युद्धनाच

yuddhnach

भुवन ढुंगाना

भुवन ढुंगाना

युद्धनाच

भुवन ढुंगाना

और अधिकभुवन ढुंगाना

    वे नाचते रहे, नाचते रहे

    समय ख़त्म हुआ था नहीं

    लालबत्ती जलती रही चहुँओर

    वे आग जलाकर बत्तियों को खोजते रहे

    बत्तियाँ और आग भी नाचती रही

    धुएँ के पर्दे में वे लाल सूर्य को खोजते रहे

    दिन हुआ ही नहीं रात ख़त्म हुई

    ऐसे ही वे दिन-रात नाचते रहे

    भूमि पर टिके उनके पाँव और मिल गए

    उठा ले गए तलवे

    तलवे गिनने की फ़ुर्सत नहीं थी उनको

    बिन तलवे के आदमियों को छोड़ दिया उन्होंने

    ये नाच नहीं सकते थे, मात्र हिलाते थे हाथ

    दूर-दूर तक पहुँचाता रहा हाथ उनको

    कोई स्टेज नहीं था

    ऐसे ही वे नाचते रहे।

    लाल कालीन बिछाई थी पुरुषों ने सारे रास्ते में

    वहीं स्त्रियाँ

    पलाश के फूलों से पुत्र खोजती रहीं

    पुत्र लाल कालीन के नीचे छिपते रहे,

    —खोए रहे, सोए रहे

    स्त्रियाँ पलाश के लाल फूल तोड़ती रहीं

    पेड़ अब भी सूखा नहीं था

    प्रेमिका ने जूड़े में फूल लगाया,

    खोलकर अपनी लाल साड़ी

    प्रेमी के रास्ते में बिछाने के लिए

    वह सुस्त-सुस्त नाचती रही

    उसका पलाश-पल्लव नहीं मुरझाया

    प्रेमी ने दूर-दूर से सूँघा उस सुगंध को

    'मैं जल्दी ही आऊँगा' समय निश्चित किया

    प्रेमिका ने फूल चढ़ाया

    उसका जूड़ा खुलता रहा

    इस प्रकार वह नाचती रही

    वह रो-रोकर, हँस-हँसकर नाचती रही प्रतीक्षारत

    बेटे-बेटियों ने धुएँ में आँखें मीचीं

    डरते हुए, चिल्लाते हुए, रोते हुए आँखें खोलीं

    अब भी पिता सूर्य ढूँढ़कर नहीं लाए थे

    बच्चों ने सफ़ेद काग़ज़ में लाल सूर्य बनाया

    पिता की लटकी हुई तस्वीर में उसे टाँग दिया

    ऐसे ही वे नाचते रहे उछल-उछलकर

    युवकों ने हाथ में ढोया लाल सूर्य को

    बहनों ने गूँथीं पलाश की मालाएँ

    हाथ हिलाया माँ ने दूर से ही

    माँ की गोद में लिपट गए बच्चे

    लालबत्ती जली—बुझी

    आग जली—बुझी

    उजाला दिखाते गए युवक लाल सूर्य ढोते हुए

    माँ ने ढूँढ़ा बेटे को वहाँ

    प्रेमिका को प्रेमी मिला वहाँ

    बेटे-बेटियों ने चलचित्र देखा वहाँ

    इसी तरह वे मंद-मंद नाचते रहे

    एक स्टेज में...

    एक स्टेज में...

    उन्होंने घेर लिया वृत्त नृत्य में संपूर्ण स्टेज को

    तालियाँ पीटीं दर्शकों ने

    उनमें से कुछ हँसे, किसी ने आँसू पोंछे

    वे झुंड-झुंड बाहर आए

    नृत्य-चर्चा में मगन—

    स्टेज की बत्ती के उजाले में

    प्रदर्शनकारी 'द एंड' का गीत गाते रहे।

    (बांग्देलाश मुक्तियुद्ध को समर्पित कविता)

    स्रोत :
    • पुस्तक : नेपाली कविताएँ (पृष्ठ 57)
    • संपादक : सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
    • रचनाकार : भुवन ढुंगाना
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1982

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