आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "uttra sumitranandan pant ebooks"
Doha के संबंधित परिणाम "uttra sumitranandan pant ebooks"
जात पांत के फेर मंहि
जात पांत के फेर मंहि, उरझि रहइ सब लोग।मानुषता कूं खात हइ, रैदास जात कर रोग॥
रैदास
जाति-पाँत की भीति तौ
जाति-पाँत की भीति तौ, प्रीति-भवन में नाहिं।एक एकता-छतहिं की, भिलति सब काहिं॥
दुलारेलाल भार्गव
हीरों की ओबरी नहीं
हीरों की ओबरी नहीं, मलयागिरि नहिं पाँत।सिंहों के लेहँड़ा नहीं, साधु न चले जमात॥