अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट हिटमैन—(Walt Whitman)

america ka mast jogi walt hitmain—(walt whitman)

सरदार पूर्ण सिंह

सरदार पूर्ण सिंह

अमेरिका का मस्त जोगी वाल्ट हिटमैन—(Walt Whitman)

सरदार पूर्ण सिंह

और अधिकसरदार पूर्ण सिंह

    अमेरिका के लंबे-लंबे हरे देवदारों के घने वन में वह कौन फिर रहा है? कभी यहाँ टहलता है कभी वहाँ गाता है।

    एक लंबा, ऊँचा, वृद्ध-युवक, मिट्टी-गारे से लिप्त, मोटे वस्त्र का पतलून और कोट पहने, नंगे सिर, नंगे पाँव और नंगे ही दिल अपनी तिनकों की टोपी मस्ती में उछालता, झूमता जा रहा है। मौज आती है तो घास पर लेट जाता है। कभी नाचता, कभी चीख़ता और कभी भागता है। मार्ग में पशुओं को हरे तृण का भोज उड़ाते देख आनंद में मग्न हो जाता है। आकाश-गामी पक्षियों के उड़ान को देख हर्ष में प्रफुल्लित हो जाता है। जब कभी उसे परोपकार की सूझती है तब वह गोल-गोल श्वेत शिवशंकरों को उठा-उठा कर नदी की तरंगों पर बरसाता है। आज इस वृक्ष के नीचे विश्राम करता है, कल उसके नीचे बैठता है जीवन के अरण्य में वह धूप और छाँह की तरह बिचरता चला जाता है। कभी चलते-चलते अकस्मात ठहर जाता है, मानो कोई बात याद गई। बार-बार गर्दन फेर-फेर और नेत्र उठा-उठा कर वह सूर्य को ताकता है। सूर्य की सुनहली सोहनी रोशनी पर वह मरता है। समीर की मंद-मंद गति के साथ वह नृत्य करता है, मानो सहस्रों वीणाएँ और सितार उसको पवन के प्रवाह में सुनाई देते हैं। इस प्राकृतिक राग की आँधी के सामने मानुषिक राग, दिनकर के प्रकाश में टिमटिमाती हुई दीप-शिखा के समान तेजोहीन प्रतीत होते हैं उसके भीतर बाहर कुछ ऐसी साधारण मधुरता भरी है कि चंचरीक के समूह के समूह उसके साथ-साथ लगे फिरते हैं। उसके हृदय का सहस्र दल ब्रह्म-कमल ऐसा खिला है कि सूर्य और चंद्र भ्रमरवत उस विकसित कमल के मधु का स्वाद लेने को जाते हैं। बारी-बारी से वे उसमें मस्त होकर बंद होते हैं और प्रकाश पाकर पुनः बाहर आते हैं।

    उस सुंदर धवल केशधारी वृद्ध के वेश में कहीं नयागरा की दूध धारा तो नहीं फिर रही है? यह मस्त वनदेव कौन है। चलता इस लटक से है मानो यही इस वन का राजा या गंधर्व है पत्ता-पत्ता, कली-कली, नली-नली, डाली-डाली, तने-तने को यह ऐसी रहस्य-पूर्ण दृष्टि से देखता है मानो सब इसी के दिलदार और यार हैं। सामने से वे दो कृपक-महिलाएँ दूध की ठिलियाँ उठाए गाती हुई आती हैं। क्या ही अलौकिक दृश्य है। औरों को तो ये दो अबलाएँ अस्थि और माँस की पुतलियाँ ही प्रतीत होती हैं, परंतु हमारे मस्तराम की आश्चर्य भरी आँखों को वे केवल बाँस की पोरियाँ ही दीखती हैं। उसकी निगूढ़ दृष्टि उनसे लड़ी। वे दोनों इस वृद्ध युवक को आवारा समझ कुछ ख़फ़ा हुई, कुछ शरमाई और कुछ मुसकराई। उसने उनके मतलब को जान लिया। वह हँसा, खिलखिलाया और सलाम किया। नयनों से कुछ इशारे किए, आँसू बहाए। किसी की प्रशंसा की, कोई याद आया, किसी से हाथ मिलाया और उसे दिल दे दिया। यह दृश्य हमारे मस्त कवि का एक काव्य हुआ।

    वे दो खोखले वृक्ष, वेश बदल कर और वृद्ध स्त्रियों का रूप बनाकर, सामने नज़र आए। वे दोनों वृद्धाएँ हाथ में हाथ मिलाए कुछ अलापती जा रही हैं। उसने जिन दो पूर्व युवतियों, हुस्न की परियों, विकसित कलियों, को देखकर अपना काव्य-प्रवाह बहाया था उसी पवित्र काव्य-गंगा को वृक्षों के चरणों में भी छोड़ दिया। वह सौंदर्य का कितना बड़ा पुजारी है। वह हर वस्तु में सुंदरता ही सुंदरता देखता है। क्यों नहीं, तत्त्ववित् है न। उसके अनुभव में आया है कि उसकी एकमात्र प्यारी नाना रूपों में प्रत्यक्ष हुई है। प्रत्येक वस्तु सुंदर है—क्या बाँस की लंबी-लंबी पोरियाँ और क्या वट के खोखले तने। या तो संसार की दृष्टि ही अपूर्ण है, या मेरी ही दृष्टि मदमाती है। उनमें अंतर अवश्य है। जो आँख हर आँख में अपने ही प्यारे को देखती है वह भला तुम्हारी कला के पैमानों के कारागार में कैसे बंद हो सकती है। बस सौंदर्य का सच्चा पुजारी यही है यह सब को सदा यही सुनाता है—तुम भले, तुम भले”।

    अमेरिका के वन में नहीं, जीवन के अरण्य में यह कौन जा रहा है? यह प्रकृति का बंभोला कौन? यह वन का शाहदौला है कौन? यह इतना शरीफ़ अमीर होकर ऐसा रिंद फ़क़ीर है कौन? अमेरिका वही मूर्ख [बहिर्मुख], तत्त्वहीन, मशीन-रूपी नरक में यह जीता जागता ब्रह्मज्ञानरूपी स्वर्ग कौन है? इसकी उपस्थिति मात्र से मनुष्य की आभ्यंतरिक अवस्था बदल जाती है। अमेरिका की बहिर्मुख सभ्यता को लात मार कर, बिरादरी और बादशाह से बाग़ी होकर, क़ालीनों को जला कर, महलों में आग लगाकर यह कौन जाड़ा मना रहा है? प्रभात की फेरी वाला, जंगल का जोगी, अमेरिका का स्वतंत्र और मस्त फ़क़ीर वाल्ट हिटमैन अपनी काव्यरचना करता हुआा जा रहा है।

    वह कोमल और ऊँचे, लंबे और गहरे, स्वरों में एक संदेशा देता जा रहा है सभ्यता के नगरों से यह जोगी जितनी ही दूर होता जाता है उसका स्वर उतना ही गंभीर होता जाता है।

    वास्तव में मनुष्य स्वतंत्रता प्रिय है। किसी प्रकार के दासपन को वह नहीं सह सकता। आजकल अमेरिका में लोग अमीरी से तंग गए हैं। उनकी हँसी एक प्रकार की मिस्सी है। जो किसी को मुख दिखाना हुआ झट मल ली। वहाँ घर और वस्त्रों को कफ़न और क़ब्र बनाकर मनुष्य-जीवन का प्रवाह दबाया जाता है। चमकता हुआ कुलदार ही इस बाह्य जीवन को स्थिर रखने का वहाँ ख़ुदा है। जैसे भारतवासी फ़ोटो उतरवाते समय ओठों और मूछों के कोण और कोटों के किनारे सँभालते हैं उसी तरह आधुनिक कलदार-सभ्यता (Dollar Civilization) में जीते जागते मनुष्यों को सुंदर फ़ोटो रूप बनकर अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता है। उनके आचरण हृदय-प्रेम की ताल में तुले नहीं होते, वे कृत्रिम होते हैं। वहाँ काव्य के नृसिंह भगवान हिटमैन ने अपने उच्चानाद से हिंदुओं की ब्रह्मविद्या और ईरान की सूफ़ी विद्या को एक ही साथ घोषित किया है। वाल्ट हिटमैन के मत में वह मनुष्य ही क्या जो ब्रह्म-निष्ठ नहीं। वह एक मनुष्य के जीवन में मनुष्यमात्र का जीवन और मनुष्य मात्र के जीवन में एक मनुष्य का जीवन देखता है। उसके काव्य का प्रवाह आकाशवत सार्वभौम है। जैसे आकाश समस्त नक्षत्र आदि को उठाए हुए है उसी तरह उसका काव्य सब चर और अचर, नर और नारी को, चमकते दमकते तारों की तरह, अपने में लपेटे हुए है। वह सब के मन की कहता है और सब उसको अपने मन की बात बताते हैं। ग़रीबों को अमीर और अमीरों को ग़रीब करने वाला कवि यही है। अपने आनंद की मस्ती में उसे काव्य की तुकबंदी भी बंधन प्रतीत होती है। वह प्रत्येक दोहे-चौपाई को पिंगल के नियम की तराजू में नहीं, किंतु अपने हृदयानंद के ताल में तौलता है। जो लोग मिश्र के पिरीमिड़ को उत्तम कला कौशल का नमूना मानते हैं उनकी सुंदरता देखने की दृष्टि पर्दानशीनों की सी हैं। प्रकृति बाह्य अनियमित दृश्य इन पर्दानशीनों के नियमित दृश्यों से कहीं बढ़ चढ़कर हैं। जो भेद समुद्र की छाती के उभार के प्रेमियों और एक युवती के वक्षस्थल के उभार के प्रेमियों में है, वही भेद हिटमैन के सदृश स्वतंत्र काव्य-प्रेमियों और तुकबंदी के प्रेमियों में है। बाग़ बनाना तो मानुषी कला है, और जंगल बनाना दिव्य कला है। चित्र बनाना तो जीतों को मुर्दा बनाना है और मुर्दा प्रकृति को जीवित संसार बना देना ब्रह्मकला है। और कवि तो केवल चित्र बनाते हैं, परंतु यह कवि जीते जागते प्राणियों को अपने काव्य में भरता है। नीचे हम वाल्ट हिटमैन की पोयम्स ऑफ़ जॉय (Poems of Joy) नामक कविता के कुछ खंडों का तरजुमा, नमूने के तौर पर, देते हैं:—

    आनंद काव्य

    ओ: कैसे रचूँ आनंद भरी, रसभरी, दिल भरी कविता—रागभरी, पुँस्त्व भरी, स्त्रीत्व भरी, बालकत्व भरी, संसार भरी, अन्न भरी, फल भरी, पुष्प भरी॥ ओ:! पशुओं की ध्वनि लाऊँ, मछलियों की फुर्ती, और उनके तुले हुए तैरते शरीरों को लाऊँ। चारों ओर हो विशाल समुद्र का जल, खुले समुद्र पर हों खुले बादबाँ, और चले हमारी नैया॥ ओ:! आत्मानंद का दरिया टूटा, पिंजड़े टूटे, दीवारें टूटीं, घर बह गए और शहर बह गए। इस एक छोटी पृथ्वी से क्या होता है? लाओ, दे दो सब नक्षत्र मुझे, सब सूर्य मुझे, और सब काल मुझे॥

    ***

    ओः! इस अनादि भौतिक पीड़ा को—इस प्रेमदर्द को—दरसाऊँ कैसे अपनी कविता में। कैसे बहाऊँ उस आत्मगंगा के नीर को; कैसे बहाऊँ प्रेमाश्रुओं को अपनी कविता में॥

    जो पृथ्वी है सो हम हैं; जो तारे हैं सो हम हैं; ओः हो! कितनी देर हमने उल्लुओं के स्वर्ग में काट दी।

    हम शिला हैं, पृथ्वी में धँसे हैं; हम खुले मैदान हैं, साथ-साथ पड़े हैं; हम हैं दो समुद्र, जो मिले हैं।

    पुरुष का शरीर पवित्र है, स्त्री का शरीर पवित्र है, फूलों का शरीर पवित्र है, वायु का शरीर पवित्र है, जल पवित्र है, धरती पवित्र है, आकाश पवित्र है, गोबर और तृण की झोपड़ी पवित्र है, प्रेम पवित्र है, सेवा पवित्र है, अर्पण पवित्र है। लो सब अपने आपको तुम्हारे हवाले करता हूँ। कोई भी हो, तुम सारी दुनिया के सामने मेरे हो रहो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबंध (पृष्ठ 151-155)
    • संपादक : प्रभात शास्त्री
    • रचनाकार : सरदार पूर्णसिंह
    • प्रकाशन : कौशांबी प्रकाशन, दारागंज इलाहाबाद

    संबंधित विषय

    यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए