मोतियाबिंद

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नीलेश रघुवंशी

नीलेश रघुवंशी

मोतियाबिंद

नीलेश रघुवंशी

और अधिकनीलेश रघुवंशी

    तो क्या मरीज़ों को ले जाती एम्बुलेंस में अकेले बैठते माँ ने

    हम सब लोगों से अलग होने का फ़ैसला कर लिया होगा

    कितने काँपते मन से लेटी होगी माँ ऑपरेशन टेबल पर

    निगल लिया होगा उस समय ख़ुद को जब

    नौ बच्चे और पिता के होते कोई भी नहीं था पास उसके

    सारा जीवन पिता सुख-दुख में रहे माँ के साथ और भाई वह तो

    माँ की उदासी को आने से पहले ही भाँप लिया करता था

    कल्ले पर रोटी बनाते अगर जल जाती कभी माँ की उँगली

    लाख समझाने पर भी नहीं खाता था रोटी

    फिर यह सब क्यों और कैसे हुआ

    माँ की आँख का ऑपरेशन और हम बहनों को ख़बर भी नहीं

    नि:शुल्क अस्पताल में दाख़िल किया माँ को नियम में शामिल है जिसके

    मरीज़ को सौंपना और मिलने-जुलने की सख़्त मनाही

    हम बहनें भी तो कैसी डूबीं अपनी-अपनी गृहस्थी में

    अपने ही घर में मची उथल-पुथल और पाँव पसारते अभावों से रहे

    हम सब कोसों दूर

    एक हादसा बना माँ की आँख का ऑपरेशन हिला दिया

    जिसने सबकों भीतर तक

    माँ कभी भी अकेले हाट-बाज़ार नहीं गई

    किसी शादी-ब्याह और नानी के यहाँ भी

    मामा के संग गई या गई हम में से किसी एक को लेकर

    जो माँ में दुबक कर चलता

    ट्रेन में बैठता तो दूर कई बरस तक माँ ने उसे देखा भी नहीं

    जब पहली बार माँ ने ट्रेन को देखा तो ऐसा डरी कि वापस घर लौट आई

    और अब जीवन में

    पहली बार घर से अकेले निकली भी तो कैसे निकली माँ

    दिन-रात अपने दोस्तों और घर-परिवार से घिरी पहुँच जाती हूँ

    माँ की उमर में

    जर्जर बुढ़ापे से घिरी आँख पर हरी पट्टी चढ़ाए कोई नहीं आस-पास

    चिल्लाती हूँ ज़ोर से नींद में थामते हैं माँ के हाथ

    देखती हूँ अपने हाथों को

    जब ज़रूरत थी माँ को हमारी

    हम सब बेफ़िक्र मस्त थे अपनी-अपनी दुनिया में

    कैसे जीवन भर सहेजती रही माँ भरा-पूरा परिवार

    सबको एक साथ उठते-बैठते देख छलछलाती थी ख़ुशी से

    कोई कमी नहीं अब जीवन में कहते एक ठसक से भर उठती थी माँ

    हरी पट्टी खुलने के बाद माँ ने देखा वह सब कुछ

    जो नहीं चाहती थी देखना

    जिन्हें देखना चाहती थी वे सब नहीं थे उस समय

    क्या माँ की आँखों में बरहमेश अनुपस्थित रहेंगे हम सब

    बहुत कम जगह निकली उन आँखों में माँ के लिए

    जिनमें काजल लगाया करती थी वो

    ऑपरेशन के बाद माँ की आँख का जाला तो हट गया

    लेकिन हमारी आँख का जाला

    क्या होगा उसका

    क्या वह पीढ़ी दर पीढ़ी गहराता जाएगा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीलेश रघुवंशी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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