नारी मन की पीड़ा, उसका विद्रोह, नारी मन स्पंदन, उस पर हुए अत्याचार, नारी का उपयोग सिर्फ़ सजावटी, भोग्या या कुछ और बनकर ज़रूर हुआ है परंतु इन सभी बातों से पनपते विद्रोह का आंदोलन उठ खड़ा हुआ है। अब नारी उस कोढ़ रूपी संस्कार से बाहर आने को , सो साल से जाल में उलझे अपने संस्कारों से बाहर निकलने की तड़फड़ाहट, व्याकुलता के बाद विस्फोट से बाहर निकलने को अमादा है।