यह उपन्यास जिसकी पृष्ठभूमि है, झारखंड की लौह नगरी। इस पुस्तक में आम लोगों और जन-समाज तथा कर्मचारी वर्ग, इन सबका मिला-जुला चित्रण है। लौह नगरी कल-कारख़ानों के कारण खतरों से घिरी महसूस करती थी। यह पुस्तक द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ का बाद की स्थिति पर आधारित है।