'सूरज का सातवाँ घोड़ा' धर्मवीर भारती का एकदम नए ढंग से लिखा कालजयी लघुउपन्यास है, जिसकी भूमिका अज्ञेय ने लिखी है। इस लघुउपन्यास में पंचतंत्र एवं हितोपदेश जैसी शैली में सात दोपहरों की एक कहानी को माणिक मुल्ला द्वारा कहलवाया गया है। माणिक मुल्ला इन कहानियों को इतनी तल्लीनता में डूब कर कहते हैं कि वे कभी संजय तो कभी वाल्मीकि तो कभी चंद तो कभी महेसर तो कभी चमन सिंह जैसे लगने लगते हैं। पूरी कहानी सात दोपहरों में विभाजित है। सात दोपहरों की कहानी माणिक मुल्ला की है और उपोद्घात समेत चार अन्य अध्याय उनके श्रोता ‘मैं’ की टिप्पणियों पर आधारित हैं। कुल मिलाकर बारह भागों में विभाजित यह कहानी माणिक मुल्ला के जीवन संग-संग उनके संपर्क में आए प्रमुख चरित्रों : जमुना,लिली,सत्ती,महेसर,चमन सिंह इत्यादि की ज़िंदगी पर भी प्रकाश डालती है और साथ ही, यह बताती चलती है कि इन पात्रों से जुड़े संदर्भों पर माणिक मुल्ला के श्रोताओं की प्रतिक्रिया कैसी थी। मैं’ के श्रोता किरदार द्वारा मार्क्सवादी चिंतन की विवेचना भी इस उपन्यास में देखने को मिलती है 'मैं' जिसके एक ओर मार्क्सवादी सिद्धांतों का व्यंग्यपूर्ण चित्रण है और दूसरी ओर व्यक्तिवादी कला-पक्ष, कहानी का एक मज़बूत हिस्सा बना रहता है।