थोकदार किसी की नहीं सुनता प्रसिद्ध कथाकार बटरोही का एक चर्चित उपन्यास है। प्रसिद्ध साहित्यकार पंकज बिष्ट के शब्दों में कहें तो- थोकदार किसी की नहीं सुनता पिछली सदी के मध्य से भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति में हो रहे बदलावों को एक गांव के परिप्रेक्ष्य में देखने, समझने और अभिव्यक्त करने का चुनौतिपूर्ण प्रयास है। एक कठोर नैतिक आग्रह इस उपन्यास की धुरी है। उपन्यासकार बटरोही पहाड़ी ग्रामीण जीवन को जिस संवेदनशीलता, अंतरदृष्टि और आत्मीयता से पकड़ते हैं वह उनकी रचनाओं को एक विशिष्ट आयाम प्रदान करते हैं।
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