यह पुस्तक महावीर प्रसाद द्विवेदी जी द्वारा लिखित 'कालिदास की निरंकुशता' का प्रतिवाद है। इसे श्री दुलारेलाल भार्गव जी ने गंगा पुस्तकमाला से प्रकाशित किया।
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