सा बालक नंगे पाँव रात के अँधेरे में भागते हुए कुटिया की ओर जाता, पर वायलिन के स्वर देर तक उसका पीछा नहीं छोड़ते।

    जब फ़सल कटने या शादी-ब्याह के मौक़ों पर बाजे सारंगी बजतीं तो उसे ख़ूब आनंद आता। ऐसे वक़्त वह सिगड़ी के पीछे दुबककर बैठ जाता और कई-कई दिनों तक एक लफ़्ज़ तक नहीं बोलता। दमकती आँखें सामने की ओर यूँ टिकी रहतीं, जैसे रात के वक़्त बिल्ली की आँखें दिखती हों।

    आख़िरकार उसने काठ के फ़लक से अपने लिए एक सारंगी बना ही डाली। घोड़े के बाल का तार के रूप में इस्तेमाल किया, पर उसके स्वर मयख़ाने में बजने वाले वायलिन जैसे मधुर नहीं थे। तारों से बेहद महीन स्वर निकलता, मानो मक्खियाँ या कीड़े-मकोड़े भिन-भिन कर रहे हों। फिर भी सुबह से देर रात तक वह उसे बजाता रहता। हालाँकि उसे अपनी इस लत के लिए बहुत मार खानी पड़ती थी, पर यह सब छोड़ना उसके बस में नहीं था। यह उसकी फ़ितरत में था।

    बालक दिनोंदिन कमज़ोर और दुर्बल होता जा रहा था और बालों का गुच्छा पहले से घना। आँखें हर वक़्त चौकन्नी और आँसुओं से भरी रहतीं। छाती और गाल धँसते जा रहे थे। वह कभी भी आम बच्चों की तरह तंदुरुस्त नहीं हो पाया। उसका वही हाल था, जो उस बेचारी ग़रीब सारंगी का था, जो मुश्किल से ही बज पाती थी। फ़सलों की कटाई के वक़्त तो वह लगभग फ़ाक़े ही करता था। क्योंकि ऐसे वक़्त वह महज़ कच्चे शलजम खाकर जीवित रहता था। उसकी एक ही चाहत थी कि किसी तरह एक वायलिन उसे मिल जाए। मगर अफ़सोस, उसकी इस चाहत ने उस बदनसीब की जान ही ले ली।

    ऊपर बँगले का मालिक बैरन और उसका पूरा परिवार अरसे से इटली में रह रहा था। बँगले की देखभाल करने वाले वर्दीधारी सिपाही के पास एक वायलिन था, जो कभी-कभार वह अपनी ख़ूबसूरत प्रेमिका या फिर नौकरों को ख़ुश करने के लिए बजाता था। जेन्को अकसर ऊँचे-ऊँचे पौधों के बीच नौकरों के हॉल के दरवाज़े के पास दुबककर बैठा रहता। उस पर एक ही धुन सवार रहती कि किसी तरह उस संगीत को सुन सके या फिर कम से कम वायलिन की एक झलक-भर पा सके। वायलिन हमेशा दरवाज़े के सामने दीवार पर टँगा रहता था। बालक हसरतभरी निगाहों से उसे निहारता। ऐसे वक़्त उसकी समूची आत्मा आँखों में उतर आती। यह उसके लिए दुनिया की सबसे क़ीमती चीज़ थी। अचानक एक मूक चाहत ने उसे जकड़ लिया। काश, किसी तरह वह एक बार उसे अपने हाथों से छूकर या बहुत नज़दीक से जाकर देखे! इस ख़याल मात्र से उसका दिल बल्लियों उछलने लगा।

    एक शाम उसने देखा कि नौकरों के कमरे में कोई नहीं था। पूरा परिवार यूँ भी इटली में ही रह रहा था। घर ख़ाली था। वर्दीधारी सिपाही भी अपनी प्रेमिका के साथ कहीं घूमने निकल गया था। झाड़ियों के बीच छिपा जेन्को दरवाज़े की झिरी में से बहुत देर से अपने लक्ष्य पर नज़रें टिकाए बैठा था।

    चंद्रमा अपने पूरे शबाब के साथ आसमान में दमक रहा था। कमरे के भीतर भी उसकी किरणों से एक घेरा बन गया था, जो सामने की दीवार पर पड़ रहा था। फिर धीरे-धीरे रोशनी का यह घेरा वायलिन पर सिमट आया और वायलिन रोशनी में नहा उठा। बालक ने देखा कि घने अँधेरे के बीच दूधिया रोशनी में वायलिन चमक रहा था। इस क़दर उज्ज्वल कि उसकी चकाचौंध से वह बौरा गया। उसके तार, गर्दन, किनारे सब कुछ साफ़ दिखाई दे रहे थे। खूँटियाँ जुगनू की मानिंद चमक रही थीं और वायलिन का गज भी एकदम जादू की छड़ी के माफ़िक़ था।

    वाह! कितना ख़ूबसूरत है, एकदम जादुई! जेन्को ललचाई नज़रों से उसे ताकने लगा। वह लताओं के बीच दुबककर बैठा था। उसकी कोहनियाँ कमज़ोर घुटनों पर टिकी हुई थीं। अवाक् निश्चल, उस एक चीज़ पर टकटकी बाँधे! वह मायूसी से भर उठा। अगले ही पल उत्कट आकांक्षा ने उसे घेर लिया। क्या यह कोई जादू है या कुछ और? वायलिन का जुनून उस पर मँडरा रहा था। क्षण-भर के लिए वायलिन अँधेरे में डूब गई, पर फिर दुगुनी आभा से वह चमक उठी। जादू वाक़ई यह जादू ही था। इसी बीच हवा सरसराने लगी, पेड़ डोलने लगे, लताएँ मंद-मंद फुसफुसाने लगीं और ये सभी मानो उस बालक को उकसा रहे थे—“चलो जेन्को, आगे बढ़ो, वहाँ कोई भी नहीं है...जाओ, जेन्को।

    रात उजली और निर्मल थी। बगीचे में तालाब के किनारे बुलबुल ने कुहुकना शुरू कर दिया। कभी हौले-हौले तो कभी ज़ोर से। उसके गीत के बोल थे—आगे बढ़ो, हिम्मत करो, जाकर छू लो प्यारे! एक ईमानदार काला कौआ बालक के सिर पर मँडराने लगा और काँव-काँव कर बोला, नहीं, जेन्को नहीं। कौआ उड़ गया। बुलबुल अभी भी गा रही थी। लताएँ दुगने वेग से फुसफुसाने लगीं—जाओ, वहाँ कोई नहीं है।

    वायलिन अब भी चंद्रमा की रोशनी के घेरे में टँगा हुआ था। अब वह घनी लताओं के पीछे से उठ खड़ा हुआ। दहलीज़ पर उस नाज़ुक बालक की धौंकनी की तरह चल रही साँसों को साफ़ सुना जा सकता था। क्षण-भर बाद ही सफ़ेद झबला ओझल हो चुका था। केवल एक नन्हा पैर सीढ़ियों पर दिख रहा था। दोस्त कौए ने एक बार फिर व्यर्थ में चक्कर काटकर आगाह किया, नहीं, नहीं। पर जेन्को भीतर घुस चुका था। तालाब में मेंढ़क अचानक टर्राने लगे, मानो किसी ने उन्हें डरा दिया हो। फिर अचानक शांत हो गए। बुलबुल ने गाना बंद कर दिया। बेलों की फुसफुसाहट भी थम गई। इस बीच जेन्को अपने लक्ष्य के और क़रीब पहुँच गया था, पर भय ने उसे जकड़ लिया। घर के भीतर लताओं की छाया पड़ रही थी। झुरमुट में वह एक जंगली जीव की भाँति दिख रहा था। वह तेज़ चल रहा था, पर साँस धीमे-धीमे चल रही थी।

    पूर्व से पश्चिम की ओर गर्मियों की कँपकँपाती लपकती बिजली से पूरा कमरा क्षण-भर के लिए रोशन हो उठा। उसी एक पल में दोनों हाथों और पैरों पर झुका बेचारा जेन्को काँपता दिखाई दिया। वायलिन के पास सिर को आगे की ओर फैलाकर वह पालथी मारकर बैठा था। फिर बिजली कड़कनी बंद हो गई। चंद्रमा को बादलों ने ढक लिया। चारों ओर निस्तब्धता पसर गई।

    एक विराम के बाद अँधेरे में हलके क्रंदन-सी आवाज़ आई, मानो किसी ने अनजाने में तारों को छेड़ दिया हो। उसी वक़्त कमरे के कोने से कर्कश, मगर उनींदी आवाज़ फूट पड़ी—

    कौन है वहाँ?

    दीवार से माचिस की तीली रगड़ने की आवाज़ सुनाई दी। एकाएक रोशनी की लहर फूट पड़ी और फिर हाय राम! गालियों, घूँसों, मुक्कों की बरसात होने लगी। बच्चा रोने लगा, बिलखने, याचना करने लगा, ईश्वर के वास्ते!

    कुत्तों का भौंकना, रोशनी लेकर लोगों की भगदड़ शुरू हो गई। पूरे घर में खलबली मच गई।

    दो दिन बाद अभागा जेन्को मजिस्ट्रेट के सामने था। क्या चोरी के ज़ुर्म में उस पर मुक़दमा चलाया जाए? बेशक।

    न्यायाधीश और मकान मालिक ने कटघरे में खड़े अपराधी को देखा। मुँह में उँगली डाले, फटी भयभीत आँखें, बेहद दुर्बल, छोटा, गंदा, चोटों से भरा वह बालक चुपचाप खड़ा था। इस बात से पूरी तरह अनजान कि क्यों और कैसे उसे यहाँ लाया गया है और वे लोग उसके साथ क्या करने वाले हैं? न्यायाधीश सोच में पड़ गया कि इस क़दर दुर्बल, महज़ दस वर्ष के इस अभागे को क्या दंड दिया जा सकता है, जो अपने पैरों पर ढंग से खड़ा भी नहीं हो पा रहा है? क्या इसे क़ैदखाने भेजा जा सकता है? यूँ भी बच्चों के साथ इतना बेरहम नहीं हुआ जा सकता! क्या यह बेहतर नहीं होगा कि चौकीदार इसे ले जाकर बेंत से थोड़ी पिटाई कर दे, जिससे उसे दोबारा चोरी करने का सबक मिल जाए। इस तरह मामला भी निपट जाएगा।

    हाँ, यही बढ़िया रहेगा! चौकीदार को बुलाया गया।

    इसे ले जाओ, चेतावनी के बतौर बेंत से पिटाई करो।

    मोटी बुद्धि वाले चौकीदार ने अपना सिर हिलाया। जेन्को को वह किसी बिल्ली के बच्चे की माफ़िक़ बगल में दुबकाकर अस्तबल में ले गया।

    या तो उस बालक को कुछ भी समझ में नहीं रहा था अथवा वइ इस क़दर भयभीत था कि उसने मुँह नहीं खोला। मामला चाहे जो हो वह एक शब्द तक नहीं बोला। भयभीत नन्हें परिंदे की भाँति चारों ओर देखने लगा। उसे तब जाकर अहसास हुआ, जब चौकीदार ने पकड़कर फ़र्श पर लिटा दिया और उसे हाथ से पकड़कर बेंत से पीटने लगा।

    बेचारा जेन्को चीख़ पड़ा, माँ... हर वार के साथ उसकी आवाज़ क्षीण और कमज़ोर होती जाती थी। कुछ देर बाद वह चुप हो गया। फिर उसने माँ को पुकारना बंद कर दिया।

    बेचारा टूटा हुआ वायलिन!

    क्रूर चौकीदार ने बड़ी बेरहमी से बालक को पीटा था। यूँ भी अभागा नन्हा जेन्को हमेशा से ही दुबला-पतला और कमज़ोर था। बड़ी मुश्किल से साँस ले पाता था। आख़िर उसकी माँ आई और बच्चे को अपने साथ ले गई। पर उसे गोद में उठाकर ले जाना पड़ा।

    अगले रोज़ जेन्को उठ नहीं सका। तीसरे रोज़ उसने आख़िरी साँस ली। घोड़े की जीन के कपड़े से ढके बिस्तर पर वह हमेशा की नींद में सो गया। जब वह इस तरह मृत्यु के आग़ोश में था तो खिड़की के पास चेरी के वृक्ष पर अबावील पक्षी चहकने लगे, सूरज की किरणें भीतर झाँकने लगीं और बालक के लच्छेदार बाल और रक्तहीन सूखे चेहरे के चारों ओर ज्योति का एक पुंज दमकने लगा। मानो किरणों ने इस नन्हें से बालक की आत्मा को स्वर्ग में ले जाने का मार्ग बना दिया था।

    ऐसे बदनसीब बालक को कम से कम मृत्यु की इस घड़ी में सूरज की रोशनी से भरा एक उज्ज्वल और चौड़ा मार्ग नसीब हुआ था, वरना जीवन-भर उसे कँटीले रास्ते पर ही चलना पड़ा था। उसकी बेजान छाती अभी भी हलके-हलके हिल रही थी। बालक अभी भी बाहरी दुनिया की आवाज़ों के प्रति सचेत था, जो खिड़की की मार्फ़त भीतर रही थी।

    शाम का वक़्त था। खेतिहर बालाएँ काम से लौट रही थीं और गाते हुए जा रही थीं। पास से ही नदी की कलकल सुनाई दे रही थी। जेन्को ने आख़िरी मर्तबा देहात के संगीत को सुना। घोड़े की जीन के कपड़े पर उसके पास ही वह सारंगी भी रखी थी, जो उसने काठ के टुकड़े से बनाई थी। मरणासन्न बालक का चेहरा अचानक चमक उठा। उसके सफ़ेद होंठ फुसफुसाए, “माँ!”

    'क्या बात है मेरे लाडले? माँ ने पूछा, लेकिन उसकी आवाज़ सिसकियों में दब गई।

    माँ, भगवान् मुझे स्वर्ग में असली वायलिन देगा?

    हाँ, मेरे बच्चे। वह इससे ज़्यादा कुछ नहीं बोल पाई। भीतर जज़्ब आँसुओं का सैलाब फूट पड़ा था। वह केवल बुदबुदाई।

    जीसस! फिर मेज़ पर सिर रखकर फूट-फूटकर विलाप करने लगी।

    सब ख़त्म हो चुका था। जब उसने सिर उठाया तो देखा कि नन्हें संगीतकार की आँखें खुलीं पर निश्चल थीं। मुख पर शांति, गंभीरता और दृढ़ निश्चय झलक रहा था। सूरज डूब चुका था। नन्हें जेन्को, ईश्वर तुम्हें शांति दे!

    अगले रोज़ बैरन और उसके परिवार वाले इटली से अपने बँगले में लौट आए। घर के दूसरे सदस्यों के साथ बेटी और उसका मँगेतर भी था।

    इटली वाक़ई कितना दिलकश देश है? वह युवक बोला।

    हाँ, वहाँ के लोग भी शानदार हैं। कलाकारों का देश है। वाक़ई उनकी कला को देखने और उसे प्रोत्साहित करने में कितना आनंद मिलता है। नवयुवती ने जवाब दिया।

    जेन्को की क़ब्र पर कितने ही कीड़े-मकोड़े भिनभिना रहे थे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 18-26)
    • संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
    • रचनाकार : हेन्रिक एडम अलकसेनडर पियस सींकीविक्ज़
    • प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
    • संस्करण : 2008

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