एक और सिंह-मूसिक उपाख्यान

ek aur sinh musik upakhyan

जानकी बल्लभ पटनायक

जानकी बल्लभ पटनायक

एक और सिंह-मूसिक उपाख्यान

जानकी बल्लभ पटनायक

और अधिकजानकी बल्लभ पटनायक

    पूनम का चाँद फैला चुका

    अपना विशाल चाँदनी का जाल

    और उस जाल में सागर को

    खींचने लगा है धीरे-धीरे

    कितना विशाल और बलवान

    असहाय है कितना यह सागर!

    झलमलाते एक

    रेशमी रुपहले जाल की फाँस में पड़ा

    उसका निस्तार नहीं

    एक असहाय तिमी मछली की तरह

    मैंने देखा

    चाँदनी के जाल में

    खींच रहा यह सागर

    कोई नहीं सुनता

    उसका गर्जन या आर्तनाद

    बहुत देर बाद जब सागर

    पँहुचता है किनारे झाऊवन के पास

    उसने समझ लिया

    झाऊवन को आश्रय

    फिर आर्तनाद किया

    मैंने देखा झाऊवन का भी साहस

    अपने बेशुमार पत्तों के जाल में

    बाँधने लगा पूनम के चाँद को।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 100)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : जानकी बल्लभ पटनायक
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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