शुभ विवाह

shubh wiwah

तसलीमा नसरीन

तसलीमा नसरीन

शुभ विवाह

तसलीमा नसरीन

और अधिकतसलीमा नसरीन

    मेरी ज़िंदगी पर

    नदी-पाट पर कब्ज़ा करने की तरह

    कब्ज़ा किए हुए है एक वहशी पुरुष।

    मेरा शरीर उसने चाहा है अपने अधीन।

    जैसे चाहे मुँह पर थूक सके। गाल पर थप्पड़ जड़ सके

    और नितंबों पर काट सके चिकोटी।

    मनमर्जी से कपड़े-लत्ते उतार

    मुट्ठी में ले सके नग्न सुंदरता।

    चाहे तो नोंचकर फेंक सके आँखें

    जी में आए तो बेड़ियाँ डाल दे पैरों में

    इच्छानुसार निर्विकार चाबुक चला सकता है

    मन हो तो काट ले हाथ, हाथ की उँगलियाँ।

    चाहे तो कटे पर छिड़क सकता है नमक

    आँखों में डाल सकता है पिसी मिर्च की बुकनी।

    इच्छा हो तो कटार से रेत कर काट सके जाँघे

    चाहे तो फाँसी पर झुला दे देह।

    मेरा दिल उसने चाहा है अपने कब्ज़े में

    ताकि उसे प्यार करूँ

    रात के अकेले कमरे में

    दुश्चिंता में निद्राहीन

    खिड़की की सलाख़ें पकड़े इंतज़ार में रोऊँ।

    आँसू से गूंधकर तैयार रोटियाँ सेंककर रखूँ,

    उसकी बेशर्म देह का पसीना

    पान करूँ अमृत की तरह।

    उसे प्यार कर गल जाऊँ सुनहरी मोम की तरह का

    किसी मर्द की तरफ़ आँखें उठाकर देखूँ

    आजीवन देती रहूँ सतीत्व का प्रमाण।

    उसे प्यार करते हुए

    किसी चाँदनी रात में भयानक उन्माद में

    मैं कर लूँ आत्महत्या।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तसलीमा नसरीन की कविताएँ (पृष्ठ 16)
    • रचनाकार : तसलीमा नसरीन
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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