अट्ठाईस साल की उम्र में
रोचक तथ्य
इस कविता के लिए कवि को भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
सचमुच यही उसके प्रेम करने की सही उम्र है
जहाँ उसके सपनों में लहलहा रहा हो
एक पवित्र सुर्ख़ लाल गुलाब
इसी उम्र में दिल से निकलती है सच्ची प्रार्थना
जिसे क़बूल करने से हिचकिचाता है समाज
इसी उम्र में खुलते हैं डैने जिससे तौलना पड़ता है सारा आकाश
इसी उम्र में पैर में लग जाते हैं चक्के
जिससे नापनी पड़ती है सारी पृथ्वी
यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण उम्र होती है
जहाँ सबसे ज़रूरी होता है एक अनुभवी प्रेमी का अनुभव
पर अफ़सोस अपने अनुभव को सबसे श्रेष्ठ और सबसे पवित्र बताते हुए
हम ठगे जाते हैं
कभी-कभी हम जीत जाते हैं और जश्न मनाते हुए
रँगे हाथों पकड़ लिए जाते हैं अपने अंदर ही
यहाँ तन हावी नहीं होता मन पर
मन बहुत ही हल्का पारदर्शी और पवित्र होता है इस उम्र में
तन की बात ही नहीं करता मन
ऐसी स्थितियों से गुज़र चुका हूँ मैं
जहाँ सिर्फ़ दो आखें और दो बातें ही महत्त्वपूर्ण होती हैं
इससे भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण होता है
सपने में लहलहा रहे सुर्ख़ पवित्र गुलाब का लहलहाते रहना
पर क्या करूँ
जब सुबह उठता हूँ रात में भंभोड़ दिए गए
एक जंगली जानवर के पंजों तले अपने क्षत-विक्षत शव के लिए
तब लगता है बिना तुम्हें पाए तुम्हें प्रेम करना एक नाटक करना है
कई बार सोचा तुम्हें कहूँ
प्रेम की अंतिम परिणति दो रानों के बीच होती है
हर बार बीच में आ गई
तुम्हारी दो आँखों में दिपदिपाती हुई पवित्रता
लहलहाता हुआ सुर्ख़ गुलाब
और ऐसा क्यूँ लगता कि गंगा से नहाकर माँ के साथ लौट रहा हूँ घर
शायद तुम्हारे अंदर मेरी माँ भी है
एक बार इसी पवित्रता से डरकर
एक और पवित्रता की खाल ओढ़े तुम्हें निमंत्रित कर बैठा था
—''चलो शादी कर लें।''
—नहीं, पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद''
तुम्हारे सामने अंदर का जानवर न जाने क्यों शांत ही रहता है
उस दिन उस समय भी शांत रहा
जबकि रात में बिस्तर पर एक बार और वह हिंसक हो उठा था
मैं मजबूर-लाचार हो 'प्यार' और 'पवित्रता' जैसे शब्दों से क्षमा-याचना माँगता रहा
अपने को भंभोड़वाते हुए
तुम क्या जानो
एक अट्ठाईस साल की उम्र के लड़के की ज़रूरत
जो अपनी उम्र चौबीस साल बतला रहा हो
आख़िर तुम्हारी उम्र कम है
और इस उम्र से मैं भी गुज़र चुका हूँ।
- रचनाकार : निशांत
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.