पवन की पायल

pawan ki payel

अनूप विर्क

अनूप विर्क

पवन की पायल

अनूप विर्क

और अधिकअनूप विर्क

    कुछ गीत भी ऐसे होते हैं

    जो हवा की पायल बनते हैं

    धरती के कानों ज्यों बूँदें

    कुछ गीत तो उड़कर एक बार

    अंबर से ऊपर उड़ जाते

    घर आने की राह भूलते हैं

    और सीने में दर्द जगा जाते

    जल-थल में कहीं नहीं मिलते

    कर जाते पूरी उम्र सूनी

    कुछ गीत...

    कुछ गीत पेड़-से होते हैं

    दुख अपना कभी नहीं कहते

    कभी छाँह बने, कभी माँ बने

    कहीं बादल बने, बरसते हैं

    धरती के सारे सपने ही

    पत्तों में सुंदर गूँथे हैं

    कुछ गीत...

    कुछ गीत हुए प्रेमी जैसे

    मिलके भी कभी वह मिलते नहीं

    तट पर ही करें प्रतीक्षा जो

    कच्चे मटकों संग तिरते नहीं

    संगमरमर-सी हैं बहुत हँसी

    कुछ सुनते नहीं, ये गूँगे हैं

    कुछ गीत...

    कुछ गीत होते हैं माँ जैसे

    सब कष्ट जान पर सहते हैं

    फूलों को बहार देने हित

    ख़ुद उम्र ख़िज़ाँ को सहते हैं

    बेटों को बिठाते पलकों पर

    ख़ुद गीले में सो जाते हैं

    कुछ गीत...

    कुछ गीत होते हैं लोगों के

    लोगों की विरासत बन जाते

    बनते सौंदर्य हैं लोगों का

    जीवन की नफ़ासत बन जाते

    वे गीत रहेंगे सदा यहाँ

    वे मंदिर, मस्जिद और बुँगे हैं

    कुछ गीत...

    कुछ गीत राह में छोड़ आए

    कुछ गीत हमीं से बिछुड़ गए

    हम दुविधा वाली मिट्टी थे

    हम रेत की तरह बिखर गए

    वे घाव बुहत ही गहरे हैं

    ये दर्द ग़मों सम भारी है

    कुछ गीत...

    सोते हैं सदा धरातल पर

    फूलों की सुगंध हो जाते

    उकरे, अंकित हैं पत्तों पर

    मारे रब्ब झुलसाए आग

    होते हुए भी होते हैं

    कुछ गीत...

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 657)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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