शहर पर बेला
शहर आधुनिक जीवन की आस्थाओं
के केंद्र बन गए हैं, जिनसे आबादी की उम्मीदें बढ़ती ही जा रही हैं। इस चयन में शामिल कविताओं में शहर की आवाजाही कभी स्वप्न और स्मृति तो कभी मोहभंग के रूप में दर्ज हुई है।
एक रोज़ हम लौट आना चाहते हैं
मई 2024 तुमने कहा—जाती हूँ और तुमने सोचा कवि केदार की तरह मैं कहूँगा—जाओ लेकिन मेरी लोकभाषा के पास अपने बिंब थे मेरी लोकभाषा में कोई कहीं जाता था ‘तो आता हूँ’ कहकर शेष बच जाता था
‘बिना शिकायत के सहना, एकमात्र सबक़ है जो हमें इस जीवन में सीखना है।’
जैसलमेर 10 मई 2023 आज जैसलमेर आया हूँ। अपनी भुआ के यहाँ। बचपन में यहाँ कुछ अधिक आना होता था। अब उतना नहीं रहा। दुपहर में साथी के साथ हमीरा जाना हुआ। दिवंगत साकर ख़ान के घर। जीवन में लय का बहुत मह