बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

20 मई 2024

‘संगीत, प्यार और दर्द से बुना गया एक उपन्यास’

‘संगीत, प्यार और दर्द से बुना गया एक उपन्यास’

“इतने साल पहले मेरे साथ क्या हुआ था? मुझे प्यार मिले या न मिले, मैं उस शहर में बना नहीं रह सकता था। मैंने ठोकर खाई, मेरा दिमाग़ ठस हो गया, मुझे अपनी हर साँस बोझ लगने लगी। मैंने उससे कह दिया कि मैं जा

19 मई 2024

‘मसरूफ़ औरत’ के बारे में

‘मसरूफ़ औरत’ के बारे में

कला-साहित्य से जुड़ी दुनिया की बात करें तो हर युग में व्यक्तिगत स्तर पर सृजन करने वालों की तुलना में युग-निर्माताओं की तादाद हमेशा कम रही है। युग-निर्माताओं से मेरी मुराद ऐसे लोगों से है जिन्होंने के

18 मई 2024

सलमान रश्दी की नई किताब में चाक़ू की कुछ बातें

सलमान रश्दी की नई किताब में चाक़ू की कुछ बातें

उन सुनसान निद्राविहीन रातों में मैंने एक विचार के रूप में चाक़ू के बारे में बहुत सोचा। चाक़ू एक औज़ार था, और उसके प्रयोग से निकलता हुआ एक अर्जित अर्थ भी।  भाषा भी तो एक चाक़ू थी। यह दुनिया को चाक कर स

17 मई 2024

सोडा, बन-मस्का और वाल्टर बेन्यामिन

सोडा, बन-मस्का और वाल्टर बेन्यामिन

सोडा और बन-मस्का  पुणे के कैंप इलाक़े में साशापीर रोड पर एक कम प्रचलित शरबतवाला चौक है। शरबत अरबी शब्द है, शराब भी इसी से निकला है। शरबतवाला चौक पर 1884 में फ़्लेवर्ड सोडा कंपनी की शुरुआत हुई। पुणे

16 मई 2024

एलिस मुनरो की कहानी से

एलिस मुनरो की कहानी से

मेरी माँ मेरे लिए एक पोशाक बना रही थी। पूरे नवंबर के महीने में जब मैं स्‍कूल से आती तो माँ को रसोईघर में ही पाती। वह कटे हुए लाल मख़मली कपड़ों और टिश्‍यू पेपर डिज़ाइन की कतरनों के बीच घिरी हुई नज़र आत

15 मई 2024

जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से-2

जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से-2

जेएनयू क्लासरूम के क़िस्सों की यह दूसरी कड़ी है। पहली कड़ी में हमने प्रोफ़ेसर के नाम को यथावत् रखा था और छात्रों के नाम बदल दिए थे। इस कड़ी में प्रोफ़ेसर्स और छात्र दोनों पक्षों के नाम बदले हुए हैं। मैं पु

10 मई 2024

वालिद के नाम एक ख़त

वालिद के नाम एक ख़त

प्यारे अब्बा! मैं जानता हूँ कि मैं इस तहरीर के पहले लफ़्ज़ को आपको पुकारने के लिए इस्तेमाल करने के लायक़ नहीं हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि मैंने होश सँभालने से लेकर अब तक आपको सिर्फ़ दुख पहुँचाया ह

07 मई 2024

जब रवींद्रनाथ मिले...

जब रवींद्रनाथ मिले...

एक भारतीय मानुष को पहले-पहल रवींद्रनाथ ठाकुर कब मिलते हैं? इस सवाल पर सोचते हुए मुझे राष्ट्रगान ध्यान-याद आता है। अधिकांश भारतीय मनुष्यों का रवींद्रनाथ से प्रथम परिचय राष्ट्रगान के ज़रिए ही होता है, ह

06 मई 2024

एक रोज़ हम लौट आना चाहते हैं

एक रोज़ हम लौट आना चाहते हैं

मई 2024         तुमने कहा—जाती हूँ  और तुमने सोचा कवि केदार की तरह मैं कहूँगा—जाओ लेकिन मेरी लोकभाषा के पास अपने बिंब थे मेरी लोकभाषा में कोई कहीं जाता था ‘तो आता हूँ’ कहकर शेष बच जाता था

05 मई 2024

‘क़िस्साग्राम’ का क़िस्सा

‘क़िस्साग्राम’ का क़िस्सा

‘क़िस्साग्राम’ उपन्यास की शुरुआत जिस मंदिर के खंडित होने से हुई है, उसके लेखन का काल उस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा का समय है। उपन्यासकार प्रभात रंजन इस बात को ख़ुद इस तरह से कहते हैं, ‘‘अन्हारी नामक किसी

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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