बूढ़ी अम्मा कि बात

buDhi amma ki baat

अज्ञात

अज्ञात

बूढ़ी अम्मा कि बात

अज्ञात

और अधिकअज्ञात

    एक था किसान। गोमा मोरी नाम था उसका। गुज़र-बसर लायक़ खेती थी। एक गाय, एक जोड़ी बैल, बीस बकरियाँ थीं। छोटा-सा घर। घर के सामने पशु बाँधने का बाड़ा। तीन साल से वर्षा बहुत कम हुई थी। न फ़सलें हुईं थीं न चारा। इस वर्ष भी आषाढ़ सूखा ही रह गया। वर्षा की कोई आशा नही बँधी थी। खेत जोतकर क्या करूँगा? गोमा ने एक लंबी साँस छोड़ी और मन-ही-मन सोचा। वह बैलों को हाँकते हुए वापिस घर की ओर चल पड़ा।
     
    अगले दिन गोमा बड़े सवेरे सोकर उठा। गाय, बैल व बकरियों को बाड़े से निकाला। उसकी पत्नी बकरियों को घेरकर उन्हें चराने चली गई। उसने फिर हिम्मत बटोरी और हल को बैलों के कँधे पर रखकर चल पड़ा खेतों की ओर। रास्ते में उसे कई किसानों ने टोककर कहा कि गोमा! खेत जोतने से क्या होगा? वर्षा के तो कुछ भी आसार नहीं दिख रहे। गोमा ने सब की बात सुनी। कई बार उसका मन डाँवाडोल भी हुआ फिर भी उसने हिम्मत रखी और कुछ सोचकर खेत पर पहुँच गया।
     
    उसने आकाश की ओर देखा। सूरज आग के गोले की तरह जल रहा था। उसने धरती को भी निहारा। खेतों में गहरी और चौड़ी दरारें पड़ गई थीं। वह बैलों को देखकर उनकी दशा से भी चिंतित था। भूख-प्यास सहन करते-करते वे बहुत दुबले हो गए थे। वह थोड़ा निराश भी हुआ। उसे बैलों की दशा पर दया हो आई। उसने फिर एक लबी साँस छोड़ी और खेत की मेंड़ पर एक वृक्ष के नीचे बैठकर सोचने लगा। क्या करे वह? खेत जोते या उसे यों ही पड़ा रहने दे। वह सोचता रहा। थोड़ी देर बाद वह उठा और दुखी मन से बैलों को हाँककर घर की राह पकड़ ली। उसने निर्णय कर लिया कि वह तब तक खेत नहीं जोतेगा जब तक कि वर्षा नहीं हो जाती।
     
    धूप काफ़ी तेज़ थी। दूसरे दिन वह और भी निराश हो गया। उसके पैर न आगे बढ़ते थे और न पीछे जाने की उनमें हिम्मत ही थी। रास्ते में एक पेड़ के नीचे उसने बैलों को रोका और वहीं नीचे ज़मीन पर बैठ गया।
     
    तभी वहाँ पर एक बूढ़ी अम्मा आ गई। वह भी उसी पेड़ के नीचे बैठ गई। गोमा ने पूछा, “अरी ओ बूढ़ी अम्मा! कहाँ से आ रही हो इतनी तेज़ धूप में? तुम्हें किधर जाना है?” बूढ़ी अम्मा ने कहा, “मैं तो अपनी नातिन से मिलने पास के गाँव जा रही हूँ। लेकिन तुम इस समय यहाँ क्या कर रहे हो? यह समय तो खेत में हल जोतने का है। लेकिन तुम यहाँ आराम कर रहे हो। क्या तुम बीमार हो या तुम्हारे बैल बीमार हैं। कहीं तुम्हारा हल टूट तो नहीं गया है?”
     
    गोमा बोला—“नहीं अम्मा! न तो मैं बीमार हूँ और न ही मेरे बैल बीमार हैं? मेरा हल भी नहीं टूटा है। टूटी है तो मेरी हिम्मत। अम्मा तुम तो जानती हो तीन साल से वर्षा ठीक से नहीं हुई है। इस वर्ष भी यही हाल है। खेत जोतकर क्या करूँ?”
     
    बूढ़ी अम्मा बोली—“देखो बेटा! वर्षा तुम्हारे हाथ में नहीं है। यह तो प्रकृति पर निर्भर है। जब बादल बनेंगे तो वर्षा अवश्य होगी। तुम्हारा काम है खेत जोत जोतकर तैयार करना। तुम अपना काम समय पर करो। प्रकृति अपना काम अवश्य समय पर करेगी। वर्षा अवश्य होगी।”
     
    गोमा पुनः बूढ़ी अम्मा से बोला—“अम्मा खेत बहुत कठोर हो गए हैं। मेरे बैल दुबले हैं, इन्हें पेटभर चारा तक नहीं मिल रहा है। पीने के लिए पानी तक की दिक़्क़त है। चारा-पानी ही क्या यहाँ तो पेड़ों की पत्तियाँ तक ख़त्म हो गई हैं। बेचारे बैल कैसे हल खींचे? वर्षा की आस हो तो हिम्मत भी बँधे।” गोमा ने निराश मन से अपनी बात कही।
     
    बूढ़ी अम्मा बोली—“बेटा! तुम निराशा की बात मत करो। पेड़ों की बात भी तुमने ख़ूब कही। पेड़ तो यहाँ सब लोग काट रहे हैं। देखो अब पेड़ भी कहाँ बचे हैं? जब पेड़ ही नहीं होंगे तो पत्तियाँ कहाँ से आएँगी? अगर पेड़ अधिक होते तो वर्षा भी अवश्य हो जाती। सारे जंगल से पेड़ों की कटाई जारी है। पेड़ नहीं होंगे तो हरियाली कहाँ से होगी? हरियाली नहीं तो वर्षा भी नहीं। लेकिन जो हुआ सो हुआ। अब तो तुम लोग पेड़ों पर ध्यान दो। तुम निराश मत होओ। खेतों में हल चलाओ। उन्हें हाँक-जोत कर बोने के लिए तैयार करो। इस मौसम में कभी-न-कभी तो वर्षा अवश्य होगी। बूढ़ी अम्मा ने मुस्कुराकर गोमा की हिम्मत बढ़ाई। वह उठी और लकड़ी टेकती हुई अपनी राह चल दी।
     
    वैसे तो गोमा मन से निराश था मगर बूढ़ी अम्मा की बातों से उसको थोड़ी आशा बढ़ी। अगले दिन उसने पूरे उत्साह से अपना खेत जोतना शुरू कर दिया। उसने लगातार चार दिन तक हल चलाया। खेत ख़ूब अच्छी तरह तैयार हो गए। गोमा अपना काम पूरा करके बहुत प्रसन्न था। अब वह बैलों को हाँकते हुए घर की ओर चल पड़ा। पूरी राह वह गुनगुनाता रहा। उस रात उसे नींद भी अच्छी तरह आई। चार दिन की कड़ी मेहनत के कारण वह निढाल होकर सोया।
     
    सवेरे जब वह सोकर उठा तो गाय रंभा रही थी। बकरियाँ मिमिया रही थीं। सवेरे-सवेरे अपने पशुओं की ये आवाज़ें सुनने के लिए उसके कान तरस गए थे। वह पुलककर उठा। उसकी पत्नी ने आँगन से आवाज़ लगाई। अजी सुनते हो! बाहर तो आओ। वर्षा होने वाली है। गोमा झटपट बाहर आया। उसने देखा मौसम बहुत सुहाना हो गया है। आसमान में बादल घुमड़ आए थे। उसने बादलों को जी भरकर निहारा। उसे लगा मानो बादलों से बूढ़ी अम्मा की मुस्कुराती हुई आकृति उभर आई हो। उसे बूढ़ी अम्मा की बात रह-रहकर याद आ रही थी। उसने मन-ही-मन बूढ़ी अम्मा को प्रणाम किया और सोचा कि वह ठीक ही कह रही थी कि तुम अपना काम समय पर करो। बादल बरसने लगे। आँगन तर-बतर हो गया। गोमा को लगा मानो बूढ़ी अम्मा उससे कुछ कह रही हों। वह बूढ़ी अम्मा से कुछ कहना चाहता था। तभी बारिश और तेज़ हो गई। 
    स्रोत :
    • पुस्तक : दुर्वा (भाग-3), कक्षा-8 (पृष्ठ 104)
    • प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी
    • संस्करण : 2022

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए