अँधियारे गलियारे में चलते हुए लतिका ठिठक गई। दीवार का सहारा लेकर उसने लैंप की बत्ती बढ़ा दी। सीढ़ियों पर उसकी छाया एक बेडौल फटी-फटी आकृति खींचने लगी। सात नंबर कमरे से लड़कियों की बातचीत और हँसी-ठहाकों का स्वर अभी तक आ रहा था। लतिका ने दरवाज़ा खटखटाया। शोर अचानक बंद हो गया।
‘कौन है?’
लतिका चुपचाप खड़ी रही। कमरे में कुछ देर तक घुसुर-पुसुर होती रही, फिर दरवाज़े की चटखनी के खुलने का स्वर आया। लतिका कमरे की देहरी से कुछ आगे बढ़ी, लैंप की झपकती लौ में लड़कियों के चेहरे सिनेमा के पर्दे पर ठहरे हुए क्लोज़-अप की भाँति उभरने लगे।
‘कमरे में अँधेरा क्यों कर रखा है?’ लतिका के स्वर में हल्की-सी झिड़क का आभास था।
‘लैंप में तेल ही ख़त्म हो गया, मैडम!’
यह सुधा का कमरा था, इसलिए उसे ही उत्तर देना पड़ा। होस्टल में शायद वह सबसे अधिक लोकप्रिय थी। क्योंकि सदा छुट्टी के समय या रात के डिनर के बाद आस-पास के कमरों में रहने वाली लड़कियों का जमघट उसी के कमरे में लग जाता था। देर तक गपशप, हँसी-मज़ाक़ चलता रहता।
‘तेल के लिए करीमुद्दीन से क्यों नहीं कहा?’
‘कितनी बार कहा मैडम, लेकिन उसे याद रहे तब तो!’
कमरे में हँसी की फुहार एक कोने में दूसरे कोने तक फैल गई। लतिका के कमरे में आने से अनुशासन की जो घुटन घिर आई थी, वह अचानक बह गई। करीमुद्दीन होस्टल का नौकर था। उसके आलस और काम में टालमटोल करने के क़िस्से होस्टल की लड़कियों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आते थे।
लतिका को हठात् कुछ स्मरण हो आया। अँधेरे में लैंप घुमाते हुए चारों ओर निगाहें दौड़ाई। कमरे में चारों ओर घेरा बनाकर वे बैठी थी—पास-पास एक-दूसरे से सटकर। सबके चेहरे परिचित थे, किंतु लैंप के पीले मद्धिम प्रकाश में मानो कुछ बदल गया था, या जैसे वह उन्हें पहली बार देख रही थी।
‘जूली, अब तक तुम इस ब्लॉक में क्या कर रही हो?’
जूली खिड़की के पास पलंग के सिरहाने बैठी थी। उसने चुपचाप आँखें नीची कर ली। लैंप का प्रकाश चारों ओर से सिमटकर अब केवल उसके चेहरे पर गिर रहा था।
‘नाइट-रजिस्टर पर दस्तख़त कर दिए?’
‘हाँ, मैडम।’
‘फिर...?’ लतिका का स्वर कड़ा हो आया। जूली सकुचाकर खिड़की से बाहर देखने लगी।
जब से लतिका इस स्कूल में आई है, उसने अनुभव किया है कि होस्टल के इस नियम का पालन डाँट-फटकार के बावजूद नहीं होता।
‘मैडम, कल से छुट्टियाँ शुरू हो जाएँगी, इसलिए आज रात हम सबने मिलकर... और सुधा पूरी बात न कहकर हेमंती की ओर देखते हुए मुस्कुराने लगी।
‘हेमंती के गाने का प्रोग्राम है; आप भी कुछ देर बैठिए न!’
लतिका को उलझन मालूम हुई। इस समय यहाँ आकर उसने उनके मज़े को किरकिरा कर दिया। इस छोटे-से हिल स्टेशन पर रहते उसे ख़ासा अर्सा हो गया, लेकिन कब समय पतझड़ और गर्मियों का घेरा पार कर सर्दी की छुट्टियों की गोद में सिमट जाता है, उसे कभी याद नहीं रहता।
चोरों की तरह चुपचाप वह देहरी से बाहर हो गई। उसके चेहरे का तनाव ढीला पड़ गया। वह मुस्कुराने लगी।
‘मेरे संग स्नो-फ़ॉल देखने कोई नहीं ठहरेगा?’
‘मैडम, छुट्टियों में क्या आप घर नहीं जा रही है?’ सब लड़कियों की आँखें उस पर जम गईं।
‘अभी कुछ पक्का नहीं है—आई लव द स्नो-फॉल!’
लतिका को लगा कि यही बात उसने पिछले साल भी कही थी और शायद पिछले-से-पिछले साल भी। उसे लगा, मानो लड़कियाँ उसे संदेह की दृष्टि से देख रही हैं, मानो उन्होंने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया। उसका सिर चकराने लगा। मानो बादलों का स्याह झुरमुट किसी अनजाने कोने से उठकर उसे अपने में समा लेगा। वह थोड़ा-सा हँसी, फिर धीरे से उसने अपने सिर को झटक दिया।
‘जूली, तुमसे कुछ काम है, अपने ब्लॉक में जाने से पहले मुझसे मिल लेना—वेल, गुड नाइट!’ लतिका ने अपने पीछे दरवाज़ा बंद कर दिया।
‘गुड नाइट मैडम, गुड नाइट, गुड नाइट...!’
गलियारे की सीढ़ियाँ न उतरकर लतिका रेलिंग के सहारे खड़ी हो गई। लैंप की बत्ती को नीचे घुमाकर कोने में रख दिया। बाहर धुँध की नीली तहें बहुत घनी हो चली थीं। लॉन पर लगे हुए चीड़ के पत्तों की सरसराहट हवा के झोंकों के संग कभी तेज़, कभी धीमी होकर भीतर वह आती थी। हवा में सर्दी का आभास पाकर लतिका के दिमाग़ में कल से शुरू होने वाली छुट्टियों का ध्यान भटक आया। उसने आँखें मूँद ली। उसे लगा कि जैसे उसकी टाँगें बाँस की लकड़ियों की तरह उसके शरीर से बँधी हैं जिनकी गाँठें धीरे-धीरे खुलती जा रही हैं। सिर की चकराहट अभी मिटी नहीं थी, मगर अब जैसे वह भीतर न होकर बाहर फैली हुई धुँध का हिस्सा बन गई थी।
सीढ़ियों पर बातचीत का स्वर सुनकर लतिका जैसे सोते से जगी। शॉल को कंधों पर समेटा और लैंप उठा लिया। डॉक्टर मुकर्जी मिस्टर ह्यूबर्ट के संग एक अँग्रेज़ी धुन गुनगुनाते हुए ऊपर आ रहे थे। सीढ़ियों पर अँधेरा था और ह्यूबर्ट को बार-बार अपनी छड़ी से रास्ता टटोलना पड़ता था। लतिका ने दो-चार सीढ़ियाँ उतरकर लैंप को नीचे झुका दिया। ‘गुड इवनिंग डॉक्टर, गुड इवनिंग मिस्टर ह्यूबर्ट!’ ‘थैंक यू मिस लतिका’—ह्यूबर्ट के स्वर में कृतज्ञता का भाव था। सीढ़ियाँ चढ़ने से उनकी साँस तेज़ हो रही थी और वह दीवार से लगे हुए हाँफ रहे थे। लैंप की रौशनी में उनके चेहरे का पीलापन कुछ ताँबे के रंग-जैसा हो गया था।
‘यहाँ अकेली क्या कर रही हो मिस लतिका?’ डॉक्टर ने होंठों के भीतर से सीटी बजाई।
‘चेकिंग करके लौट रही थी। आज इस वक़्त ऊपर कैसे आना हुआ मिस्टर ह्यूबर्ट?’
ह्यूबर्ट ने मुस्कुराकर अपनी छड़ी डॉक्टर के कंधों से छुआ दी—’इनसे पूछो, यही मुझे ज़बरदस्ती घसीट लाए हैं।’
‘मिस लतिका, हम आपको निमंत्रण देने आ रहे थे। आज रात मेरे कमरे में एक छोटा-सा कंसर्ट होगा, जिसमें मि. ह्यूबर्ट शोपाँ और चाइकोव्स्की के कंपोज़ीशन बजाएँगे और फिर क्रीम-कॉफ़ी पी जाएगी। और उसके बाद अगर समय रहा, तो पिछले साल हमने जो गुनाह किए हैं उन्हें हम मिलकर कन्फ़ेस करेंगे।’ डॉक्टर मुकर्जी के चेहरे पर उभरी मुस्कान खेल गई।
‘डॉक्टर, मुझे माफ़ करें, मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है।’
‘चलिए, यह ठीक रहा। फिर तो आप वैसे भी मेरे पास आती।’ डॉक्टर ने धीरे से लतिका के कंधों को पकड़कर अपने कमरे की तरफ़ मोड़ दिया।
डॉक्टर मुकर्जी का कमरा ब्लॉक के दूसरे सिरे पर छत से जुड़ा हुआ था। वह आधे बर्मी थे, जिसके चिह्न उनकी थोड़ी दबी हुई नाक और छोटी-छोटी चंचल आँखों से स्पष्ट थे। बर्मा पर जापानियों का आक्रमण होने के बाद वह इस छोटे से पहाड़ी शहर में आ बसे थे। प्राइवेट प्रैक्टिस के अलावा वह कान्वेंट स्कूल में हाईजीन-फ़िज़ियालॉजी भी पढ़ाया करते थे और इसलिए उनको स्कूल के होस्टल में ही एक कमरा रहने के लिए दे दिया गया था। कुछ लोगों का कहना था कि बर्मा से आते हुए रास्ते में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई, लेकिन इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि डॉक्टर स्वयं कभी अपनी पत्नी की चर्चा नहीं करते।
बातों के दौरान डॉक्टर अक्सर कहा करते हैं—‘मरने से पहले मैं एक बार बर्मा ज़रूर जाऊँगा’—और तब एक क्षण के लिए उनकी आँखों में एक नमी-सी आ जाती। लतिका चाहने पर भी उनसे कुछ पूछ नहीं पाती। उसे लगता कि डॉक्टर नहीं चाहते कि कोई अतीत के संबंध में उनसे कुछ भी पूछे या सहानुभूति दिखलाए। दूसरे ही क्षण अपनी गंभीरता को दूर ठेलते हुए वह हँस पड़ते—एक सूखी, बुझी हुई हँसी।
होम-सिक्नेस ही एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज किसी डॉक्टर के पास नहीं है।
छत पर मेज़-कुर्सियाँ डाल दी गई और भीतर कमरे से पर्कोलेटर में कॉफ़ी का पानी चढ़ा दिया गया।
‘सुना है अगले दो-तीन वर्षों में यहाँ पर बिजली का इंतिज़ाम हो जाएगा—’ डॉक्टर ने स्प्रिट-लैंप जलाते हुए कहा।
‘यह बात तो पिछले सालों से सुनने में आ रही है। अँग्रेज़ों ने भी कोई लंबी-चौड़ी स्कीम बनाई थी पता नहीं उसका क्या हुआ’—ह्यूबर्ट ने कहा। वह आराम-कुर्सी पर लेटा हुआ बाहर लॉन की ओर देख रहा था।
लतिका कमरे से दो मोमबत्तियाँ ले आई। मेज़ के दोनों सिरों पर टिकाकर उन्हें जला दिया गया। छत का अँधेरा मोमबत्ती की फीकी रौशनी के इर्द-गिर्द सिमटने लगा। एक घनी नीरवता चारों ओर घिरने लगी। हवा में चीड़ के वृक्षों की साँय-साँय दूर-दूर तक फैली पहाड़ियों और घाटियों में सीटियों की गूँज-सी छोड़ती जा रही थी।
‘इस बार शायद बर्फ़ जल्दी गिरेगी, अभी से हवा में एक सर्द ख़ुश्की-सी महसूस होने लगी है’—डॉक्टर का सिगार अँधेरे में लाल बिंदी-सा चमक रहा था।
पता नहीं, मिस वुड को स्पेशल सर्विस का गोरखधंधा क्यों पसंद आता है। छुट्टियों में घर जाने से पहले क्या यह ज़रूरी है कि लड़कियाँ फ़ादर एल्मंड का सर्मन सुनें?’ ह्यूबर्ट ने कहा।
‘पिछले पाँच साल से मैं सुनता आ रहा हूँ—फ़ादर एल्मंड के सर्मन में कही हेर-फेर नहीं होता।’
डॉक्टर को फ़ादर एल्मंड एक आँख नहीं सुहाते थे।
लतिका कुर्सी पर आगे झुककर प्यालों में कॉफ़ी उँड़ेलने लगी। हर साल स्कूल बंद होने के दिन यही दो प्रोग्राम होते हैं—चैपल में स्पेशल सर्विस और उसके बाद दिन में पिकनिक। लतिका को पहला साल याद आया जब डॉक्टर के संग पिकनिक के बाद वह क्लब गई थी। डॉक्टर बार में बैठे थे। बॉल-रूम कुमाऊँ रेजीमेंट अफ़सरों से भरा हुआ था। कुछ देर तक बिलियर्ड का खेल देखने के बाद जब वह वापस बार की ओर आ रहे थे, तब उन्होंने दाई ओर क्लब की लाइब्रेरी में देखा—मगर उसी समय डॉक्टर मुकर्जी पीछे से आ गए थे। ‘मिस लतिका, यह मि.गिरीश नेगी हैं?’ बिलियर्ड-रूम से आते हुए हँसी-ठहाकों के बीच वह कुछ ठहर गया था। वह किसी किताब के बीच में उँगली रखकर लाइब्रेरी की खिड़की से बाहर देख रहा था। ‘हलो डॉक्टर’ वह पीछे मुड़ा। तब उस क्षण...उस क्षण न जाने क्यों लतिका का हाथ काँप गया और कॉफ़ी की गर्म बूँदें उसकी साड़ी पर छलक आई। अँधेरे में किसी ने नहीं देखा कि लतिका के चेहरे पर एक उनींदा रीतापन घिर आया है।
हवा के झोंके से मोमबत्तियों की लौ फड़कने लगी। छत से भी ऊँची काठ-गोदाम जाने वाली सड़क पर यू. पी. रोडवेज़ की आख़िरी बस डाक लेकर जा रही थी। बस की हैड-लाइट्स में आस-पास फैली हुई झाड़ियों की छायाएँ घर की दीवार पर सरकती हुई ग़ायब होने लगी।
‘मिस लतिका, आप इस साल भी छुट्टियों में यहीं रहेंगी?’ डॉक्टर ने पूछा।
डॉक्टर का सवाल हवा में टँगा रहा। उसी क्षण पियानो पर शोपाँ का नौक्टर्न ह्यूबर्ट की उँगलियों के नीचे से फिसलता हुआ धीरे-धीरे छत के अँधेरे में घुलने लगा—मानो जल पर कोमल स्वप्निल ऊर्मियाँ भँवरों का झिलमिलाता जाल बुनती हुई दूर-दूर किनारों तक फैलती जा रही हो। लतिका को लगा कि जैसे कहीं बहुत दूर बर्फ़ की चोटियों से परिंदों के झुंड नीचे अनजान देशों की ओर उड़े जा रहे हैं। इन दिनों अक्सर उसने अपने कमरे की खिड़की से उन्हें देखा है—धागे में बँधे चमकीले लट्टुओं की तरह वे एक लंबी टेढ़ी-मेढ़ी क़तार में उड़े जाते हैं, पहाड़ों की सुनसान नीरवता से परे, उन विचित्र शहरों की ओर जहाँ शायद वह कभी नहीं जाएगी।
लतिका आर्म-चेयर पर ऊँघने लगी। डॉक्टर मुकर्जी का सिगार अँधेरे में चुपचाप जल रहा था। डॉक्टर को आश्चर्य हुआ कि लतिका न जाने क्या सोच रही है और लतिका सोच रही थी—क्या वह बूढ़ी होती जा रही है? उसके सामने स्कूल की प्रिंसिपल मिस वुड का चेहरा घूम गया—पोपला मुँह, आँखों के नीचे झूलती हुई माँस की थैलियाँ, ज़रा-ज़रा-सी बात पर चिढ़ जाना, कर्कश आवाज़ में चीख़ना—सब उसे ‘ओल्डमेड’ कहकर पुकारते हैं। कुछ वर्षों बाद वह भी हू-ब-हू वैसी ही बन जाएगी...लतिका के समूचे शरीर में झुरझुरी-सी दौड़ गई, मानो अनजाने में उसने किसी ग़लीज़ वस्तु को छू लिया हो। उसे याद आया, कुछ महीने पहले अचानक उसे ह्यूबर्ट का प्रेमपत्र मिला था—भावुक, याचना से भरा हुआ पत्र, जिसमें उसने न जाने क्या कुछ लिखा था, जो कभी उसकी समझ में नहीं आया। उसे ह्यूबर्ट की इस बचकाना हरकत पर हँसी आई थी, किंतु भीतर-ही-भीतर प्रसन्नता भी हुई थी उसकी उम्र अभी बीती नहीं है, अब भी वह दूसरों को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है। ह्यूबर्ट का पत्र पढ़कर उसे क्रोध नहीं आया, आई थी केवल ममता। वह चाहती तो उसकी ग़लतफ़हमी को दूर करने में देर न लगती, किंतु कोई शक्ति उसे रोके रहती है, उसके कारण अपने पर विश्वास रहता है, अपने सुख का भ्रम मानो ह्यूबर्ट की ग़लतफ़हमी से जुड़ा है...।
ह्यूबर्ट ही क्यों, वह क्या किसी को भी चाह सकेगी, उस अनुभूति के संग, जो अब नहीं रही, जो छाया-सी उस पर मंडराती रहती है, न स्वयं मिटती है, न उसे मुक्ति दे पाती है। उसे लगा, जैसे बादलों का झुरमुट फिर उसके मस्तिष्क पर धीरे-धीरे छाने लगा है, उसकी टाँगे फिर निर्जीव, शिथिल-सी हो गई हैं।
वह झटके से उठ खड़ी हुई, ‘डॉक्टर, माफ़ करना, मुझे बहुत थकान-सी लग रही है’... बिना वाक्य पूरा किए ही वह चली गई।
कुछ देर तक टैरेस पर निस्तब्धता छाई रही। मोमबत्तियाँ बुझने लगी थी। डॉक्टर मुकर्जी ने सिगार का नया कश लिया—’सब लड़कियाँ एक-जैसी होती हैं—बेवक़ूफ़ और सेंटीमेंटल!’
ह्यूबर्ट की उँगलियों का दबाव पियानो पर ढीला पड़ता गया—अंतिम धुनों की झिझकी-सी गूँज कुछ क्षणों तक हवा में तिरती रही।
‘डॉक्टर, आपको मालूम है ‘मिस लतिका का व्यवहार पिछले कुछ अर्से से अजीब-सा लगता है।’—ह्यूबर्ट के स्वर में लापरवाही का भाव था। वह नहीं चाहता था कि डॉक्टर को लतिका के प्रति उसकी भावनाओं का आभास मात्र भी मिल सके। जिस कोमल अनुभूति को वह इतने समय से सँजोता आया है, ह्यूबर्ट उसे हँसी के एक ही ठहाके में उपहासास्पद बना देगा।
‘क्या तुम नियति में विश्वास करते हो, ह्यूबर्ट?’ डॉक्टर ने कहा। ह्यूबर्ट दम रोके प्रतीक्षा करता रहा। वह जानता था कि कोई भी बात कहने से पहले डॉक्टर को फ़िलॉसोफाइज़ करने की आदत थी। डॉक्टर टैरेस के जंगले से सटकर खड़ा हो गया। फीकी-सी चाँदनी में चीड़ के पेड़ों की छायाएँ लॉन पर गिर रही थी। कभी-कभी कोई जुगनू अँधेरे में हरा प्रकाश छिड़कता हवा में ग़ायब हो जाता था।
‘मैं कभी-कभी सोचता हूँ, इंसान ज़िंदा किसलिए रहता है—क्या उसे कोई और बेहतर काम करने को नहीं मिलता? हज़ारों मील अपने मुल्क से दूर मैं यहाँ पड़ा हूँ—यहाँ कौन मुझे जानता है...यहीं शायद मर भी जाऊँगा। ह्यूबर्ट, क्या तुमने कभी महसूस किया है कि एक अजनबी की हैसियत से पराई ज़मीन पर जाना काफ़ी खौफ़नाक बात है...?’
ह्यूबर्ट विस्मित-सा डॉक्टर की ओर देखने लगा। उसने पहली बार डॉक्टर मुकर्जी के इस पहलू को देखा था। अपने संबंध में वह अक्सर चुप रहते थे।
‘कोई पीछे नहीं है, यह बात मुझ में एक अजीब क़िस्म की बेफ़िक्री पैदा कर देती है। लेकिन कुछ लोगों की मौत अंत तक पहेली बनी रहती है...शायद वे ज़िंदगी में बहुत उम्मीद लगाते थे। उसे ट्रैजिक भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि आख़िरी दम तक उन्हें मरने का एहसास नहीं होता...।’
‘डॉक्टर, आप किसका ज़िक्र कर रहे हैं?’ ह्यूबर्ट ने परेशान होकर पूछा।
डॉक्टर कुछ देर तक चुपचाप सिगार पीता रहा। फिर मुड़कर वह मोमबत्तियों की बुझती हुई लौ को देखने लगा।
‘तुम्हें मालूम है, किसी समय लतिका बिला नागा क्लब जाया करती थी। गिरीश नेगी से उसका परिचय वहीं हुआ था। कश्मीर जाने से एक रात पहले उसने मुझे सब कुछ बता दिया था। मैं अब तक लतिका से उस मुलाक़ात के बारे में कुछ नहीं कह सका हूँ। किंतु उस रोज़ कौन जानता था कि वह वापस नहीं लौटेगा। और अब...अब क्या फ़र्क़ पड़ता है। लेट द डेड डाई...।’
डॉक्टर की सूखी सर्द हँसी में खोखली-सी शून्यता भरी थी।
‘कौन गिरीश नेगी?’
‘कुमाऊँ-रेजीमेंट कैप्टन था।’
‘डॉक्टर तथा लतिका...’ ह्यूबर्ट से आगे कुछ नहीं कहा गया। उसे याद आया वह पत्र, जो उसने लतिका को भेजा था...कितना अर्थहीन और उपहासास्पद, जैसे उसका एक-एक शब्द उसके दिल को कचोट रहा हो! उसने धीरे-से पियानो पर सिर टिका लिया। लतिका ने उसे क्यों नहीं बताया, क्या वह इसके योग्य भी नहीं था?
‘लतिका... वह तो बच्ची है, पागल! मरने वाले के संग ख़ुद थोड़े ही मरा जाता है।’
कुछ देर चुप रहकर डॉक्टर ने अपने प्रश्न को फिर दुहराया।
‘लेकिन ह्यूबर्ट, क्या तुम नियति पर विश्वास करते हो?’
हवा के हल्के झोंके से मोमबत्तियाँ एक बार प्रज्ज्वलित होकर बुझ गईं। टैरेस पर ह्यूबर्ट और डॉक्टर अँधेरे में एक-दूसरे का चेहरा नहीं देख पा रहे थे, फिर भी वे एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। कान्वेंट स्कूल से कुछ दूर मैदान में बहते पहाड़ी नाले का स्वर आ रहा था। जब बहुत देर बाद कुमाऊँ-रेजीमेंट सेंटर का बिगुल सुनाई दिया, तो ह्यूबर्ट हड़बड़ा कर खड़ा हो गया।
‘अच्छा चलता हूँ, डॉक्टर, गुडनाइट!’
‘गुडनाइट ह्यूबर्ट...मुझे माफ़ करना, मैं सिगार ख़त्म करके उठूँगा...।’
सुबह बदली छायी थी। लतिका के खिड़की खोलते ही धुँध का ग़ुब्बारा-सा भीतर घुस आया, जैसे रात-भर दीवार के सहारे सर्दी में ठिठुरता हुआ वह भीतर आने की प्रतीक्षा कर रहा हो। स्कूल में ऊपर चैपल जाने वाली सड़क बादलों में छिप गई थी, केवल चैपल का ‘क्रास’ धुँध के पर्दे पर एक-दूसरे को काटती हुई पेंसिल की रेखाओं-सा दिखाई दे जाता था।
लतिका ने खिड़की से आँखें हटाई, तो देखा कि करीमुद्दीन चाय की ट्रे लिए खड़ा है। करीमुद्दीन मिलिट्री में अर्दली रह चुका था, इसलिए ट्रे मेज़ पर रखकर ‘अटेंशन’ की मुद्रा में खड़ा हो गया।
लतिका झटके से उठ बैठी। सुबह से आलस करके कितनी बार जागकर वह सो चुकी है। अपनी खिसियाहट मिटाने के लिए लतिका ने कहा, ‘बड़ी सरदी है आज, बिस्तर छोड़ने को जी नहीं चाहता।’
‘अजी मेम साहब, अभी क्या सरदी आई है—बड़े दिनों में देखना, कैसे दाँत कटकटाते हैं’—और करीमुद्दीन अपने हाथों को बग़लों में डाले हुए इस तरह सिकुड़ गया जैसे उन दिनों की कल्पना मात्र से उसे जाड़ा लगना शुरू हो गया हो। गंजे सिर पर दोनों तरफ़ के उसके बाल ख़िज़ाब लगाने से कत्थई रंग के भूरे हो गए थे। बात चाहे किसी विषय पर हो रही हो, वह हमेशा खींचतान कर उसे ऐसे क्षेत्र में घसीट लाता था, जहाँ वह बेझिझक अपने विचारों को प्रकट कर सके।
‘एक बार तो यहाँ लगातार इतनी बर्फ़ गिरी कि भुवाली से लेकर डाक-बँगले तक सारी सड़कें जाम हो गई। इतनी बर्फ़ थी मेम साहब, कि पेड़ों की टहनियाँ तक सिकुड़कर तनों से लिपट गई थी—बिलकुल ऐसे’, और करीमुद्दीन नीचे झुक कर मुर्गी-सा बन गया।
‘कब की बात है?’ लतिका ने पूछा।
‘अब यह तो जोड़-हिसाब करके ही पता चलेगा, मेम साहब...लेकिन इतना याद है कि उस वक़्त अँग्रेज़ बहादुर यहीं थे। कैंटोनमेंट की इमारत पर क़ौमी झंडा नहीं लगा था। बड़े जबर थे ये अँग्रेज़, दो घंटों में ही सारी सड़कें साफ़ करवा दी। उन दिनों एक सीटी बजाते ही पचास घोड़े वाले जमा हो जाते थे। अब तो सारे शैड ख़ाली पड़े हैं। वे लोग अपनी ख़िदमत भी करवाना जानते थे, अब उजाड़ हो गया है’, करीमुद्दीन उदास भाव से बाहर देखने लगा।
आज यह पहली बार नहीं है जब लतिका करीमुद्दीन से उन दिनों की बातें सुन रही है जब ‘अँग्रेज़ बहादुर’ ने इस स्थान को स्वर्ग बना रखा था।
‘आप छुट्टियों में इस साल भी यहीं रहेंगी, मेमसाहब?’
‘दिखता तो कुछ ऐसा ही है करीमुद्दीन—तुम्हें फिर तंग होना पड़ेगा।’
‘क्या कहती हैं मेमसाहब! आपके रहने से हमारा भी मन लग जाता है, वरना छुट्टियों में तो यहाँ कुत्ते लोटते हैं।’
‘तुम ज़रा मिस्त्री से कह देना कि इस कमरे की छत की मरम्मत कर जाए। पिछले साल बर्फ़ या पानी दरारों से टपकता रहता था।’ लतिका को याद आया कि पिछली सर्दियों में जब कभी बर्फ़ गिरती थी, तो उसे पानी से बचने के लिए रात भर कमरे के कोने में सिमटकर सोना पड़ता था।
करीमुद्दीन चाय की ट्रे उठाता हुआ बोला, ‘ह्यूबर्ट साहब तो कल ही चले जाएँगे—कल रात उनकी तबीयत फिर ख़राब हो गई। आधी रात के वक़्त मुझे जगाने आए थे। कहते थे, छाती में तकलीफ़ है। उन्हें यह मौसम नहीं रास आता। कह रहे थे, लड़कियों की बस में वह भी कल ही चले जाएँगे।’
करीमुद्दीन दरवाज़ा बंद करके चला गया। लतिका की इच्छा हुई कि वह ह्यूबर्ट के कमरे मे जाकर उनकी तबीयत की पूछताछ कर आए। किंतु फिर न जाने क्यों स्लीपर पैरों में टँगे रहे और वह खिड़की के बाहर बादलों को उमड़ता हुआ देखती रही। ह्यूबर्ट का चेहरा जब उसे देखकर सहमा-सा दयनीय हो जाता है, तब लगता है कि वह अपनी मूक निरीह याचना में उसे कोस रहा है—न वह उसकी ग़लतफ़हमी को दूर करने का प्रयत्न कर पाती है, न उसे अपनी विवशता की सफ़ाई देने का साहस होता है। उसे लगता है कि इस जाले से बाहर निकलने के लिए वह धागे के जिस सिरे को पकड़ती है, वह ख़ुद एक गाँठ बनकर रह जाता है...।
बाहर बूँदाबाँदी होने लगी थी—कमरे की टिन की छत ‘खट-खट’ बोलने लगी। लतिका पलंग से उठ खड़ी हुई। बिस्तर को तह कर बिछाया। फिर पैरों में स्लीपरों को घसीटते हुए वह बड़े आईने तक आई और उसके सामने स्टूल पर बैठ कर बालों को खोलने लगी। किंतु कुछ देर तक कंघी बालों में ही उलझी रही और वह गुमसुम हो शीशे में अपना चेहरा तकती रही। करीमुद्दीन को यह कहना याद ही नहीं रहा कि धीरे-धीरे आग जलाने की लकड़ियाँ जमा कर लें। इन दिनों सस्ते दामों पर सूखी लकड़ियाँ मिल जाती हैं। पिछले साल तो कमरा धुएँ से भर जाता था जिसके कारण कँपकँपाते जाड़े में भी उसे खिड़की खोलकर ही सोना पड़ता था।
आईने में लतिका ने अपना चेहरा देखा—वह मुस्कुरा रही थी। पिछले साल अपने कमरे की सीलन और ठंड से बचने के लिए कभी-कभी वह मिस वुड के ख़ाली कमरे में चोरी-चुपके सोने चली जाया करती थी। मिस वुड का कमरा बिना आग के भी गर्म रहा करता था, उनके गदोले सोफ़े पर लेटते ही आँख लग जाती थी। कमरा छुट्टियों में ख़ाली पड़ा रहता है, किंतु मिस वुड से इतना नहीं होता कि दो महीनों के लिए उसके हवाले कर जाएँ। हर साल कमरे में ताला ठोंक जाती हैं। वह तो पिछले साल ग़ुसलख़ाने में भीतर की साँकल देना भूल गई थी, जिसे लतिका चोर-दरवाज़े के रूप में इस्तेमाल करती रही थी।
पहले साल अकेले में उसे बड़ा डर-सा लगा था। छुट्टियो में सारे स्कूल और होस्टल के कमरे साँय-साँय करने लगते हैं। डर के मारे उसे जब कभी नींद नहीं आती थी, तब वह करीमुद्दीन को रात में देर तक बातों में उलझाए रखती। बातों में जब वह खोई-सी सो जाती, तब करीमुद्दीन लैंप बुझाकर चला जाता। कभी-कभी बीमारी का बहाना करके वह डॉक्टर को बुलावा भेजती थी और बाद में बहुत ज़िद करके दूसरे कमरे में उनका बिस्तर लगवा देती।
लतिका ने कंधे से बालों का गुच्छा निकाला और उसे बाहर फेंकने के लिए वह खिड़की के पास आ खड़ी हुई। बाहर छत की ढलान से बारिश के जल की मोटी-सी धार बराबर लॉन पर गिर रही थी। मेघाच्छन्न आकाश मे सरकते हुए बादलों के पीछे पहाड़ियों के झुंड कभी उभर आते थे, कभी छिप जाते थे, मानो चलती ट्रेन से कोई उन्हें देख रहा हो। लतिका ने खिड़की से सिर बाहर निकाल लिया—हवा के झोंके से उसकी आँखें झप गई। उसे जितने काम याद आते हैं, उतना ही आलस घना होता जाता है! बस की सीटें रिज़र्व करवाने के लिए चपरासी को रुपए देने हैं। जो सामान होस्टल की लड़कियाँ पीछे छोड़े जा रही है, उन्हें गोदाम में रखवाना होगा। कभी-कभी तो छोटी क्लास की लड़कियों के साथ पैकिंग करवाने के काम में भी उसे हाथ बँटाना पड़ता था।
वह इन कामों से ऊबती नहीं। धीरे-धीरे सब निबटते जाते है। कोई ग़लती इधर-उधर रह जाती है, जो बाद में सुधर जाती है—हर काम में किचकिच रहती है, परेशानी और दिक़्क़त होती है—किंतु देर-सबेर इससे छुटकारा मिल ही जाता है। किंतु जब लड़कियों की आख़िरी बस चली जाती है, तब मन उचाट-सा हो जाता है—ख़ाली कॉरीडोर में घूमती हुई वह कभी इस कमरे में जाती है और कभी उसमें। वह नहीं जान पाती कि अपने से क्या करे—दिल कहीं भी नहीं टिक पाता, हमेशा भटका-भटका-सा रहता है।
इस सबके बावजूद जब कोई सहज भाव से पूछ बैठता है, ‘मिस लतिका, छुट्टियों में आप घर नहीं जा रही?’ तब वह क्या कहे?
डिंग-डांग-डिंग...स्पेशल सर्विस के लिए स्कूल चैपल के घंटे बजने लगे थे। लतिका ने अपना सिर खिड़की के भीतर कर लिया। उसने झटपट साड़ी उतारी और पेटीकोट में ही कंधे पर तौलिया डाल ग़ुसलख़ाने में घुस गई।
लेफ़्ट-राइट-लेफ़्ट...लेफ़्ट...
कैंटोनमेंट जाने वाली पक्की सड़क पर चार-चार की पंक्ति में कुमाऊँ-रेजीमेंट के सिपाहियों की एक टुकड़ी मार्च कर रही थी। फ़ौजी बूटों की भारी और खुरदरी आवाज़ें स्कूल चैपल की दीवारों से टकराकर भीतर ‘प्रेयर-हॉल’ में गूँज रही थी।
‘ब्लसेड आर द मीक’... फ़ादर एल्मंड एक-एक शब्द चबाते हुए खँखारते स्वर में ‘सर्मन ऑफ़ द माउंट’ पढ़ रहे थे। ईसा मसीह की मूर्ति के नीचे ‘कैंडल-ब्रियम’ के दोनों ओर मोमबत्तियाँ जल रही थी, जिनका प्रकाश आगे बैठी हुई लड़कियों पर पड़ रहा था। पिछली लाइनों की बेंचे अँधेरे में डूबी हुई थी, जहाँ लड़कियाँ प्रार्थना की मुद्रा में बैठी हुई सिर झुकाए एक-दूसरे से घुसर-पुसर कर रही थी। मिस वुड स्कूल सीज़न के सफलतापूर्वक समाप्त हो जाने पर विद्याथियों और स्टाफ़-सदस्यों को बधाई का भाषण दे चुकी थी—और अब फ़ादर के पीछे बैठी हुई अपने में ही कुछ बुड़बुड़ा रही थी मानो धीरे-धीरे फ़ादर को ‘प्रौम्ट’ कर रही हो।
‘आमीन’...फ़ादर एल्मंड ने बाइबल मेज़ पर रख दी और ‘प्रेयर-बुक’ उठा ली। हॉल की ख़ामोशी क्षण-भर के लिए टूट गई। लड़कियों ने खड़े होते हुए जान-बूझकर बेंचो को पीछे धकेला—बेंचें फ़र्श पर रगड़ खाकर सीटी बजाती हुई पीछे खिसक गई—हॉल के कोने से हँसी फूट पड़ी। मिस वुड का चेहरा तन गया, माथे पर भृकुटियाँ चढ़ गई। फिर अचानक निस्तब्धता छा गई—हॉल के उस घुटे हुए धुँधलके में फ़ादर का तीखा फटा हुआ स्वर सुनाई देने लगा—‘जीसस सेड, आई एम द लाइट ऑफ़ द वर्ल्ड—ही दैट फ़ालोएथ मी शैल नॉट वाक इन डार्कनेस, बट शैल हैव द लाइट ऑफ़ द लाइट...।’
डॉक्टर मुकर्जी ने ऊब और अकुलाहट से भरी जम्हाई ली, ‘कब यह क़िस्सा ख़त्म होगा?’ उसने इतने ऊँचे स्वर में लतिका से पूछा कि वह सकुचाकर दूसरी ओर देखने लगी। स्पेशल सर्विस के समय डॉक्टर मुकर्जी के होंठों पर व्यंग्यात्मक मुस्कान खेलती रही और वह धीरे-धीरे अपनी मूँछों को खींचता रहा।
फ़ादर एल्मंड की वेश-भूषा देखकर लतिका के दिल में गुदगुदी-सी दौड़ गई। जब वह छोटी थी, तो अक्सर यह बात सोचकर विस्मित हुआ करती थी कि क्या पादरी लोग सफ़ेद चोग़े के नीचे कुछ नहीं पहनते, अगर धोखे से वह ऊपर उठ जाए तो?
लेफ़्ट...लेफ़्ट...लेफ़्ट... मार्च करते फ़ौजी बूट चैपल से दूर होते जा रहे थे—केवल उनकी गूँज हवा में शेष रह गई थी।
‘हिग नंबर 117—’ फ़ादर ने प्रार्थना-पुस्तक खोलते हुए कहा। हॉल में प्रत्येक लड़की ने डेस्क पर रखी हुई हिम-बुक खोल ली। पन्नों के उलटने की खड़खड़ाहट फिसलती एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैल गई।
आगे की बेंच से उठकर ह्यूबर्ट पियानो के सामने स्टूल पर बैठ गया। संगीत-शिक्षक होने के कारण हर साल स्पेशल सर्विस के अवसर पर उसे ‘कॉयर’ के संग पियानो बजाना पड़ता था। राबर्ट ने अपने रूमाल से नाक साफ़ की। अपनी घबराहट छिपाने के लिए ह्यूबर्ट हमेशा ऐसा ही किया करता था। कनखियों से हॉल की ओर देखते हुए उसने काँपते हाथों से हिम-बुक खोली।
लीड काइंडली लाइट...
पियानो के सुर दबे, झिझकते से मिलने लगे। घने बालों से ढँकी ह्यूबर्ट की लंबी, पीली उँगलियाँ खुलने-सिमटने लगी। ‘कॉयर’ में गाने वाली लड़कियों के स्वर एक-दूसरे से गुँथकर कोमल-स्निग्ध लहरों में बिंध गए।
लतिका को लगा, उसका जूड़ा ढीला पड़ गया है, मानो गरदन के नीचे झूल रहा है। मिस वुड की आँख बचा लतिका ने चुपचाप बालों में लगे क्लिपों को कस कर खींच दिया।
‘बड़ा झक्की आदमी है... सुबह मैंने ह्यूबर्ट को यहाँ आने से मना किया था, फिर भी चला आया।’ डॉक्टर ने कहा।
लतिका को करीमुद्दीन की बात याद हो गई। रात-भर ह्यूबर्ट को खाँसी का दौरा पड़ा था कल जाने के लिए कह रहे थे...
लतिका ने सिर टेढा करके ह्यूबर्ट के चेहरे की एक झलक पाने की विफल चेष्टा की। इतने पीछे से कुछ भी देख पाना असंभव था; पियानो पर झुका हुआ केवल ह्यूबर्ट का सिर दिखाई देता था।
लीड काइंडली लाइट... संगीत के सुर मानो एक ऊँची पहाड़ी पर चढ़कर हाँफती हुई साँसों को आकाश की अगाध शून्यता मे बिखेरते हुए नीचे उतर रहे हैं। बारिश की मुलायम धूप चैपल के लंबे चौकोर शीशों पर झलमला रही है, जिसकी एक महीन चमकीली रेखा ईसामसीह की प्रतिमा पर तिरछी होकर गिर रही है। मोमबत्तियों का धुआँ धूप में नीली-सी लकीर खींचता हुआ हवा में तिरने लगा है। पियानो के क्षणिक ‘पोज़’ में लतिका को पत्तों का मर्मर कहीं दूर अनजानी दिशा से आता हुआ सुनाई दे जाता है। एक क्षण के लिए उसे यह भ्रम हुआ कि चैपल का फीका-सा अँधेरा उस छोटे-से ‘प्रेयर-हॉल’ के चारों कोनों से सिमटता हुआ उसके आसपास घिर आया है—मानो कोई उसकी आँखों पर पट्टी बाँधकर उसे यहाँ तक ले आया हो और अचानक उसकी दोनों आँखें खोल दी हों। उसे लगा कि जैसे मोमबत्तियों के धूमिल आलोक में कुछ भी ठोस, वास्तविक न रहा हो—चैपल की छत, दीवारें, डेस्क पर रखा हुआ डॉक्टर का सुघड़-सुडौल हाथ—और पियानो के सुर अतीत की धुँध को भेदते हुए स्वयं उस धुँध का भाग बनते जा रहे हों...
एक पगली-सी स्मृति, एक उद्भ्रांत भावना—चैपल के शीशों के परे पहाड़ी सूखी हवा, हवा में झुकी हुई वीपिंग विलोज़ की काँपती टहनियाँ, पैरों-तले चीड़ के पत्तों की धीमी-सी चिर-परिचित खड़...खड़...। वहीं पर गिरीश एक हाथ में मिलिट्री का ख़ाकी हैट लिए खड़ा है—चौड़े उठे हुए सबल कंधे, अपना सिर वहाँ टिका दो, तो जैसे सिमटकर खो जाएगा...चार्ल्स वोयर, यह नाम उसने रखा था। वह झेंपकर हँसने लगता।
‘तुम्हें आर्मी में किसने चुन लिया, मेजर बन गए हो, लेकिन लड़कियों से भी गए-बीते हो...ज़रा-ज़रा-सी बात पर चेहरा लाल हो जाता है।’ यह सब वह कहती नहीं, सिर्फ़ सोचती-भर थी—सोचा था कहूँगी, वह ‘कभी’ कभी नहीं आया...
बुरुंस का लाल फूल
लाए हो
न
झूठे
ख़ाकी क़मीज़ की जिस जेब पर बैज चिपके थे, उसी में से मुसा हुआ बुरुंस का फूल निकल आया।
छि:, सारा मुरझा गया
अभी खिला कहाँ है?
(हाऊ क्लम्ज़ी)
उसके बालों में गिरीश का हाथ उलझ रहा है—फूल कहीं टिक नहीं पाता, फिर उसे क्लिप के नीचे फँसाकर उसने कहा—
देखा
वह मुड़ी और इससे पहले कि वह कुछ कह पाती, गिरीश ने अपना मिलिट्री का हैट धप् से उसके सिर पर रख दिया। वह मंत्रमुग्ध-सी वैसे ही खड़ी रही। उसके सिर पर गिरीश का हैट है—माथे पर छोटी-सी बिंदी है। बिंदी पर उड़ते हुए बाल हैं। गिरीश ने उस बिंदी को अपने होंठों से छुआ है, उसने उसके नंगे सिर को अपने दोनों हाथों में समेट लिया है—
लतिका
गिरीश ने चिढ़ाते हुए कहा—मैन ईटर ऑफ़ कुमाऊँ—(उसका यह नाम गिरीश ने उसे चिढ़ाने के लिए रखा था), ...वह हँसने लगी।
‘लतिका... ‘सुनो।’ गिरीश का स्वर कैसा हो गया था?
‘न, मैं कुछ भी नहीं सुन रही।’
‘लतिका...मैं कुछ महीनों में वापस लौट आऊँगा...’
‘ना... मैं कुछ भी नहीं सुन रही।’ किंतु वह सुन रही है—वह नहीं जो गिरीश कह रहा है, बल्कि वह, जो नहीं कहा जा रहा है, जो उसके बाद कभी नहीं कहा गया।
लीड काइंडली लाइट...
लड़कियों का स्वर पियानो के स्वरों में डूबा हुआ गिर रहा है, उठ रहा है... ह्यूबर्ट ने सिर मोड़कर लतिका को निमिष भर देखा—आँखें मूँदे ध्यानमग्ना प्रस्तर-मूर्ति-सी वह स्थिर निश्चल खड़ी थी। क्या यह भाव उसके लिए? क्या लतिका ने ऐसे क्षणों में उसे अपना साथी बनाया है? ह्यूबर्ट ने एक गहरी साँस ली और उस साँस मे ढेर-सी थकान उमड़ आई।
‘देखो...मिस वुड कुर्सी पर बैठे-बैठे सो रही हैं।’ डॉक्टर होंठों में ही फुस-फुसाया। यह डॉक्टर का पुराना मज़ाक़ था कि मिस वुड प्रार्थना करने के बहाने आँखें मूँदे हुए नींद की झपकियाँ लेती हैं।
फ़ादर एल्मंड ने कुर्सी पर फैले अपने गाउन को समेट लिया और प्रेयर-बुक बंद करके मिस वुड के कानों में कुछ कहा। पियानो का स्वर क्रमशः मंद पड़ने लगा, ह्यूबर्ट की उँगलियाँ ढीली पड़ने लगी। सर्विस के समाप्त होने से पूर्व मिस वुड ने ऑर्डर पढ़कर सुनाया। बारिश होने की आशंका से आज के कार्यक्रम में कुछ आवश्यक परिवर्तन करने पड़े थे। पिकनिक के लिए झूला देवी के मंदिर जाना संभव नहीं हो सकेगा। इसलिए स्कूल से कुछ दूर ‘मीडोज़’ में ही सब लड़कियाँ नाश्ते के बाद जमा होंगी। सब लड़कियों को दोपहर का ‘लंच’ होस्टल-किचन से ही ले जाना होगा, केवल शाम की चाय ‘मीडोज़’ में बनेगी।
पहाड़ों की बारिश का क्या भरोसा! कुछ देर पहले धुआँधार बादल गरज रहे थे, सारा शहर पानी में भीगा ठिठुर रहा था—अब धूप में नहाता नीला आकाश धुँध की ओट से बाहर निकलता हुआ फैल रहा था। लतिका ने चैपल से बाहर आते हुए देखा—विपिंग बिलोज़ की भीगी शाख़ाओं से धूप में चमकती हुई बारिश की बूँदें टपक रही थीं...
लड़कियाँ चैपल से बाहर निकलकर छोटे-छोटे झुँड बनाकर कॉरीडोर में जमा हो गई हैं। नाश्ते के लिए अभी पौना घंटा पड़ा था और उनमें से कोई लड़की होस्टल जाने के लिए इच्छुक नहीं थी। छुट्टियाँ अभी शुरू नहीं हुई थी। किंतु शायद इसीलिए वे इन चंद बचे-खुचे क्षणों में अनुशासन के घेरे के भीतर भी मुक्त होने का भरपूर आनंद उठा लेना चाहती थीं।
मिस वुड को लड़कियों का यह गुल-गपाड़ा अखरा, किंतु फ़ादर एल्मंड के सामने वह उन्हें डाँट-फटकार नहीं सकी। अपनी झुँझलाहट दबाकर वह मुस्कुराते हुए बोली, ‘कल सब चली जाएँगी, सारा स्कूल वीरान हो जाएगा!’
फ़ादर एल्मंड का लंबा ओजपूर्ण चेहरा चैपल की घुटी हुई गरमाई से लाल हो उठा था। कॉरीडोर के जंगले पर अपनी छड़ी लटकाकर वह बोले, ‘छुट्टियों में पीछे होस्टल में कौन रहेगा?’
‘पिछले दो-तीन सालों से मिस लतिका ही रह रही हैं...।’
‘और डॉक्टर मुकर्जी?’ फ़ादर का ऊपरी होंठ तनिक खिंच आया।
‘डॉक्टर तो सर्दी-गर्मी यहीं रहते हैं।’ मिस वुड ने विस्मय से फ़ादर की ओर देखा। वह समझ नहीं सकी कि फ़ादर ने डॉक्टर का प्रसंग क्यों छेड़ दिया है।
‘डॉक्टर मुकर्जी छुट्टियों में कहीं नहीं जाते?’
‘दो महीने की छुट्टियों में बर्मा जाना काफ़ी कठिन है, फ़ादर!’ मिस वुड हँसने लगीं।
‘मिस वुड, पता नहीं आप क्या सोचती हैं। मुझे तो मिस लतिका का होस्टल में अकेले रहना कुछ समझ में नहीं आता।’
‘लेकिन फ़ादर’, मिस वुड ने कहा, ‘यह तो कान्वेंट स्कूल का नियम है कि कोई भी टीचर छुट्टियों में अपने ख़र्चे पर होस्टल में रह सकती है।’
‘मैं फ़िलहाल स्कूल के नियमों की बात नहीं कर रहा…मिस लतिका डॉक्टर के संग यहाँ अकेली ही रह जाएँगी और सच पूछिए मिस वुड, डॉक्टर के बारे में मेरी राय कुछ बहुत अच्छी नहीं है।
‘फ़ादर, आप कैसी बात कर रहे हैं। मिस लतिका बच्ची थोड़े ही हैं...।’ मिस वुड को ऐसी आशा नहीं थी कि फ़ादर एल्मंड अपने दिल में दक़ियानूसी भावना को स्थान देंगे।
फ़ादर एल्मंड कुछ हतप्रभ-से हो गए। बात टालते हुए बोले, ‘मिस वुड, मेरा मतलब यह नहीं था। आप तो जानती हैं, मिस लतिका और उस मिलिट्री अफ़सर को लेकर एक अच्छा-ख़ासा स्कैंडल बन गया था, स्कूल की बदनामी होने में क्या देर लगती है!’
‘वह बेचारा तो अब नहीं रहा। मैं उसे जानती थी फ़ादर! ईश्वर उसकी आत्मा को शांति दे!’
मिस वुड ने धीरे-से अपनी दोनों बाँहों से क्रॉस किया।
फ़ादर एल्मंड को मिस वुड की मूर्खता पर इतना अधिक क्षोभ हुआ कि उनसे आगे और कुछ नहीं बोला गया। डॉक्टर मुकर्जी से उनकी कभी नहीं पटती थी, इसलिए मिस वुड की आँखों में वह डॉक्टर को नीचा दिखाना चाहते थे। किंतु मिस वुड लतिका का रोना ले बैठी। आगे बात बढ़ाना व्यर्थ था। उन्होंने छड़ी को जंगले से उठाया और ऊपर साफ़ खुले आकाश को देखते हुए बोले, ‘प्रोग्राम आपने यूँ ही बदला; मिस वुड, अब क्या बारिश होगी!’
ह्यूबर्ट जब चैपल से बाहर निकला तो उसकी आँखें चकाचौंध-सी हो गईं। उसे लगा जैसे किसी ने अचानक ढेर-सी चमकीली उचलती हुई रौशनी मुट्ठी में भरकर उसकी आँखों में झोंक दी हो। पियानो के संगीत के सुर रुई के छुई-मुई रेशों की भाँति अब तक उसके मस्तिष्क की थकी-माँदी नसों पर फड़फड़ा रहे थे। वह काफ़ी थक गया था। पियानो बजाने से फेफड़ों पर हमेशा भारी दबाव पड़ता, दिल की धड़कन तेज़ हो जाती थी। उसे लगता था कि संगीत के एक नोट को दूसरे नोट में उतारने के प्रयत्न में वह एक अँधेरी खाई पार कर रहा है।
आज चैपल में मैंने जो महसूस किया, वह कितना रहस्यमय, कितना विचित्र था, ह्यूबर्ट ने सोचा। मुझे लगा, पियानो का हर नोट चिरंतन ख़ामोशी की अँधेरी खोह में निकलकर बाहर फैली नीली धुँध को काटता, तराशता हुआ एक भूला-सा अर्थ खींच लाता है। गिरता हुआ हर ‘पोज़’ एक छोटी-सी मौत है, मानो घने छायादार वृक्षों की काँपती छायाओं में कोई पगडंडी गुम हो गई हो, एक छोटी-सी मौत जो आने वाले सुरों को अपनी बची-खुची गूँजों की साँसें समर्पित कर जाती है...जो मर जाती है, किंतु मिट नहीं पाती, मिटती नहीं इसलिए मरकर भी जीवित है, दूसरे सुरों में लय हो जाती है...
‘डॉक्टर, क्या मृत्यु ऐसे ही आती है? अगर मैं डॉक्टर से पूछूँ तो वह हँसकर टाल देगा। मुझे लगता है, वह पिछले कुछ दिनों से कोई बात छिपा रहा है—उसकी हँसी में जो सहानुभूति का भाव होता है, वह मुझे अच्छा नहीं लगता। आज उसने मुझे स्पेशल सर्विस में आने से रोका था—कारण पूछने पर वह चुप रहा था। कौन-सी ऐसी बात है, जिसे मुझसे कहने में डॉक्टर कतराता है। शायद मैं शक्की मिज़ाज होता जा रहा हूँ, और बात कुछ भी नहीं है।
ह्यूबर्ट ने देखा, लड़कियों की क़तार स्कूल से होस्टल जाने वाली सड़क पर नीचे उतरती जा रही है। उजली धूप में उनके रंग-बिरंगे रिबन, हल्की आसमानी रंग की फ़्रॉकें और सफ़ेद पेटियाँ चमक रही हैं। सीनियर कैम्ब्रिज़ की कुछ लड़कियों ने चैपल की वाटिका से गुलाब के फूलों को तोड़कर अपने बालों में लगा लिया है। कैंटोनमेंट के तीन-चार सिपाही लड़कियों को देखते हुए अश्लील मज़ाक़ करते हुए हँस रहे हैं और कभी-कभी किसी लड़की की ओर ज़रा-सा झुककर सीटी बजाने लगते हैं।
‘हलो मिस्टर ह्यूबर्ट...’ ह्यूबर्ट ने चौंककर पीछे देखा। लतिका एक मोटा-सा रजिस्टर बग़ल में दबाए खड़ी थी।
‘आप अभी यहीं हैं?’ ह्यूबर्ट की दृष्टि लतिका पर टिकी रही। वह क्रीम रंग की पूरी बाँहों की ऊनी जैकट पहने हुई थी। कुमाऊँनी लड़कियों की तरह लतिका का गला गोल था, धूप की तपन से पका गेहुँआ रंग कहीं-कहीं हल्का-सा गुलाबी हो आया था, मानो बहुत धोने पर भी गुलाब के कुछ धब्बे इधर-उधर बिखरे रह गए हों।
‘उन लड़कियों के नाम नोट करने थे, जो कल जा रही हैं... सो पीछे रुकना पड़ा! आप भी तो कल जा रहे हैं मिस्टर ह्यूबर्ट?’
‘अभी तक तो यही इरादा है। यहाँ रुककर भी क्या करूँगा? आप स्कूल की ओर जा रही हैं?’
‘चलिए…’
पक्की सड़क पर लड़कियों की भीड़ जमा थी, इसलिए वे दोनों पोलो-ग्राउंड का चक्कर काटती हुई पगडंडी से नीचे उतरने लगे।
हवा तेज़ हो चली। चीड़ के पत्ते हर झोंके के संग टूट-टूटकर पगडंडी पर ढेर लगाते जाते थे। ह्यूबर्ट रास्ता बनाने के लिए अपनी छड़ी से उन्हें बुहारकर दोनों ओर बिखेर देता था। लतिका पीछे खड़ी हुई देखती रहती थी। अल्मोड़ा की ओर से आते हुए छोटे-छोटे बादल रेशमी रूमालों-से उमड़ते हुए सूरज के मुँह पर लिपटे-से जाते थे, फिर हवा में बह निकलते थे। इस खेल मे धूप कभी मंद, फीकी-सी पड़ जाती थी, कभी अपना उजला आँचल खोलकर समूचे शहर को अपने में समेट लेती थी।
लतिका तनिक आगे निकल गई। ह्यूबर्ट की साँस चढ़ गई थी और वह धीरे-धीरे हाँफता हुआ पीछे से आ रहा था। जब वे पोलो-ग्राउंड के पवेलियन को छोड़कर मिलिट्री के दार्इं ओर मुड़े, तो लतिका ह्यूबर्ट की प्रतीक्षा करने के लिए खड़ी हो गई। उसे याद आया, छुट्टियों के दिनों में जब कभी कमरे मे अकेले बैठे-बैठे उसका मन ऊब जाता था, तो वह अक्सर टहलते हुए मिलिट्री तक चली जाती थी। उससे सटी पहाड़ी पर चढ़कर वह बर्फ़ में ढँके देवदार वृक्षों को देखा करती थी, जिनकी झुकी हुई शाख़ों से रुई के गालों-सी बर्फ़ नीचे गिरा करती थी। नीचे बाज़ार जाने वाली सड़क पर बच्चे स्लेज़ पर फिसला करते थे। वह खड़ी-खड़ी बर्फ़ में छिपी हुई उस सड़क का अनुमान लगाया करती थी जो फ़ादर एल्मंड के घर से गुज़रती हुई मिलिट्री अस्पताल और डाकघर से होकर चर्च की सीढ़ियों तक जाकर गुम हो जाती थी। जो मनोरंजन एक दुर्गम पहेली को सुलझाने में होता है, वही लतिका को बर्फ़ में खोए रास्तों को खोज निकालने में होता था।
‘आप बहुत तेज़ चलती हैं, मिस लतिका’—थकान से ह्यूबर्ट का चेहरा कुम्हला गया था। माथे पर पसीने की बूँदें छलक आई थी।
‘कल रात आपकी तबीयत क्या कुछ ख़राब हो गई थी?
‘आपने कैसे जाना? क्या मैं अस्वस्थ दिख रहा हूँ?’ ह्यूबर्ट के स्वर में हल्की-सी खीझ का आभास था। सब लोग मेरी सेहत को लेकर क्यों बात शुरू करते हैं, उसने सोचा।
‘नहीं, मुझे तो पता भी नहीं चलता, वह तो सुबह करीमुद्दीन ने बातों-ही-बातों में ज़िक्र छेड़ दिया था।’ लतिका कुछ अप्रतिभ-सी हो आई।
‘कोई ख़ास बात नहीं, वह पुराना दर्द शुरू हो गया था—अब बिल्कुल ठीक है।’ अपने कथन की पुष्टि के लिए ह्यूबर्ट छाती सीधी करके तेज़ क़दम बढ़ाने लगा।
‘डॉक्टर मुकर्जी को दिखलाया था?’
‘वह सुबह आए थे। उनकी बात कुछ समझ में नहीं आती। हमेशा दो बातें एक-दूसरे से उलटी कहते हैं। कहते थे कि इस बार मुझे छ:-सात महीने की छुट्टी लेकर आराम करना चाहिए। लेकिन अगर मैं ठीक हूँ तो भला इसकी क्या ज़रूरत है?
ह्यूबर्ट के स्वर में व्यथा की छाया लतिका से छिपी न रह सकी। बात को टालते हुए उसने कहा, ‘आप तो नाहक़ चिंता करते हैं, मि. ह्यूबर्ट! आज-कल मौसम बदल रहा है, अच्छे-भले आदमी तक बीमार हो जाते हैं।’
ह्यूबर्ट का चेहरा प्रसन्नता में दमकने लगा। उसने लतिका को ध्यान से देखा। वह अपने दिल का संशय मिटाने के लिए निश्चिंत हो जाना चाहता था कि कहीं लतिका उसे केवल दिलासा देने के लिए ही तो झूठ नहीं बोल रही।
‘यही तो मैं सोच रहा था, मिस लतिका! डॉक्टर की सलाह सुनकर तो मैं डर ही गया। भला छः महीने की छुट्टी लेकर मैं अकेला क्या करूँगा? स्कूल में तो बच्चों के संग मन लगा रहता है। सच पूछो तो दिल्ली में ये दो महीनों की छुट्टियाँ काटना भी दूभर हो जाता है...।’
‘मिस्टर ह्यूबर्ट...कल आप दिल्ली जा रहे हैं...?’
लतिका चलते-चलते हठात् ठिठक गई। सामने पोलो-ग्राउंड फैला था, जिसके दूसरी ओर मिलिट्री की ट्रकें कैंटोनमेंट की ओर जा रही थी। ह्यूबर्ट को लगा, जैसे लतिका की आँखें अधमुँदी-सी खुली रह गई है, मानो पलकों पर एक पुराना-भूला-सा सपना सरक आया है।
‘मिस्टर ह्यूबर्ट... आप दिल्ली जा रहे हैं। इस बार लतिका ने प्रश्न नहीं दुहराया—उसके स्वर में केवल एक असीम दूरी का भाव घिर आया।
‘बहुत अर्सा पहले मैं भी दिल्ली गई थी, मि. ह्यूबर्ट! तब मैं बहुत छोटी थी—न जाने कितने बरस बीत गए। हमारी मौसी का ब्याह वहीं हुआ था। बहुत-सी चीज़ें देखी थीं, लेकिन अब तो सब कुछ धुँधला-सा पड़ गया है। इतना याद है कि हम क़ुतुब पर चढ़े थे। सबसे ऊँची मंज़िल से हमने नीचे झाँका था—न जाने कैसा लगा था। नीचे चलते हुए आदमी चाभी भरे हुए खिलौनों-से लगते थे। हमने ऊपर से उन पर मूँगफलियाँ फेंकी थी, लेकिन हम बहुत निराश हुए थे क्योंकि उनमें से किसी ने हमारी तरफ़ नहीं देखा। शायद माँ ने मुझे डाँटा था, और मैं सिर्फ़ नीचे झाँकते हुए डर गई थी। सुना है, अब तो दिल्ली इतना बदल गया है कि पहचाना नहीं जाता...
वे दोनों फिर चलने लगे। हवा का वेग ढीला पड़ने लगा। उड़ते हुए बादल अब सुस्ताने-से लगे थे, उनकी छायाएँ नंदादेवी और पंचचूली की पहाड़ियों पर गिर रही थी। स्कूल के पास पहुँचते-पहुँचते चीड़ के पेड़ पीछे छूट गए, कहीं-कहीं ख़ुबानी के पेड़ों के आस-पास बुरुंस के लाल फूल धूप में चमक जाते थे। स्कूल तक आने में उन्होंने पोलो-ग्राउंड का लंबा चक्कर लगा लिया था।
‘मिस लतिका, आप कहीं छुट्टियों में जाती क्यों नहीं—सर्दियों में तो यहाँ सब कुछ वीरान हो जाता होगा?’
‘अब मुझे यहाँ अच्छा लगता है’, लतिका ने कहा, ‘पहले साल अकेलापन कुछ अखरा था—अब आदी हो गई हूँ। क्रिसमस से एक रात पहले क्लब में डाँस होता है, लाटरी डाली जाती है और रात को देर तक नाच-गाना होता रहता है। नए साल के दिन कुमाऊँ रेजीमेंट की ओर से परेड-ग्राउंड में कार्नीवाल किया जाता है, बर्फ़ पर स्केटिंग होती है, रंग-बिरंगे ग़ुब्बारों के नीचे फ़ौजी बैंड बजता है, फ़ौजी अफ़सर फैंसी ड्रेस में भाग लेते हैं हर साल ऐसा ही होता है, मिस्टर ह्यूबर्ट । फिर कुछ दिन बाद विंटर स्पोर्ट्स के लिए अँग्रेज़ टूरिस्ट आते हैं। हर साल मैं उनसे परिचित होती हूँ, वापस लौटते हुए वे हमेशा वादा करते हैं कि अगले साल भी आएँगे, पर मैं जानती हूँ कि वे नहीं आएँगे, वे भी जानते हैं कि वे नहीं आएँगे, फिर भी हमारी दोस्ती में कोई अंतर नहीं पड़ता। फिर... फिर कुछ दिनों बाद पहाड़ों पर बर्फ़ पिघलने लगती है, छुट्टियाँ ख़त्म होने लगती हैं, आप सब लोग अपने-अपने घरों से वापस लौट आते हैं और मिस्टर ह्यूबर्ट, पता भी नहीं चलता कि छुट्टियाँ कब शुरू हुई थीं, कब ख़त्म हो गईं...’
लतिका ने देखा कि ह्यूबर्ट उसकी ओर आतंकित भयाकुल दृष्टि से देख रहा है। वह सिटपिटाकर चुप हो गई। उसे लगा, मानो वह इतनी देर में पागल-सी अनर्गल प्रलाप कर रही हो।
‘मुझे माफ़ करना मिस्टर ह्यूबर्ट…कभी-कभी मैं बच्चों की तरह बातों में बहक जाती हूँ।’
‘मिस लतिका...’ ह्यूबर्ट ने धीरे से कहा। वह चलते-चलते रुक गया था। लतिका ह्यूबर्ट के भारी स्वर से चौंक-सी गई।
‘क्या बात है मिस्टर ह्यूबर्ट?’
‘वह पत्र... उसके लिए मैं लज्जित हूँ। उसे आप वापस लौटा दें, समझ लें कि मैंने उसे कभी नहीं लिखा था।’
लतिका कुछ समझ न सकी, दिग्भ्रांत-सी खड़ी हुई ह्यूबर्ट के पीले, उद्विग्न चेहरे को देखती रही।
ह्यूबर्ट ने धीरे से लतिका के कंधे पर हाथ रख दिया।
‘कल डॉक्टर ने मुझे सब कुछ बता दिया। अगर मुझे पहले से मालूम होता तो...तो... ह्यूबर्ट हकलाने लगा।
‘मिस्टर ह्यूबर्ट ... किंतु लतिका से आगे कुछ भी नहीं कहा गया। उसका चेहरा सफ़ेद हो गया था।
दोनों चुपचाप कुछ देर तक स्कूल के गेट के बाहर खड़े रहे।
मीडोज़... पगडंडियों, पत्तों, छायाओं से घिरा छोटा-सा द्वीप, मानो कोई घोंसला दो हरी घाटियों के बीच आ दबा हो। भीतर घुसते ही पिकनिक की काली आग से झुलसे हुए पत्थर, अधजली टहनियाँ, बैठने के लिए बिछाए गए पुराने अख़बारों के टुकड़े इधर-उधर बिखरे दिखाई दे जाते हैं। अक्सर टूरिस्ट पिकनिक के लिए यहाँ आते हैं। मीडोज़ को बीच में काटता हुआ टेढ़ा-मेढ़ा बरसाती नाला बहता है, जो दूर से धूप में चमकता हुआ सफ़ेद रिबन-सा दिखाई देता है।
यहीं पर काठ के तख़्तों का बना हुआ टूटा-सा पुल है, जिस पर लड़कियाँ हिचकोले खाती हुई चल रही हैं।
‘डॉक्टर मुकर्जी, आप तो सारा जंगल जला देंगे’—मिस वुड ने अपनी ऊँची एड़ी के सैंडल में जलती हुई दियासलाई को दबा डाला, जो डॉक्टर ने सिगार सुलगाकर चीड़ के पत्तों के ढेर पर फेंक दी थी। वे नाले से कुछ दूर हटकर चीड़ के दो पेड़ों की गुँथी हुई छाया के नीचे बैठे थे। उनके सामने एक छोटा-सा रास्ता नीचे पहाड़ी गाँव की ओर जाता था, जहाँ पहाड़ की गोद में शकरपारों के खेत एक-दूसरे के नीचे बिछे हुए थे। दोपहर के सन्नाटे में भेड़-बकरियों के गलों में बँधी हुई घंटियों का स्वर हवा मे बहता हुआ सुनाई दे जाता था।
घास पर लेटे-लेटे डॉक्टर सिगार पीते रहे।
‘जंगल की आग कभी देखी है, मिस वुड... एक अलमस्त नशे की तरह धीरे-धीरे फैलती जाती है।’
‘आपने कभी देखी है डॉक्टर?’ मिस वुड ने पूछा, ‘मुझे तो बड़ा डर लगता है।’
‘बहुत साल पहले शहरों को जलते हुए देखा था।’ डॉक्टर लेटे हुए आकाश की ओर ताक रहे थे। ‘एक-एक मकान ताश के पत्तों की तरह गिरता जाता है। दुर्भाग्यवश ऐसे अवसर देखने में बहुत कम आते हैं।’
‘आपने कहाँ देखा, डॉक्टर?’
‘लड़ाई के दिनों में अपने शहर रंगून को जलते हुए देखा था।’
मिस वुड की आत्मा को ठेस लगी, किंतु फिर भी उनकी उत्सुकता शांत नहीं हुई।
‘आपका घर—क्या वह भी जल गया था?
डॉक्टर कुछ देर तक चुपचाप लेटा रहा।
‘हम उसे ख़ाली छोड़कर चले आए थे—मालूम नहीं, बाद में क्या हुआ?’ अपने व्यक्तिगत जीवन के संबंध में कुछ भी कहने में डॉक्टर को कठिनाई महसूस होती है।
‘डॉक्टर, क्या आप कभी वापस बर्मा जाने की बात नहीं सोचते?’ डॉक्टर ने अँगड़ाई ली और करवट बदलकर औंधे मुँह लेट गए। उनकी आँखें मुँद गई और माथे पर बालों की लटें झूल आई।
‘सोचने से क्या होता है मिस वुड’ ‘जब बर्मा में था, तब क्या कभी सोचा था कि यहाँ आकर उम्र काटनी होगी?’
‘लेकिन डॉक्टर, कुछ भी कह लो, अपने देश का-सा सुख कहीं और नहीं मिलता। यहाँ तुम चाहे कितने वर्ष रह लो, अपने को हमेशा अजनबी ही पाओगे।’
डॉक्टर ने सिगार के धुएँ को धीरे-धीरे हवा में छोड़ दिया—‘दरअसल अजनबी तो मैं वहाँ भी समझा जाऊँगा, मिस वुड। इतने वर्षो बाद वहाँ मुझे कौन पहचानेगा? इस उम्र में नए सिरे में रिश्ते जोड़ना काफ़ी सिरदर्द का काम है— कम-से-कम मेरे बस की बात नहीं है।’
‘लेकिन डॉक्टर, आप कब तक इस पहाड़ी क़स्बे में पड़े रहेंगे—इसी देश में रहना है तो किसी बड़े शहर मे प्रैक्टिस शुरू कीजिए?’
‘प्रैक्टिस बढ़ाने के लिए कहाँ-कहाँ भटकता फिरूँगा, मिस वुड। जहाँ रहो, वहीं मरीज़ मिल जाते हैं। यहाँ आया था कुछ दिनों के लिए—फिर मुद्दत हो गई और टिका रहा। जब कभी जी ऊबेगा। कहीं चला जाऊँगा। जड़ें कहीं नहीं जमती, तो पीछे भी नहीं छूट जाता। मुझे अपने बारे में कोई ग़लतफ़हमी नहीं है मिस वुड, मैं सुखी हूँ।’
मिस वुड ने डॉक्टर की बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया! दिल में वह हमेशा डॉक्टर को उच्छृंखल, लापरवाह और सनकी समझती रही है, किंतु डॉक्टर के चरित्र में उसका विश्वास है—न जाने क्यों, क्योंकि डॉक्टर ने जाने-अनजाने में उसका कोई प्रमाण दिया हो, यह उसे याद नहीं पड़ता।
मिस वुड ने एक ठंडी साँस भरी। वह हमेशा यह सोचती थी कि यदि डॉक्टर इतना आलसी और लापरवाह न होता, तो अपनी योग्यता के बल पर काफ़ी चमक सकता था। इसीलिए उन्हें डॉक्टर पर क्रोध भी आता था और दुःख भी होता था।
मिस वुड ने अपने बैग से ऊन का गोला और सलाइयाँ निकाली, फिर उसके नीचे से अख़बार में लिपटा हुआ चौड़ा कॉफ़ी का डिब्बा उठाया, जिसमें अंडों की सैंडविचें और हैम्बर्गर दबे हुए थे। थर्मस से प्यालों में कॉफ़ी उँडेलते मिस वुड ने कहा, ‘डॉक्टर, कॉफ़ी ठंडी हो रही है।’
डॉक्टर लेटे-लेटे बुड़बुड़ाया। मिस वुड ने नीचे झुककर देखा, वह कुहनी पर सिर टिकाए चुपचाप सो रहा था। ऊपर का होंठ ज़रा-सा फैलकर मुड़ गया था, मानो किसी से मज़ाक़ करने से पहले मुस्कुरा रहा हो।
उसकी उँगुलियों में दबा हुआ सिगार नीचे झुका हुआ लटक रहा था।
‘मेरी, मेरी, व्हाट डू यू वान्ट—’ दूसरे स्टैंडर्ड में पढ़ने वाली मेरी ने अपनी चंचल-चपल आँखें ऊपर उठाई—लड़कियों का दायरा उसे घेरे हुए, कभी पास आता था, कभी खिंचता चला जाता था।
‘आई वान्ट-आई वान्ट ब्लू—’ दोनों हाथों को हवा में घुमाते हुए, मेरी चिल्लाई। दायरा पानी की तरह टूट गया। सब लड़कियाँ एक-दूसरे पर गिरती-पड़ती किसी नीली वस्तु को छूने के लिए भाग-दौड़ करने लगीं।
लंच समाप्त हो चुका था। लड़कियों के छोटे-छोटे दल मीडोज़ में बिखर गए थे। ऊँची क्लास की कुछ लड़कियाँ चाय का पानी गर्म करने के लिए पेड़ों पर चढ़-कर सूखी टहनियाँ तोड़ रही थीं।
दोपहर की उस घड़ी में मीडोज़ अलसाया ऊँघना-सा जान पड़ता था। हवा का कोई भूला-भटका झोंका—चीड़ के पत्ते खड़खड़ा उठते थे। कभी कोई पक्षी अपनी सुस्ती मिटाने झाड़ियों से उड़कर नाले के किनारे बैठ जाता था, पानी में सिर डुबोता था, फिर ऊबकर हवा में दो-चार निरुद्देश्य चक्कर काटकर दुबारा झाड़ियों में दुबक जाता था।
किंतु जंगल की ख़ामोशी शायद कभी चुप नहीं रहती। गहरी नींद में डूबी सपनों-सी कुछ आवाज़ें नीरवता के हल्के-झीने पर्दे पर सलवटें बिछा जाती हैं—मूक लहरों-सी हवा में तिरती हैं—मानो कोई दबे-पाँव झाँककर अदृश्य संकेत कर जाता है—‘देखो मैं यहाँ हूँ—’
लतिका ने जूली के ‘बॉब हेयर’ को सहलाते हुए कहा, ‘तुम्हें कल रात बुलाया था।’
‘मैडम, मैं गई थी—आप अपने कमरे में नहीं थीं।’ लतिका को याद आया कि कल रात वह डॉक्टर के कमरे के टैरेस पर देर तक बैठी रही थी—और भीतर ह्यूबर्ट पियानो पर शोपाँ का नौक्टर्न बजा रहा था।
‘जूली, तुमसे कुछ पूछना था।’ उसे लगा, वह जूली की आँखों से अपने को बचा रही है।
जूली ने अपना चेहरा ऊपर उठाया। उसकी भूरी आँखों से कौतूहल झाँक रहा था।
‘तुम ऑफ़िसर्स मेस में किसी को जानती हो?’
जूली ने अनिश्चित भाव से सिर हिलाया। लतिका कुछ देर तक जूली को अपलक घूरती रही।
‘जूली, मुझे विश्वास है, तुम झूठ नहीं बोलोगी।’ कुछ क्षण पहले जूली के आँखों में जो कौतुहल था, वह भय में परिणत होने लगा।
लतिका ने अपनी जैकट की जेब से एक नीला लिफ़ाफ़ा निकालकर जूली की गोद में फेंक दिया।
‘यह किसकी चिट्ठी है?
जूली ने लिफ़ाफ़ा उठाने के लिए हाथ बढ़ाया, किंतु फिर एक क्षण के लिए उसका हाथ काँपकर ठिठक गया—लिफ़ाफ़े पर उसका नाम और होस्टल का पता लिखा हुआ था।
‘थेंक यू मैडम, मेरे भाई का पत्र है, वह झाँसी में रहते है!’ जूली ने घबराहट में लिफ़ाफ़े को अपनी स्कर्ट की तहों में छिपा लिया।
‘जूली, ज़रा मुझे लिफ़ाफ़ा दिखलाओ।’ लतिका का स्वर तीखा, कर्कश-सा हो आया।
जूली ने अनमने भाव से लतिका को पत्र दे दिया।
‘तुम्हारे भाई झाँसी में रहते है?’
जूली इस बार कुछ नहीं बोली। उसकी उद्भ्रांत उखड़ी-सी आँखें लतिका को देखती रही।
‘यह क्या है?’
जूली का चेहरा सफ़ेद, फक पड़ गया। लिफ़ाफ़े पर कुमाऊँ रेजीमेंटल सेंटर की मुहर उसकी ओर घूर रही थी।
‘कौन है यह—’ लतिका ने पूछा। उसने पहले भी होस्टल में उड़ती हुई अफ़वाह सुनी थी कि जूली को क्लब में किसी मिलिट्री अफ़सर के संग देखा गया था, किंतु ऐसी अफ़वाहें अक्सर उड़ती रहती थी, और उसने उस पर विश्वास नहीं किया था।
‘जूली, तुम अभी बहुत छोटी हो—जूली के होंठ काँपे-उसकी आँखों में निरीह याचना का भाव घिर आया।
‘अच्छा अभी जाओ—तुमसे छुट्टियों के बाद बातें करूँगी।’
जूली ने ललचाई दृष्टि से लिफ़ाफ़े की ओर देखा, कुछ बोलने को उद्यत हुई, फिर बिना कुछ कहे चुपचाप वापस लौट गई।
लतिका देर तक जूली को देखती रही, जब तक वह आँखों से ओझल नहीं हो गई। क्या मैं किसी खूसट बुढ़िया से कम हूँ! अपने अभाव का बदला क्या मैं दूसरों से ले रही हूँ?
शायद—कौन जाने—शायद जूली का यह प्रथम परिचय हो, उस अनुभूति से, जिसे कोई भी लड़की बड़े चाव से संजोकर, सँभालकर अपने में छिपाए रहती है एक अनिर्वचनीय सुख, जो पीड़ा लिए है, पीड़ा और सुख को डुबोती हुई उमड़ते ज्वार की ख़ुमारी—जो दोनों को अपने में समा लेती है—एक दर्द, जो आनंद से उपजा है और पीड़ा देता है—
यहीं इसी देवदार के नीचे उसे भी यही लगा था, जब गिरीश ने पूछा था, ‘तुम चुप क्यों हो?’ वह आँखें मूँदे सोच रही थी—सोच कहाँ रही थी, जी रही थी, उस क्षण को जो भय और विस्मय के बीच भिंचा था—बहका-सा पागल क्षण! वह अभी पीछे मुड़ेगी तो गिरीश की ‘नर्वस’ मुस्कुराहट दिखाई दे जाएगी, उस दिन से आज दोपहर तक का अतीत एक दुःस्वप्न की मानिंद टूट जाएगा। वही देवदार है, जिस पर उसने अपने बालों के क्लिप से गिरीश का नाम लिखा था। पेड़ की छाल उतरती नहीं थी, क्लिप टूट-टूट जाता था, तब गिरीश ने अपने नाम के नीचे उसका नाम लिखा था। जब कभी कोई अक्षर बिगड़कर टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता था, तब वह हँसती थी, और गिरीश का काँपता हाथ और भी काँप जाता था—
लतिका को लगा कि जो वह याद करती है, वही भूलना भी चाहती है, लेकिन जब सचमुच भूलने लगती है, तब उसे भय लगता है कि जैसे कोई उसकी किसी चीज़ को उसके हाथों से छीने लिए जा रहा है, ऐसा कुछ जो सदा के लिए खो जाएगा। बचपन में जब कभी वह अपने किसी खिलौने को खो देती थी, तो वह गुमसुम-सी होकर सोचा करती थी, कहाँ रख दिया मैंने। जब बहुत दौड़-धूप करने पर खिलौना मिल जाता, तो वह बहाना करती कि अभी उसे खोज ही रही है कि वह अभी मिला नहीं है। जिस स्थान पर खिलौना रखा होता, जान-बूझकर उसे छोड़कर घर के दूसरे कोनों में उसे खोजने का उपक्रम करती। तब खोई हुई चीज़ याद रहती, इसलिए भूलने का भय नहीं रहता था—
आज वह उस बचपन के खेल का बहाना क्यों नहीं कर पाती? ‘बहाना’—शायद करती है, उसे याद करने का बहाना, जो भूलता जा रहा है दिन, महीने बीत जाते हैं, और वह उलझी रहती है, अनजाने में गिरीश का चेहरा धुँधला पड़ता जाता है, याद वह करती है, किंतु जैसे किसी पुरानी तस्वीर के धूल-भरे शीशे को साफ़ कर रही हो। अब वैसा दर्द नहीं होता, सिर्फ़ उसको याद करती है, जो पहले कभी होता था—तब उसे अपने पर ग्लानि होती है। वह फिर जान-बूझ-कर उस घाव को कुरेदती है, जो भरता जा रहा है, ख़ुद-ब-ख़ुद, उसकी कोशिशों के बावजूद भरता जा रहा है।
देवदार पर खुदे हुए अधमिटे नाम लतिका की ओर निस्तब्ध-निरीह भाव से निहार रहे थे। मीडोज़ के घने सन्नाटे में नाले पार से खेलती हुई लड़कियों की आवाजें गूँज जाती थी...
व्हाट डू यू वान्ट...व्हाट डू यू वान्ट—?
तितलियाँ, झींगुर, जुगनू—मीडोज़ पर उतरती हुई साँझ की छायाओं में पता नहीं चलता, कौन आवाज़ किसकी है? दोपहर के समय जिन आवाज़ों को अलग-अलग करके पहचाना जा सकता था, अब वे एकस्वरता की अविरल धारा में घुल गई थी। घास से अपने पैरों को पोंछता हुआ कोई रेंग रहा है। झाड़ियों के झुरमुट से परों को फडफड़ाता हुआ झपटकर कोई ऊपर में उड़ जाता है—किंतु ऊपर देखो तो कहीं कुछ भी नहीं है। मीडोज़ के झरने का गड़गड़ाता स्वर—जैसे अँधेरी सुरंग में झपाटे से ट्रेन गुज़र गई हो, और देर तक उसमें सीटियों और पहियों की चीत्कार गूँजती रही हो...
पिकनिक कुछ देर तक और चलती, किंतु बादलों की तहें एक-दूसरे पर चढ़ती जा रही थी। पिकनिक का सामान बटोरा जाने लगा। मीडोज़ के चारों ओर बिखरी हुई लड़कियाँ मिस वुड के इर्द-गिर्द जमा होने लगी। अपने संग वे अजीब-ओ-ग़रीब चीज़ें लाई थी। कोई किसी पक्षी के टूटे पंख को बालों में लगाए हुए थी, किसी ने पेड़ की टहनी को चाकू से छीलकर छोटी-सी बेंत बना ली थी। ऊँची क्लास की कुछ लड़कियों ने अपने-अपने रूमालों में नाले से पकड़ी हुई छोटी-छोटी बालिश्त-भर की मछलियों को दबा रखा था जिन्हें मिस वुड से छिपाकर वे एक-दूसरे को दिखा रही थीं।
मिस वुड लड़कियों की टोली के संग आगे निकल गईं। मीडोज़ से पक्की सड़क तक तीन-चार फर्लांग की चढ़ाई थी। लतिका हाँफने लगी। डॉक्टर मुकर्जी सबसे पीछे आ रहे थे। लतिका के पास पहुँचकर वह ठिठक गए। डॉक्टर ने दोनों घुटनों को ज़मीन पर टेकते हुए सिर झुकाकर एलिजाबेथ-युगीन अँग्रेज़ी मे कहा—‘मैडम, आप इतनी परेशान क्यों नज़र आ रही हैं—’
और डॉक्टर की नाटकीय मुद्रा को देखकर लतिका के होंठों पर एक थकी-सी ढीली-ढीली मुस्कुराहट बिखर गई।
‘प्यास के मारे गला सूख रहा है और यह चढ़ाई है कि ख़त्म होने में नहीं आती।’
डॉक्टर ने अपने कंधे पर लटकते हुए थर्मस को उतारकर लतिका के हाथों में देते हुए कहा—‘थोड़ी-सी कॉफ़ी बची है, शायद कुछ मदद कर सके।’
‘पिकनिक में तुम कहाँ रह गए डॉक्टर, कहीं दिखाई नहीं दिए?’
‘दोपहर-भर सोता रहा—मिस वुड के संग। मेरा मतलब है, मिस वुड पास बैठी थीं।’
‘मुझे लगता है, मिस वुड मुझसे मोहब्बत करती हैं। कोई भी मज़ाक़ करते समय डॉक्टर अपनी मूँछों के कोनों को चबाने लगता है।’
‘क्या कहती थी?’ लतिका ने थर्मस से कॉफ़ी को मुँह में उड़ेल लिया।
‘शायद कुछ कहती, लेकिन बद-क़िस्मती से बीच में ही मुझे नींद आ गई। मेरी ज़िंदगी के कुछ ख़ूबसूरत प्रेम-प्रसंग कम्बख़्त इस नींद के कारण अधूरे रह गए हैं।’
और इस दौरान में जब दोनों बातें कर रहे थे, उनके पीछे मीडोज़ और मोटर रोड के संग चढ़ती हुई चीड़ और बाँज के वृक्षों की क़तारें साँझ के घिरते अँधेरे में डूबने लगी, मानो प्रार्थना करते हुए उन्होंने चुपचाप अपने सिर नीचे झुका लिए हों। इन्हीं पेड़ों के ऊपर बादलों में गिरजे का क्रॉस कहीं उलझा पड़ा था। उसके नीचे पहाड़ों की ढलान पर बिछे हुए खेत भागती हुई गिलहरियों से लग रहे थे, मानो किसी की टोह मे स्तब्ध ठिठक गई हों।
‘डॉक्टर, मिस्टर ह्यूबर्ट पिकनिक पर नहीं आए?’
डॉक्टर मुकर्जी टार्च जलाकर लतिका के आगे-आगे चल रहे थे।
‘मैंने उन्हें मना कर दिया था।’
‘किसलिए?’
अँधेरे में पैरों के नीचे दबे हुए पत्तों की चरमराहट के अतिरिक्त कुछ सुनाई नहीं देता था। डॉक्टर मुकर्जी ने धीरे से खाँसा।
‘पिछले कुछ दिनों से मुझे संदेह होता जा रहा है कि ह्यूबर्ट की छाती का दर्द मामूली दर्द नहीं है।’ डॉक्टर थोड़ा-सा हँसा, जैसे उसे अपनी यह गंभीरता अरुचिकर लग रही हो।
डॉक्टर ने प्रतीक्षा की, शायद लतिका कुछ कहेगी। किंतु लतिका चुपचाप उसके पीछे चल रही थी।
‘यह मेरा महज़ शक है, शायद मैं बिलकुल ग़लत होऊँ, किंतु यह बेहतर होगा कि वह अपने एक फेफड़े का एक्स-रे करा लें’—इससे कम-से-कम कोई भ्रम तो नहीं रहेगा।’
‘आपने मिस्टर ह्यूबर्ट से इसके बारे में कुछ कहा है?’
‘अभी तक कुछ नहीं कहा। ह्यूबर्ड ज़रा-सी बात पर चिंतित हो उठता है, इसलिए कभी साहस नहीं हो पाता...’
डॉक्टर को लगा, उसके पीछे आते हुए लतिका के पैरों का स्वर सहसा बंद हो गया है। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, लतिका बीच सड़क पर अँधेरे में छाया-सी चुपचाप निश्चल खड़ी है।
‘डॉक्टर...’ लतिका का स्वर भर्राया हुआ था।
‘क्या बात है मिस लतिका...आप रुक क्यों गई?’
‘डॉक्टर...क्या मिस्टर ह्यूबर्ट...’
‘डॉक्टर ने अपनी टार्च की मद्धिम रौशनी लतिका पर दी’—उसने देखा लतिका का चेहरा एकदम पीला पड़ गया है और वह रह-रहकर पत्ते-सी काँप जाती है।
‘मिस लतिका, क्या बात है, आप तो बहुत डरी-सी जान पड़ती है?’
‘कुछ नहीं डॉक्टर... मुझे...मुझे कुछ याद आ गया था...’
वे दोनों फिर चलने लगे। कुछ दूर जाने पर उनकी आँखें ऊपर उठ गई। पक्षियों का एक बेड़ा धूमिल आकाश में त्रिकोण बनाता हुआ पहाड़ों के पीछे से उनकी ओर आ रहा था। लतिका और डॉक्टर सिर उठाकर इन पक्षियों को देखते रहे। लतिका को याद आया, हर साल सर्दी की छुट्टियों से पहले ये परिंदे मैदानों की ओर उड़ते हैं, कुछ दिनों के लिए बीच के इस पहाड़ी स्टेशन पर बसेरा करते हैं, प्रतीक्षा करते है बर्फ़ के दिनों की, जब वे नीचे अजनबी, अनजाने देशों में उड़ जाएँगे...
क्या वे सब भी प्रतीक्षा कर रहे हैं? वह, डॉक्टर मुकर्जी, मिस्टर ह्यूबर्ट—लेकिन कहाँ के लिए, हम कहाँ जाएँगे—
किंतु उसका कोई उत्तर नहीं मिला—उस अँधेरे में मीडोज़ के झरने के भुतैले स्वर और चीड़ के पत्तों की सरसराहट के अतिरिक्त कुछ सुनाई नहीं देता था।
लतिका हडबड़ाकर चौक गई। अपनी छड़ी पर झुका डॉक्टर धीरे-धीरे सीटी बजा रहा था।
‘मिस लतिका, जल्दी कीजिए, बारिश शुरू होने वाली है।’
होस्टल पहुँचते-पहुँचते बिजली चमकने लगी थी। किंतु उस रात बारिश देर तक नहीं हुई। बादल बरसने भी नहीं पाते थे कि हवा के थपेड़ों से धकेल दिए जाते थे। दूसरे दिन तड़के ही बस पकड़नी थी, इसलिए डिनर के बाद लड़कियाँ सोने के लिए अपने-अपने कमरों में चली गई थी।
जब लतिका अपने कमरे में गई, उस समय कुमाऊँ रेजीमेंटल सेंटर का बिगुल बज रहा था। उसके कमरे में करीमुद्दीन कोई पहाड़ी धुन गुनगुनाता हुआ लैंप में गैस पंप कर रहा था। लतिका उन्हीं कपड़ों में, तकिए को दोहरा करके लेट गई। करीमुद्दीन ने उड़ती हुई निगाह से लतिका को देखा, फिर अपने काम में जुट गया।
‘पिकनिक कैसी रही मेम साहब?’
‘तुम क्यों नहीं आए, सब लड़कियाँ तुम्हें पूछ रही थी?’ लतिका को लगा, दिन-भर की थकान धीरे-धीरे उसके शरीर की पसलियों पर चिपटती जा रही है। अनायास उसकी आँखें नींद के बोझ से झपकने लगी।
‘मैं चला आता तो ह्यूबर्ट साहब की तीमारदारी कौन करता? दिन-भर उनके बिस्तरे से सटा हुआ बैठा रहा और अब वह ग़ायब हो गए हैं।’
करीमुद्दीन ने कंधे पर लटकते हुए मैले-कुचैले तौलिए को उतारा और लैंप के शीशों की गर्द पोंछने लगा।
लतिका की अधमुँदी आँखें खुल गईं। ‘क्या ह्यूबर्ट साहब अपने कमरे में नहीं हैं?’
‘ख़ुदा जाने, इस हालत में कहाँ भटक रहे हैं! पानी गर्म करने कुछ देर के लिए बाहर गया था, वापस आने पर देखता हूँ कि कमरा ख़ाली पड़ा है।’
करीमुद्दीन बड़बड़ाता हुआ बाहर चला गया। लतिका ने लेटे-लेटे पलंग के नीचे चप्पलों को पैरों से उतार दिया।
ह्यूबर्ट इतनी रात कहाँ गए? किंतु लतिका की आँखें फिर झपक गई। दिन भर की थकान ने सब परेशानियों, प्रश्नों पर कुँजी लगा दी थी, मानो दिन-भर आँखमिचौनी खेलते हुए उसने अपने कमरे में ‘दय्या’ को छू लिया था। अब वह सुरक्षित थी, कमरे की चहारदीवारी के भीतर उसे कोई नहीं पकड़ सकता। दिन के उजाले में वह गवाह थी, मुजरिम थी, हर चीज़ का उसमें तक़ाज़ा था, अब इस अकेलेपन में कोई गिला नहीं, उलाहना नहीं, सब खींचातानी ख़त्म हो गई है, जो अपना है, वह बिलकुल अपना-सा हो गया है, उसका दुःख नहीं, अपनाने की फ़ुर्सत नहीं...
लतिका ने दीवार की ओर मुँह घुमा लिया। लैंप के फीके आलोक में हवा में काँपते पर्दों की छायाएँ हिल रही थीं। बिजली कड़कने से खिड़कियों के शीशे चमक-चमक जाते थे, दरवाज़े चटखने लगते थे, जैसे कोई बाहर से धीमे-धीमे खट-खटा रहा हो। कॉरीडोर से अपने-अपने कमरों में जाती हुई लड़कियों की हँसी, बातों के कुछ शब्द—फिर सब कुछ शांत हो गया, किंतु फिर भी देर तक कच्ची नींद में वह लैंप का धीमा-सा ‘सी-सी’ स्वर सुनती रही। कब वह स्वर भी मौन का भाग बनकर मूक हो गया, उसे पता न चला।
कुछ देर बाद उसको लगा, सीढ़ियों से कुछ दबी आवाज़ें ऊपर आ रही है, बीच-बीच में कोई चिल्ला उठता है, और फिर सहसा आवाज़ धीमी पड़ जाती है।
‘मिस लतिका, ज़रा अपना लैंप ले आइए।’ कॉरीडोर के ज़ीने से डॉक्टर मुकर्जी की आवाज़ आई थी।
कॉरीडोर में अँधेरा था। वह तीन-चार सीढ़ियाँ नीचे उत्तरी, लैंप नीचे किया। सीढ़ियों से सटे जंगले पर ह्यूबर्ट ने अपना सिर रख दिया था। उसकी एक बाँह जंगले के नीचे लटक रही थी और दूसरी डॉक्टर के कंधे पर झूल रही थी, जिसे डॉक्टर ने अपने हाथों में जकड़ रखा था।
‘मिस लतिका, लैंप ज़रा और नीचे झुका दीजिए...ह्यूबर्ट...ह्यूबर्ट...’ डॉक्टर ने ह्यूबर्ट को सहारा देकर ऊपर खींचा। ह्यूबर्ट ने अपना चेहरा ऊपर किया। ह्विस्की की तेज़ बू का झोंका लतिका के सारे शरीर को झिंझोड़ गया। ह्यूबर्ट की आँखों में सुर्ख़ डोरे खिंच आए थे, क़मीज़ का कॉलर उलटा हो गया था और टाई की गाँठ ढीली होकर नीचे खिसक आई थी। लतिका ने काँपते हाथों से लैंप सीढ़ियों पर रख दिया और आप दीवार के सहारे खड़ी हो गई। उसका सिर चकराने लगा था।
‘इन ए बैक लेन ऑफ़ द सिटी, देयर इज़ ए गर्ल, हू लव्ज़ मी...’ ह्यूबर्ट हिचकियों के बीच गुनगुना उठता था।
‘ह्यूबर्ट, प्लीज़... प्लीज़,’ डॉक्टर ने ह्यूबर्ट के लड़खड़ाते शरीर को अपनी मज़बूत गिरफ़्त में ले लिया।
‘मिस लतिका, आप लैंप लेकर आगे चलिए... लतिका ने लैंप उठाया। दीवार पर उन तीनों की छायाएँ डगमगाने लगी।
‘इन ए बैक लेन ऑफ़ द सिटी देयर इज़ ए गर्ल हू लव्ज़ मी...’ ह्यूबर्ट डॉक्टर मुकर्जी के कंधे पर सिर टिकाए अँधेरी सीढ़ियों पर उल्टे-सीधे पैर रखता चढ़ रहा था।
‘डॉक्टर! हम कहाँ हैं?’ ह्यूबर्ट सहसा इतने ज़ोर से चिल्लाया कि उसकी लड़खड़ाती आवाज़ सुनसान अँधेरे में कॉरीडोर की छत से टकराकर देर तक हवा में गूँजती रही।
‘ह्यूबर्ट ...’ डॉक्टर को एकदम ह्यूबर्ट पर ग़ुस्सा आ गया, फिर अपने ग़ुस्से पर ही उसे खीझ-सी हो आई और वह ह्यूबर्ट की पीठ थपथपाने लगा।
‘कुछ बात नहीं है ह्यूबर्ट डियर, तुम सिर्फ़ थक गए हो।’ राबर्ट ने अपनी आँखें डॉक्टर पर गड़ा दी, उनमें एक भयभीत बच्चे की-सी कातरता झलक रही थी, मानो डॉक्टर के चेहरे से वह किसी प्रश्न का उत्तर पा लेना चाहता हो।
ह्यूबर्ट के कमरे में पहुँचकर डॉक्टर ने उसे बिस्तरे पर लिटा दिया। ह्यूबर्ट ने बिना किसी विरोध के चुपचाप जूते मोज़े उतरवा दिए। जब डॉक्टर ह्यूबर्ट की टाई उतारने लगा, तो ह्यूबर्ट अपनी कुहनी के सहारे उठा, कुछ देर तक डॉक्टर को आँखें फाड़ते हुए घूरता रहा, फिर धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया।’
‘डॉक्टर, क्या मैं मर जाऊँगा?’
‘कैसी बात करते हो ह्यूबर्ट!’ डॉक्टर ने हाथ छुड़ाकर धीरे से ह्यूबर्ट का सिर तकिए पर टिका दिया।
‘गुड नाइट ह्यूबर्ट...!’
‘गुड नाइट डॉक्टर,’ ह्यूबर्ट ने करवट बदल ली।
‘गुड नाइट मिस्टर ह्यूबर्ट’ लतिका का स्वर सिहर गया।
किंतु ह्यूबर्ट ने कोई उत्तर नहीं दिया। करवट बदलते ही उसे नींद आ गई थी।
कॉरीडोर में वापस आकर डॉक्टर मुकर्जी रेलिंग के सामने खड़े हो गए। हवा के तेज़ झोंकों से आकाश में फैले बादलों की परतें जब कभी इकहरी हो जाती, तब उनके पीछे से चाँदनी बुझती हुई आग के धुएँ-सी आसपास की पहाड़ियों पर फैल जाती थी।
‘आपको मिस्टर ह्यूबर्ट कहाँ मिले?’ लतिका कॉरीडोर के दूसरे कोने में रेलिंग पर झुकी हुई थी।
‘क्लब की बार में उन्हें देखा था, मैं न पहुँचता तो न जाने कब तक बैठे रहते,’ डॉक्टर मुकर्जी ने सिगरेट जलाई। उन्हें अभी एक-दो मरीज़ों के घर जाना था। कुछ देर तक उन्हें टाल देने के इरादे से वह कॉरीडोर में खड़े रहे।
नीचे अपने क्वार्टर में बैठा हुआ करीमुद्दीन माउथ आर्गन पर कोई पुरानी फ़िल्मी धुन बजा रहा था।
‘आज दिन-भर बादल छाए रहे, लेकिन खुलकर बारिश नहीं हुई...’
‘क्रिसमस तक शायद मौसम ऐसा ही रहेगा। कुछ देर तक दोनों चुपचाप खड़े रहे। कान्वेंट स्कूल के बाहर फैले लॉन से झींगुरों का अनवरत स्वर चारों ओर फैली निःस्तब्धता को और भी अधिक घना बना रहा था। कभी-कभी ऊपर मोटर रोड पर किसी कुत्ते की रिरियाहट सुनाई पड़ जाती थी।
‘डॉक्टर...कल रात आपने मिस्टर ह्यूबर्ट से कुछ कहा था—मेरे बारे में?’
‘वही जो सब लोग जानते हैं और...ह्यूबर्ट, जिसे जानना चाहिए था, लेकिन नहीं जानता था...’
डॉक्टर ने लतिका की ओर देखा, वह जड़वत् अविचलित रेलिंग पर झुकी हुई थी।
‘वैसे हम सबकी अपनी-अपनी ज़िद होती है, कोई छोड़ देता है, कोई आख़िर तक उससे चिपका रहता है। डॉक्टर मुकर्जी अँधेरे में मुस्कुराए। उनकी मुस्कुराहट में सूखा-सा विरक्ति का भाव भरा था।
‘कभी-कभी मैं सोचता हूँ मिस लतिका, किसी चीज़ को न जानना यदि ग़लत है, तो जानबूझकर न भूल पाना, हमेशा जोंक की तरह उससे चिपटे रहना—यह भी ग़लत है। बर्मा से आते हुए जब मेरी पत्नी की मृत्यु हुई थी, मुझे अपनी ज़िंदगी बेकार-सी लगी थी। आज इस बात को अर्सा गुज़र गया और जैसा आप देखती हैं, मैं जी रहा हूँ; उम्मीद है कि काफ़ी अर्सा और जीऊँगा। ज़िंदगी काफ़ी दिलचस्प लगती है; और यदि उम्र की मजबूरी न होती तो शायद मैं दूसरी शादी करने में भी न हिचकता। इसके बावजूद कौन कह सकता है कि मैं अपनी पत्नी से प्रेम नहीं करता था—आज भी करता हूँ...’
‘लेकिन डॉक्टर...’ लतिका का गला रुँध आया था।
‘क्या मिस लतिका...’
‘डॉक्टर, सब कुछ होने के बावजूद वह क्या चीज़ है जो हमें चलाए चलती है, हम रुकते हैं तो भी अपने रेले में वह हमें घसीट ले जाती है।’ लतिका को लगा कि वह जो कहना चाह रही है कह नहीं पा रही, जैसे अँधेरे में कुछ खो गया है, जो मिल नहीं पा रहा, शायद कभी नहीं मिल पाएगा।
‘यह तो आपको फ़ादर एल्मंड ही बता सकेंगे मिस लतिका,’ डॉक्टर की खोखली हँसी में उनका पुराना सनकीपन उभर आया था।
‘अच्छा, चलता हूँ, मिस लतिका, मुझे काफ़ी देर हो गई है,’ डॉक्टर ने दियासलाई जलाकर घड़ी को देखा।
‘गुड नाइट मिस लतिका!’
‘गुड नाइट डॉक्टर...!’
डॉक्टर के जाने पर लतिका कुछ देर तक अँधेरे में रेलिंग से सटी खड़ी रही। हवा चलने से कॉरीडोर में जमा हुआ कुहरा सिहर उठता था। शाम को सामान बाँधते हुए लड़कियों ने अपने-अपने कमरे के सामने जो पुरानी कापियों, अख़बार और रद्दी के ढेर लगा दिए थे वे सब, अब अँधेरे कॉरीडोर में हवा के झोंकों से इधर-उधर बिखरने लगे थे।
लतिका ने लैंप उठाया और अपने कमरे की ओर जाने लगी। कॉरीडोर में चलते हुए उसने देखा, जूली के कमरे से प्रकाश की एक पतली रेखा दरवाज़े के बाहर खिंच आई है। लतिका को कुछ याद आया। वह कुछ क्षणों तक साँस रोके जूली के कमरे के बाहर खड़ी रही। कुछ देर बाद उसने दरवाज़ा खटखटाया। भीतर से कोई आवाज़ नहीं आई। लतिका ने दबे हाथों से हलका-सा धक्का दिया दरवाज़ा खुल गया। जूली लैंप बुझाना भूल गई थी। लतिका धीरे-धीरे दबे पाँव जूली के पलंग के पास चली आई। जूली का सोता हुआ चेहरा लैंप के फीके आलोक में पीला-सा दिख रहा था। लतिका ने अपनी जेब से वही नीला लिफ़ाफ़ा निकाला और उसे धीरे से जूली के तकिए के नीचे दबाकर रख दिया।
andhiyare galiyare mein chalte hue latika thithak gai diwar ka sahara lekar usne lainp ki batti baDha di siDhiyon par uski chhaya ek beDaul phati phati akriti khinchne lagi sat number kamre se laDkiyon ki batachit aur hansi thahakon ka swar abhi tak aa raha tha latika ne darwaza khatkhataya shor achanak band ho gaya
kaun hai?
latika chupchap khaDi rahi kamre mein kuch der tak ghusur pusur hoti rahi, phir darwaze ki chatakhni ke khulne ka swar aaya latika kamre ki dehri se kuch aage baDhi, lainp ki jhapakti lau mein laDkiyon ke chehre cinema ke parde par thahre hue kloz ap ki bhanti ubharne lage
kamre mein andhera kyon kar rakha hai? latika ke swar mein halki si jhiDak ka abhas tha
lamp mein tel hi khatm ho gaya, maiDam!
ye sudha ka kamra tha, isliye use hi uttar dena paDa hostel mein shayad wo sabse adhik lokapriy thi kyonki sada chhutti ke samay ya raat ke dinner ke baad aas pas ke kamron mein rahne wali laDkiyon ka jamghat usi ke kamre mein lag jata tha der tak gapshap, hansi mazaq chalta rahta
tel ke liye karimuddin se kyon nahin kaha?
kitni bar kaha maiDam, lekin use yaad rahe tab to!
kamre mein hansi ki phuhar ek kone mein dusre kone tak phail gai latika ke kamre mein aane se anushasan ki jo ghutan ghir i thi, wo achanak bah gai karimuddin hostel ka naukar tha uske aalas aur kaam mein talamtol karne ke qisse hostel ki laDkiyon mein piDhi dar piDhi chale aate the
latika ko hathat kuch smarn ho aaya andhere mein lainp ghumate hue charon or nigahen dauDai kamre mein charon or ghera banakar we baithi thi—pas pas ek dusre se satkar sabke chehre parichit the, kintu lainp ke pile maddhim parkash mein mano kuch badal gaya tha, ya jaise wo unhen pahli bar dekh rahi thi
juli, ab tak tum is blauk mein kya kar rahi ho?
juli khiDki ke pas palang ke sirhane baithi thi usne chupchap ankhen nichi kar li lainp ka parkash charon or se simatkar ab kewal uske chehre par gir raha tha
knight register par dastakhat kar diye?
han, maiDam
phir ? latika ka swar kaDa ho aaya juli sakuchakar khiDki se bahar dekhne lagi
jab se latika is school mein i hai, usne anubhaw kiya hai ki hostel ke is niyam ka palan Dant phatkar ke bawjud nahin hota
maiDam, kal se chhuttiyan shuru ho jayengi, isliye aaj raat hum sabne milkar aur sudha puri baat na kahkar hemanti ki or dekhte hue muskurane lagi
hemanti ke gane ka program hai; aap bhi kuch der baithiye n!
latika ko uljhan malum hui is samay yahan aakar usne unke maze ko kirkira kar diya is chhote se hil station par rahte use khasa arsa ho gaya, lekin kab samay patjhaD aur garmiyon ka ghera par kar sardi ki chhuttiyon ki god mein simat jata hai, use kabhi yaad nahin rahta
choron ki tarah chupchap wo dehri se bahar ho gai uske chehre ka tanaw Dhila paD gaya wo muskurane lagi
mere sang sno faul dekhne koi nahin thahrega?
maiDam, chhuttiyon mein kya aap ghar nahin ja rahi hai? sab laDkiyon ki ankhen us par jam gain
abhi kuch pakka nahin hai—i lawa d sno faul!
latika ko laga ki yahi baat usne pichhle sal bhi kahi thi aur shayad pichhle se pichhle sal bhi use laga, mano laDkiyan use sandeh ki drishti se dekh rahi hain, mano unhonne uski baat par wishwas nahin kiya uska sir chakrane laga mano badalon ka syah jhurmut kisi anjane kone se uthkar use apne mein samo lega wo thoDa sa hansi, phir dhire se usne apne sir ko jhatak diya
juli, tumse kuch kaam hai, apne blauk mein jane se pahle mujhse mil lena—wel, good knight! latika ne apne pichhe darwaza band kar diya
good knight maiDam, good knight, good knight !
galiyare ki siDhiyan na utarkar latika railing ke sahare khaDi ho gai lainp ki batti ko niche ghumakar kone mein rakh diya bahar dhundh ki nili tahen bahut ghani ho chali theen lawn par lage hue cheeD ke patton ki sarsarahat hawa ke jhonkon ke sang kabhi tez, kabhi dhimi hokar bhitar bah aati thi hawa mein sardi ka abhas pakar latika ke dimagh mein kal se shuru hone wali chhuttiyon ka dhyan bhatak aaya usne ankhen moond li use laga ki jaise uski tangen bans ki lakDiyon ki tarah uske sharir se bandhi hain jinki ganthen dhire dhire khulti ja rahi hain sir ki chakrahat abhi miti nahin thi, magar ab jaise wo bhitar na hokar bahar phaili hui dhundh ka hissa ban gai thi
siDhiyon par batachit ka swar sunkar latika jaise sote se jagi shaul ko kandhon par sameta aur lainp utha liya doctor mukarji mistar hyubart ke sang ek angrezi dhun gungunate hue upar aa rahe the siDhiyon par andhera tha aur hyubart ko bar bar apni chhaDi se rasta tatolna paDta tha latika ne do chaar siDhiyan utarkar lainp ko niche jhuka diya good iwning doctor, good iwning mistar hyubart! thaink yu miss latika—hyubart ke swar mein kritaj~nata ka bhaw tha siDhiyan chaDhne se unki sans tez ho rahi thi aur wo diwar se lage hue hanph rahe the lainp ki raushani mein unke chehre ka pilapan kuch tanbe ke rang jaisa ho gaya tha
yahan akeli kya kar rahi ho miss latika? doctor ne honthon ke bhitar se siti bajai
cheking karke laut rahi thi aaj is waqt upar kaise aana hua mistar hyubart?
hyubart ne muskurakar apni chhaDi doctor ke kandhon se chhua di—inse puchho, yahi mujhe zabardasti ghasit laye hain
miss latika, hum aapko nimantran dene aa rahe the aaj raat mere kamre mein ek chhota sa kansart hoga, jismen mi hyubart shopan aur chaikowski ke kampojishan bajayenge aur phir kreem coffe pi jayegi aur uske baad agar samay raha, to pichhle sal hamne jo gunah kiye hain unhen hum milkar kanphes karenge doctor mukarji ke chehre par ubhri muskan khel gai
doctor, mujhe maf karen, meri tabiat kuch theek nahin hai
chaliye, ye theek raha phir to aap waise bhi mere pas aati doctor ne dhire se latika ke kandhon ko pakaDkar apne kamre ki taraf moD diya
doctor mukarji ka kamra blauk ke dusre sire par chhat se juDa hua tha wo aadhe barmi the, jiske chihn unki thoDi dabi hui nak aur chhoti chhoti chanchal ankhon se aspasht the barma par japaniyon ka akramn hone ke baad wo is chhote se pahaDi shahr mein aa base the praiwet practice ke alawa wo conwent school mein haijin fiziyalauji bhi paDhaya karte the aur isliye unko school ke hostel mein hi ek kamra rahne ke liye de diya gaya tha kuch logon ka kahna tha ki barma se aate hue raste mein unki patni ki mirtyu ho gai, lekin is sambandh mein nishchit roop se kuch nahin kaha ja sakta kyonki doctor swayan kabhi apni patni ki charcha nahin karte
baton ke dauran doctor aksar kaha karte hain—marne se pahle main ek bar barma zarur jaunga—aur tab ek kshan ke liye unki ankhon mein ek nami si aa jati latika chahne par bhi unse kuch poochh nahin pati use lagta ki doctor nahin chahte ki koi atit ke sambandh mein unse kuch bhi puchhe ya sahanubhuti dikhlaye dusre hi kshan apni gambhirta ko door thelte hue wo hans paDte—ek sukhi, bujhi hui hansi
hom siknes hi ek aisi bimari hai jiska ilaj kisi doctor ke pas nahin hai
chhat par mez kursiyan Dal di gai aur bhitar kamre se parkoletar mein coffe ka pani chaDha diya gaya
suna hai agle do teen warshon mein yahan par bijli ka intizam ho jayega— doctor ne sprit lamp jalate hue kaha
ye baat to pichhle salon se sunne mein aa rahi hai angrezon ne bhi koi lambi chauDi scheme banai thi pata nahin uska kya hua—hyubart ne kaha wo aram kursi par leta hua bahar lawn ki or dekh raha tha
latika kamre se do mombattiyan le i mez ke donon siron par tikakar unhen jala diya gaya chhat ka andhera mombatti ki phiki raushani ke ird gird simatne laga ek ghani nirawta charon or ghirne lagi hawa mein cheeD ke wrikshon ki sanya sanya door door tak phaili pahaDiyon aur ghatiyon mein sitiyon ki goonj si chhoDti ja rahi thi
is bar shayad barf jaldi giregi, abhi se hawa mein ek sard khushki si mahsus hone lagi hai—doctor ka cigar andhere mein lal bindi sa chamak raha tha
pata nahin, miss wuD ko special serwice ka gorakhdhandha kyon pasand aata hai chhuttiyon mein ghar jane se pahle kya ye zaruri hai ki laDkiyan father elmanD ka sarman sunen? hyubart ne kaha
pichhle panch sal se main sunta aa raha hun—father elmanD ke sarman mein kahi her pher nahin hota
doctor ko father elmanD ek ankh nahin suhate the
latika kursi par aage jhukkar pyalon mein coffe unDelne lagi har sal school band hone ke din yahi do program hote hain—chaipal mein special serwice aur uske baad din mein picnic latika ko pahla sal yaad aaya jab doctor ke sang picnic ke baad wo club gai thi doctor bar mein baithe the ball room kumaun rejiment afsaron se bhara hua tha kuch der tak biliyarD ka khel dekhne ke baad jab wo wapas bar ki or aa rahe the, tab unhonne dai or club ki library mein dekha—magar usi samay doctor mukarji pichhe se aa gaye the miss latika, ye mi girish negi hain? biliyarD room se aate hue hansi thahakon ke beech wo kuch thahar gaya tha wo kisi kitab ke beech mein ungli rakhkar library ki khiDki se bahar dekh raha tha halo doctor wo pichhe muDa tab us kshan
us kshan na jane kyon latika ka hath kanp gaya aur coffe ki garm bunden uski saDi par chhalak i andhere mein kisi ne nahin dekha ki latika ke chehre par ek unida ritapan ghir aaya hai
hawa ke jhonke se mombattiyon ki lau phaDakne lagi chhat se bhi unchi kath godam jane wali saDak par yu pi roDwez ki akhiri bus Dak lekar ja rahi thi bus ki haiD laits mein aas pas phaili hui jhaDiyon ki chhayayen ghar ki diwar par sarakti hui ghayab hone lagi
miss latika, aap is sal bhi chhuttiyon mein yahin rahengi? doctor ne puchha
doctor ka sawal hawa mein tanga raha usi kshan piano par shopan ka nauktarn hyubart ki ungliyon ke niche se phisalta hua dhire dhire chhat ke andhere mein ghulne laga—mano jal par komal swapnil urmiyan bhanwaron ka jhilmilata jal bunti hui door door kinaron tak phailti ja rahi ho latika ko laga ki jaise kahin bahut door barf ki chotiyon se parindon ke jhunD niche anjan deshon ki or uDe ja rahe hain in dinon aksar usne apne kamre ki khiDki se unhen dekha hai—dhage mein bandhe chamkile lattuon ki tarah we ek lambi teDhi meDhi qatar mein uDe jate hain, pahaDon ki sunsan nirawta se pare, un wichitr shahron ki or jahan shayad wo kabhi nahin jayegi
latika aarm chair par unghne lagi doctor mukarji ka cigar andhere mein chupchap jal raha tha doctor ko ashchary hua ki latika na jane kya soch rahi hai aur latika soch rahi thi—kya wo buDhi hoti ja rahi hai? uske samne school ki prinsipal miss wuD ka chehra ghoom gaya—popala munh, ankhon ke niche jhulti hui mans ki thailiyan, zara zara si baat par chiDh jana, karkash awaz mein chikhna—sab use olDmeD kahkar pukarte hain kuch warshon baad wo bhi hu ba hu waisi hi ban jayegi latika ke samuche sharir mein jhurjhuri si dauD gai, mano anjane mein usne kisi galiz wastu ko chhu liya ho use yaad aaya, kuch mahine pahle achanak use hyubart ka prempatr mila tha—bhawuk, yachana se bhara hua patr, jismen usne na jane kya kuch likha tha, jo kabhi uski samajh mein nahin aaya use hyubart ki is bachkana harkat par hansi i thi, kintu bhitar hi bhitar prasannata bhi hui thi uski umr abhi biti nahin hai, ab bhi wo dusron ko apni or akarshait kar sakti hai hyubart ka patr paDhkar use krodh nahin aaya, i thi kewal mamta wo chahti to uski ghaltafahmi ko door karne mein der na lagti, kintu koi shakti use roke rahti hai, uske karan apne par wishwas rahta hai, apne sukh ka bhram mano hyubart ki ghaltafahmi se juDa hai
hyubart hi kyon, wo kya kisi ko bhi chah sakegi, us anubhuti ke sang, jo ab nahin rahi, jo chhaya si us par manDrati rahti hai, na swayan mitti hai, na use mukti de pati hai use laga, jaise badalon ka jhurmut phir uske mastishk par dhire dhire chhane laga hai, uski tange phir nirjiw, shithil si ho gai hain
wo jhatke se uth khaDi hui, ‘doctor, maf karna, mujhe bahut thakan si lag rahi hai bina waky pura kiye hi wo chali gai
kuch der tak taires par nistabdhata chhai rahi mombattiyan bujhne lagi thi doctor mukarji ne cigar ka naya kash liya—sab laDkiyan ek jaisi hoti hain—bewaquf aur sentimental!
hyubart ki ungliyon ka dabaw piano par Dhila paDta gaya—antim dhunon ki jhijhki si goonj kuch kshnon tak hawa mein tirti rahi
doctor, aapko malum hai miss latika ka wywahar pichhle kuch arse se ajib sa lagta hai —hyubart ke swar mein laparwahi ka bhaw tha wo nahin chahta tha ki doctor ko latika ke prati uski bhaunaun ka abhas matr bhi mil sake jis komal anubhuti ko wo itne samay se sanjota aaya hai, hyubart use hansi ke ek hi thahake mein uphasaspad bana dega
kya tum niyti mein wishwas karte ho, hyubart? doctor ne kaha hyubart dam roke pratiksha karta raha wo janta tha ki koi bhi baat kahne se pahle doctor ko filausophaiz karne ki aadat thi doctor taires ke jangle se satkar khaDa ho gaya phiki si chandni mein cheeD ke peDon ki chhayayen lawn par gir rahi thi kabhi kabhi koi jugnu andhere mein hara parkash chhiDakta hawa mein ghayab ho jata tha
main kabhi kabhi sochta hoon, insan zinda kisaliye rahta hai—kya use koi aur behtar kaam karne ko nahin milta? hazaron meel apne mulk se door main yahan paDa hun—yahan kaun mujhe janta hai yahin shayad mar bhi jaunga hyubart, kya tumne kabhi mahsus kiya hai ki ek ajnabi ki haisiyat se parai zamin par jana kafi khaufana baat hai ?
hyubart wismit sa doctor ki or dekhne laga usne pahli bar doctor mukarji ke is pahlu ko dekha tha apne sambandh mein wo aksar chup rahte the
koi pichhe nahin hai, ye baat mujh mein ek ajib qim ki befiri paida kar deti hai lekin kuch logon ki maut ant tak paheli bani rahti hai shayad we zindagi mein bahut ummid lagate the use traijik bhi nahin kaha ja sakta, kyonki akhiri dam tak unhen marne ka ehsas nahin hota
doctor, aap kiska zikr kar rahe hain? hyubart ne pareshan hokar puchha
doctor kuch der tak chupchap cigar pita raha phir muDkar wo mombattiyon ki bujhti hui lau ko dekhne laga
tumhen malum hai, kisi samay latika bila nagha club jaya karti thi girish negi se uska parichai wahin hua tha kashmir jane se ek raat pahle usne mujhe sab kuch bata diya tha main ab tak latika se us mulaqat ke bare mein kuch nahin kah saka hoon kintu us roz kaun janta tha ki wo wapas nahin lautega aur ab ab kya farq paDta hai let d dead Dai
doctor ki sukhi sard hansi mein khokhli si shunyata bhari thi
kaun girish negi?
kumaun rejiment captain tha
doctor tatha latika hyubart se aage kuch nahin kaha gaya use yaad aaya wo patr, jo usne latika ko bheja tha kitna arthahin aur uphasaspad, jaise uska ek ek shabd uske dil ko kachot raha ho! usne dhire se piano par sir tika liya latika ne use kyon nahin bataya, kya wo iske yogya bhi nahin tha?
latika wo to bachchi hai, pagal! marne wale ke sang khu thoDe hi mara jata hai
kuch der chup rahkar doctor ne apne parashn ko phir duhraya
lekin hyubart, kya tum niyti par wishwas karte ho?
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achchha chalta hoon, doctor, guDnait!
guDnait hyubart mujhe maf karna, main cigar khatm karke uthunga
subah badli chhayi thi latika ke khiDki kholte hi dhundh ka ghubbara sa bhitar ghus aaya, jaise raat bhar diwar ke sahare sardi mein thithurta hua wo bhitar aane ki pratiksha kar raha ho school mein upar chaipal jane wali saDak badalon mein chhip gai thi, kewal chaipal ka kras dhundh ke parde par ek dusre ko katti hui pencil ki rekhaon sa dikhai de jata tha
latika ne khiDki se ankhen hatai, to dekha ki karimuddin chay ki tray liye khaDa hai karimuddin military mein ardali rah chuka tha, isliye tray mez par rakhkar atenshan ki mudra mein khaDa ho gaya
latika jhatke se uth baithi subah se aalas karke kitni bar jagkar wo so chuki hai apni khisiyahat mitane ke liye latika ne kaha, baDi sardi hai aaj, bistar chhoDne ko ji nahin chahta
aji mem sahab, abhi kya sardi i hai—baDe dinon mein dekhana, kaise dant katkatate hain—aur karimuddin apne hathon ko baghlon mein Dale hue is tarah sikuD gaya jaise un dinon ki kalpana matr se use jaDa lagna shuru ho gaya ho ganje sir par donon taraf ke uske baal khizab lagane se katthai rang ke bhure ho gaye the baat chahe kisi wishay par ho rahi ho, wo hamesha khinchtan kar use aise kshaetr mein ghasit lata tha, jahan wo bejhijhak apne wicharon ko prakat kar sake
ek bar to yahan lagatar itni barf giri ki bhuwali se lekar Dak bangale tak sari saDken jam ho gai itni barf thi mem sahab, ki peDon ki tahniyan tak sikuDkar tanon se lipat gai thi—bilkul aise, aur karimuddin niche jhuk kar murgi sa ban gaya
kab ki baat hai? latika ne puchha
ab ye to joD hisab karke hi pata chalega, mem sahab lekin itna yaad hai ki us waqt angrez bahadur yahin the kentonment ki imarat par qaumi jhanDa nahin laga tha baDe jabar the ye angrez, do ghanton mein hi sari saDken saf karwa di un dinon ek siti bajate hi pachas ghoDe wale jama ho jate the ab to sare shaiD khali paDe hain we log apni khidmat bhi karwana jante the, ab ujaD ho gaya hai, karimuddin udas bhaw se bahar dekhne laga
aj ye pahli bar nahin hai jab latika karimuddin se un dinon ki baten sun rahi hai jab angrez bahadur ne is sthan ko swarg bana rakha tha
ap chhuttiyon mein is sal bhi yahin rahengi, memasahab?
dikhta to kuch aisa hi hai karimuddin—tumhen phir tang hona paDega
kya kahti hain memasahab! aapke rahne se hamara bhi man lag jata hai, warna chhuttiyon mein to yahan kutte lotte hain
tum zara mistri se kah dena ki is kamre ki chhat ki marammat kar jaye pichhle sal barf ya pani dararon se tapakta rahta tha latika ko yaad aaya ki pichhli sardiyon mein jab kabhi barf girti thi, to use pani se bachne ke liye raat bhar kamre ke kone mein simatkar sona paDta tha
karimuddin chay ki tray uthata hua bola, bart sahab to kal hi chale jayenge—kal raat unki tabiat phir kharab ho gai aadhi raat ke waqt mujhe jagane aaye the kahte the, chhati mein taklif hai unhen ye mausam nahin ras aata kah rahe the, laDkiyon ki bus mein wo bhi kal hi chale jayenge
karimuddin darwaza band karke chala gaya latika ki ichha hui ki wo hyubart ke kamre mae jakar unki tabiat ki puchhatachh kar aaye kintu phir na jane kyon sleeper pairon mein tange rahe aur wo khiDki ke bahar badalon ko umaDta hua dekhti rahi hyubart ka chehra jab use dekhkar sahma sa dayniy ho jata hai, tab lagta hai ki wo apni mook nirih yachana mein use kos raha hai—n wo uski ghaltafahmi ko door karne ka prayatn kar pati hai, na use apni wiwashta ki safai dene ka sahas hota hai use lagta hai ki is jale se bahar nikalne ke liye wo dhage ke jis sire ko pakaDti hai, wo khu ek ganth bankar rah jata hai
bahar bundabandi hone lagi thi—kamre ki tin ki chhat khat khat bolne lagi latika palang se uth khaDi hui bistar ko tah kar bichhaya phir pairon mein slipron ko ghasitte hue wo baDe aine tak i aur uske samne stool par baith kar balon ko kholne lagi kintu kuch der tak kanghi balon mein hi uljhi rahi aur wo gumsum ho shishe mein apna chehra takti rahi karimuddin ko ye kahna yaad hi nahin raha ki dhire dhire aag jalane ki lakDiyan jama kar len in dinon saste damon par sukhi lakDiyan mil jati hain pichhle sal to kamra dhuen se bhar jata tha jiske karan kanpknpate jaDe mein bhi use khiDki kholkar hi sona paDta tha
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pahle sal akele mein use baDa Dar sa laga tha chhuttiyo mein sare school aur hostel ke kamre sanya sanya karne lagte hain Dar ke mare use jab kabhi neend nahin aati thi, tab wo karimuddin ko raat mein der tak baton mein uljhaye rakhti baton mein jab wo khoi si so jati, tab karimuddin lainp bujhakar chala jata kabhi kabhi bimari ka bahana karke wo doctor ko bulwa bhejti thi aur baad mein bahut zid karke dusre kamre mein unka bistar lagwa deti
latika ne kandhe se balon ka guchchha nikala aur use bahar phenkne ke liye wo khiDki ke pas aa khaDi hui bahar chhat ki Dhalan se barish ke jal ki moti si dhaar barabar lawn par gir rahi thi meghachchhann akash mae sarakte hue badalon ke pichhe pahaDiyon ke jhunD kabhi ubhar aate the, kabhi chhip jate the, mano chalti train se koi unhen dekh raha ho latika ne khiDki se sir bahar nikal liya—hawa ke jhonke se uski ankhen jhap gai use jitne kaam yaad aate hain, utna hi aalas ghana hota jata hai! bus ki seaten reserw karwane ke liye chaprasi ko rupae dene hain jo saman hostel ki laDkiyan pichhe chhoDe ja rahi hai, unhen godam mein rakhwana hoga kabhi kabhi to chhoti class ki laDkiyon ke sath packing karwane ke kaam mein bhi use hath bantana paDta tha
wo in kamon se ubti nahin dhire dhire sab nibatte jate hai koi ghalati idhar udhar rah jati hai, jo baad mein sudhar jati hai—har kaam mein kichkich rahti hai, pareshani aur diqqat hoti hai—kintu der saber isse chhutkara mil hi jata hai kintu jab laDkiyon ki akhiri bus chali jati hai, tab man uchat sa ho jata hai—khali corridor mein ghumti hui wo kabhi is kamre mein jati hai aur kabhi usmen wo nahin jaan pati ki apne se kya kare—dil kahin bhi nahin tik pata, hamesha bhatka bhatka sa rahta hai
is sabke bawjud sab koi sahj bhaw se poochh baithta hai, miss latika, chhuttiyon mein aap ghar nahin ja rahi? tab wo kya kahe?
Ding Dang Ding special serwice ke liye school chaipal ke ghante bajne lage the latika ne apna sir khiDki ke bhitar kar liya usne jhatpat saDi utari aur petikot mein hi kandhe par tauliya Dal ghusalkhane mein ghus gai
left rait left left
kentonment jane wali pakki saDak par chaar chaar ki pankti mein kumaun rejiment ke sipahiyon ko ek tukDi march kar rahi thi fauji buton ki bhari aur khuradri awazen school chaipal ki diwaron se takrakar bhitar preyar hall mein goonj rahi thi
blseD aar d meek father elmanD ek ek shabd chabate hue khankharate swar mein sarman off d maunt paDh rahe the isa masih ki murti ke niche kainDal briyam ke donon or mombattiyan jal rahi thi, jinka parkash aage baithi hui laDkiyon par paD raha tha pichhli lainon ki benche andhere mein Dubi hui thi, jahan laDkiyan pararthna ki mudra mein baithi hui sir jhukaye ek dusre se ghusar pusar kar rahi thi miss wuD school season ke saphaltapurwak samapt ho jane par widyathiyon aur staff sadasyon ko badhai ka bhashan de chuki thi—aur ab father ke pichhe baithi hui apne mein hi kuch buDbuDa rahi thi mano dhire dhire father ko praumt kar rahi ho
amin father elmanD ne bible mez par rakh di aur preyar buk utha li hall ki khamoshi kshan bhar ke liye toot gai laDkiyon ne khaDe hote hue jaan bujhkar bencho ko pichhe dhakela—benchen farsh par ragaD khakar siti bajati hui pichhe khisak gai—hall ke kone se hansi phoot paDi miss wuD ka chehra tan gaya, mathe par bhrikutiyan chaDh gai phir achanak nistabdhata chha gai—hall ke us ghute hue dhundhalake mein father ka tikha phata hua swar sunai dene laga—jisas seD, i em d lait off d world—hi dait faloeth mi shail not wak in Darknes, bat shail haiw d lait off d lait
doctor mukarji ne ub aur akulahat se bhari jamuhai li, kab ye qissa khatm hoga? usne itne unche swar mein latika se puchha ki wo sakuchakar dusri or dekhne lagi special serwice ke samay doctor mukarji ke honthon par wyangyatmak muskan khelti rahi aur wo dhire dhire apni munchhon ko khinchta raha
father elmanD ki wesh bhusha dekhkar latika ke dil mein gudgudi si dauD gai jab wo chhoti thi, to aksar ye baat sochkar wismit hua karti thi ki kya padari log safed choghe ke niche kuch nahin pahante, agar dhokhe se wo upar uth jaye to?
left left left march karte fauji boot chaipal se door hote ja rahe the—kewal unki goonj hawa mein shesh rah gai thi
hig number 117— father ne pararthna pustak kholte hue kaha hall mein pratyek laDki ne desk par rakhi hui him buk khol li pannon ke ulatne ki khaDkhaDahat phisalti ek sire se dusre sire tak phail gai
age ki bench se uthkar hyubart piano ke samne stool par baith gaya sangit shikshak hone ke karan har sal special serwice ke awsar par use kauyar ke sang piano bajana paDta tha rabart ne apne rumal se nak saf ki apni ghabrahat chhipane ke liye hyubart hamesha aisa hi kiya karta tha kanakhiyon se hall ki or dekhte hue usne kanpte hathon se him buk kholi
leeD kainDli lait
piano ke sur dabe, jhijhakte se milne lage ghane balon se Dhanki hyubart ki lambi, pili ungliyan khulne simatne lagi kauyar mein gane wali laDkiyon ke swar ek dusre se gunthakar komal snigdh lahron mein bindh gaye
latika ko laga, uska juDa Dhila paD gaya hai, mano gardan ke niche jhool raha hai miss wuD ki ankh bacha latika ne chupchap balon mein lage klipon ko kas kar kheench diya
baDa jhakki adami hai subah mainne hyubart ko yahan aane se mana kiya tha, phir bhi chala aaya doctor ne kaha
latika ko karimuddin ki baat yaad ho gai raat bhar hyubart ko khansi ka daura paDa tha kal jane ke liye kah rahe the
latika ne sir teDha karke hyubart ke chehre ki ek jhalak pane ki wiphal cheshta ki itne pichhe se kuch bhi dekh pana asambhau tha; piano par jhuka hua kewal hyubart ka sir dikhai deta tha
leeD kainDli lait sangit ke sur mano ek unchi pahaDi par chaDhkar hanpti hui sanson ko akash ki agadh shunyata mae bikherte hue niche utar rahe hain barish ki mulayam dhoop chaipal ke lambe chaukor shishon par jhalamla rahi hai, jiski ek muhin chamkili rekha isamsih ki pratima par tirchhi hokar gir rahi hai mombattiyon ka dhuan dhoop mein nili si lakir khinchta hua hawa mein tirne laga hai piano ke kshanaik poz mein latika ko patton ka marmar kahin door anjani disha se aata hua sunai de jata hai ek kshan ke liye use ye bhram hua ki chaipal ka phika sa andhera us chhote se preyar hall ke charon konon se simatta hua uske asapas ghir aaya hai—mano koi uski ankhon par patti bandhakar use yahan tak le aaya ho aur achanak uski donon ankhen khol di hon use laga ki jaise mombattiyon ke dhumil aalok mein kuch bhi thos, wastawik na raha ho—chaipal ki chhat, diwaren, desk par rakha hua doctor ka sughaD suDaul hath—aur piano ke sur atit ki dhundh ko bhedte hue swayan us dhundh ka bhag bante ja rahe hon
ek pagli si smriti, ek udbhrant bhawna—chaipal ke shishon ke pare pahaDi sukhi hawa, hawa mein jhuki hui wiping wiloz ki kanpti tahniyan, pairon tale cheeD ke patton ki dhimi si chir parichit khaD khaD wahin par girish ek hath mein military ka khaki hat liye khaDa hai—chauDe uthe hue sabal kandhe, apna sir wahan tika do, to jaise simatkar kho jayega chaarls woyar, ye nam usne rakha tha wo jhempkar hansne lagta
tumhen army mein kisne chun liya, major ban gaye ho, lekin laDkiyon se bhi gaye bite ho zara zara si baat par chehra lal ho jata hai ye sab wo kahti nahin, sirf sochti bhar thi—socha tha kahungi, wo kabhi kabhi nahin aaya
buruns ka lal phool
laye ho
na
jhuthe
khaki qamiz ki jis jeb par baij chipke the, usi mein se musa hua buruns ka phool nikal aaya
chhih, sara murjha gaya
abhi khila kahan hai?
(hau klamzi)
uske balon mein girish ka hath ulajh raha hai—phul kahin tik nahin pata, phir use klip ke niche phansakar usne kaha—
dekha
wo muDi aur ismen pahle ki wo kuch kah pati, girish ne apna military ka hat dhap se uske sir par rakh diya wo mantrmugdh si waise hi khaDi rahi uske sir par girish ka hat hai—mathe par chhoti si bindi hai bindi par uDte hue baal hain girish ne us bindi ko apne honthon se chhua hai usne uske nange sir ko apne donon hathon mein samet liya hai —
latika
girish ne chiDhate hue kaha—main itar off kumaun—(uska ye nam girish ne use chiDhane ke liye rakha tha), wo hansne lagi
latika suno girish ka swar kaisa ho gaya tha?
na, main kuch bhi nahin sun rahi
latika main kuch mahinon mein wapas laut aunga
na main kuch bhi nahin sun rahi kintu wo sun rahi hai—wah nahin jo girish kah raha hai, balki wo, jo nahin kaha ja raha hai, jo uske baad kabhi nahin kaha gaya
leeD kainDli lait
laDkiyon ka swar piano ke swron mein Duba hua gir raha hai, uth raha hai hyubart ne sir moDkar latika ko nimish bhar dekha—ankhen munde dhyanmagna prastar murti si wo sthir nishchal khaDi thi kya ye bhaw uske liye? kya latika ne aise kshnon mein use apna sathi banaya hai? hyubart ne ek gahri sans li aur us sans mae Dher si thakan umaD i
dekho miss wuD kursi par baithe baithe so rahi hain doctor honthon mein hi phus phusaya ye doctor ka purana mazaq tha ki miss wuD pararthna karne ke bahane ankhen munde hue neend ki jhapkiyan leti hain
father elmanD ne kursi par phaile apne gown ko samet liya aur preyar buk band karke miss wuD ke kanon mein kuch kaha piano ka swar kramash mand paDne laga, hyubart ki ungliyan Dhili paDne lagi serwice ke samapt hone se poorw miss wuD ne order paDhkar sunaya barish hone ki ashanka se aaj ke karyakram mein kuch awashyak pariwartan karne paDe the picnic ke liye jhula dewi ke mandir jana sambhaw nahin ho sakega isliye school se kuch door miDoz mein hi sab laDkiyan nashte ke baad jama hongi sab laDkiyon ko dopahar ka lanch hostel kitchen se hi le jana hoga, kewal sham ki chay miDoz mein banegi
pahaDon ki barish ka kya bharosa! kuch der pahle dhuandhar badal garaj rahe the, sara shahr pani mein bhiga thithur raha tha—ab dhoop mein nahata nila akash dhundh ki ot se bahar nikalta hua phail raha tha latika ne chaipal se bahar aate hue dekha—wipig wiloz ki bhigi shakhaon se dhoop mein chamakti hui barish ki bunden tapak rahi theen
laDkiyan chaipal se bahar nikalkar chhote chhote jhunD banakar corridor mein jama ho gai hain nashte ke liye abhi pauna ghanta paDa tha aur unmen se koi laDki hostel jane ke liye ichchhuk nahin thi chhuttiyan abhi shuru nahin hui thi kintu shayad isiliye we in chand bache khuche kshnon mein anushasan ke ghere ke bhitar bhi mukt hone ka bharpur anand utha lena chahti theen
miss wuD ko laDkiyon ka ye gul gapaDa akhra, kintu father elmanD ke samne wo unhen Dant phatkar nahin saki apni jhunjhlahat dabakar wo muskurate hue boli, kal sab chali jayengi, sara school wiran ho jayega!
father elmanD ka lamba ojpurn chehra chaipal ki ghuti hui garmai se lal ho utha tha corridor ke jangle par apni chhaDi latkakar wo bole, chhuttiyon mein pichhe hostel mein kaun rahega?
pichhle do teen salon se miss latika hi rah rahi hain
aur doctor mukarji? father ka upri honth tanik khinch aaya
doctor to sardi garmi yahin rahte hain miss wuD ne wismay se father ki or dekha wo samajh nahin saki ki father ne doctor ka prsang kyon chheD diya hai
doctor mukarji chhuttiyon mein kahin nahin jate?
do mahine ki chhuttiyon mein barma jana kafi kathin hai, father! miss wuD hansne lagin
miss wuD, pata nahin aap kya sochti hain mujhe to miss latika ka hostel mein akele rahna kuch samajh mein nahin aata
lekin father, miss wuD ne kaha, ye to conwent school ka niyam hai ki koi bhi teacher chhuttiyon mein apne kharche par hostel mein rah sakti hai
main filaha school ke niymon ki baat nahin kar raha miss latika doctor ke sang yahan akeli hi rah jayengi aur sach puchhiye miss wuD, doctor ke bare mein meri ray kuch bahut achchhi nahin hai
father, aap kaisi baat kar rahe hain miss latika bachchi thoDe hi hain miss wuD ko aisi aasha nahin thi ki father elmanD apne dil mein daqiyanusi bhawna ko sthan denge
father elmanD kuch hataprabh se ho gaye baat talte hue bole, miss wuD, mera matlab ye nahin tha aap to janti hain, miss latika aur us military afsar ko lekar ek achchha khasa scandal ban gaya tha, school ki badnami hone mein kya der lagti hai!
wo bechara to ab nahin raha main use janti thi father! ishwar uski aatma ko shanti de!
miss wuD ne dhire se apni donon banhon se cross kiya
father elmanD ko miss wuD ki murkhata par itna adhik kshaobh hua ki unse aage aur kuch nahin bola gaya doctor mukarji se unki kabhi nahin patti thi, isliye miss wuD ki ankhon mein wo doctor ko nicha dikhana chahte the kintu miss wuD latika ka rona le baithi aage baat baDhana byarth tha unhonne chhaDi ko jangle se uthaya aur upar saf khule akash ko dekhte hue bole, program aapne yoon hi badla; miss wuD, ab kya barish hogi!
hyubart jab chaipal se bahar nikla to uski ankhen chakachaundh si ho gain use laga jaise kisi ne achanak Dher si chamkili uchalti hui raushani mutthi mein bharkar uski ankhon mein jhonk di ho piano ke sangit ke sur rui ke chhui mui reshon ki bhanti ab tak uske mastishk ki thaki mandi nason par phaDphaDa rahe the wo kafi thak gaya tha piano bajane se phephaDon par hamesha bhari dabaw paDta, dil ki dhaDkan tez ho jati thi use lagta tha ki sangit ke ek not ko dusre not mein utarne ke prayatn mein wo ek andheri khai par kar raha hai
aj chaipal mein mainne jo mahsus kiya, wo kitna rahasyamay, kitna wichitr tha, hyubart ne socha mujhe laga, piano ka har not chirantan khamoshi ki andheri khoh mein nikalkar bahar phaili nili dhundh ko katta, tarashta hua ek bhula sa arth kheench lata hai girta hua har poz ek chhoti si maut hai, mano ghane chhayadar wrikshon ki kanpti chhayaon mein koi pagDanDi gum ho gai ho, ek chhoti si maut jo aane wale suron ko apni bachi khuchi gunjon ki sansen samarpit kar jati hai jo mar jati hai, kintu mit nahin pati, mitti nahin isliye markar bhi jiwit hai, dusre suron mein lai ho jati hai
doctor, kya mirtyu aise hi aati hai? agar main doctor se puchhun to wo hansakar tal dega mujhe lagta hai, wo pichhle kuch dinon se koi baat chhipa raha hai—uski hansi mein jo sahanubhuti ka bhaw hota hai, wo mujhe achchha nahin lagna aaj usne mujhe special serwice mein aane se roka tha—karan puchhne par wo chup raha tha kaun si aisi baat hai, jise mujhse kahne mein doctor katrata hai shayad main shakki mizaj hota ja raha hoon, aur baat kuch bhi nahin hai
hyubart ne dekha, laDkiyon ki qatar school se hostel jane wali saDak par niche utarti ja rahi hai ujli dhoop mein unke rang birange ribbon, halki asmani rang ki frauken aur safed petiyan chamak rahi hain siniyar kaimbriz ki kuch laDkiyon ne chaipal ki watika se gulab ke phulon ko toDkar apne balon mein laga liya hai kentonment ke teen chaar sipahi laDkiyon ko dekhte hue ashlil mazaq karte hue hans rahe hain aur kabhi kabhi kisi laDki ki or zara sa jhukkar siti bajane lagte hain
halo mistar hyubart hyubart ne chaunkkar pichhe dekha latika ek mota sa register baghal mein dabaye khaDi thi
ap abhi yahin hain? hyubart ki drishti latika par tiki rahi wo kreem rang ki puri banhon ki uni jaikat pahne hui thi kumaunni laDkiyon ki tarah latika ka gala gol tha, dhoop ki tapan se paka gehuna rang kahin kahin halka sa gulabi ho aaya tha, mano bahut dhone par bhi gulab ke kuch dhabbe idhar udhar bikhre rah gaye hon
un laDkiyon ke nam not karne the, jo kal ja rahi hain so pichhe rukna paDa! aap bhi to kal ja rahe hain mistar hyubart?
abhi tak to yahi irada yahan rukkar bhi kya karunga? aap school ki or ja rahi hain?
chaliye
pakki saDak par laDkiyon ki bheeD jama thi, isliye we donon polo graunD ka chakkar katti hui pagDanDi se niche utarne lage
hawa tez ho chali cheeD ke patte har jhonke ke sang toot tutkar pagDanDi par Dher lagate jate the hyubart rasta banane ke liye apni chhaDi se unhen buharkar donon or bikher deta tha latika pichhe khaDi hui dekhti rahti thi almoDa ki or se aate hue chhote chhote badal reshmi rumalon se umaDte hue suraj ke munh par lipte se jate the, phir hawa mein bah nikalte the is khel mae dhoop kabhi mand, phiki si paD jati thi, kabhi apna ujla anchal kholkar samuche shahr ko apne mein samet leti thi
latika tanik aage nikal gai hyubart ki sans chaDh gai thi aur wo dhire dhire hanpta hua pichhe se aa raha tha jab we polo graunD ke paiweliyan ko chhoDkar military ke darin or muDe, to latika hyubart ki pratiksha karne ke liye khaDi ho gai use yaad aaya, chhuttiyon ke dinon mein jab kabhi kamre mae akele baithe baithe uska man ub jata tha, to wo aksar tahalte hue military tak chali jati thi usse sati pahaDi par chaDhkar wo barf mein Dhanke dewdar wrikshon ko dekha karti thi, jinki jhuki hui shakhon se rui ke galon si barf niche gira karti thi niche bazar jane wali saDak par bachche slez par phisla karte the wo khaDi khaDi barf mein chhipi hui us saDak ka anuman lagaya karti thi jo father elmanD ke ghar se guzarti hui military aspatal aur Dakghar se hokar church ki siDhiyon tak jakar gum ho jati thi jo manoranjan ek durgam paheli ko suljhane mein hota hai, wahi latika ko barf mein khoe raston ko khoj nikalne mein hota tha
ap bahut tez chalti hain, miss latika—thakan se hyubart ka chehra kumhla gaya tha mathe par pasine ki bunden chhalak i thi
kal raat apaki tabiat kya kuch kharab ho gai thee?
apne kaise jana? kya main aswasth dikh raha hoon? hyubart ke swar mein halki si kheejh ka abhas tha sab log meri sehat ko lekar kyon baat shuru karte hain, usne socha
nahin, mujhe to pata bhi nahin chalta, wo to subah karimuddin ne baton hi baton mein zikr chheD diya tha latika kuch apratibh si ho i
koi khas baat nahin, wo purana dard shuru ho gaya tha—ab bilkul theek hai apne kathan ki pushti ke liye hyubart chhati sidhi karke tez qadam baDhane laga
doctor mukarji ko dikhlaya tha?
wo subah aaye the unki baat kuch samajh mein nahin aati hamesha do baten ek dusre se ulti kahte hain kahte the ki is bar mujhe chhe sat mahine ki chhutti lekar aram karna chahiye lekin agar main theek hoon to bhala iski kya zarurat hai?
hyubart ke swar mein wyatha ki chhaya latika se chhipi na rah saki baat ko talte hue usne kaha, aap to nahaq chinta karte hain, mi hyubart! aaj kal mausam badal raha hai, achchhe bhale adami tak bimar ho jate hain
hyubart ka chehra prasannata mein damakne laga usne latika ko dhyan se dekha wo apne dil ka sanshay mitane ke liye nishchint ho jana chahta tha ki kahin latika use kewal dilasa dene ke liye hi to jhooth nahin bol rahi
yahi to main soch raha tha, miss latika! doctor ki salah sunkar to main Dar hi gaya bhala chhः mahine ki chhutti lekar main akela kya karunga? school mein to bachchon ke sang man laga rahta hai sach puchho to dilli mein ye do mahinon ki chhuttiyan dubhar ho jata hai
mistar hyubart kal aap dilli ja rahe hain ?
latika chalte chalte hathat thithak gai samne polo graunD phaila tha, jiske dusri or military ki trken kentonmet ki or ja rahi thi hyubart ko laga, jaise latika ki ankhen adhmundi si khuli rah gai hai, mano palkon par ek purana bhula sa sapna sarak aaya hai
mistar hyubart aap dilli ja rahe hain is bar latika ne parashn nahin duhraya—uske swar mein kewal ek asim duri ka bhaw ghir aaya
bahut arsa pahle main bhi dilli gai thi, mi hyubart! tab main bahut chhoti thee—n jane kitne baras beet gaye hamari mausi ka byah wahin hua tha bahut si chizen dekhi theen, lekin ab to sab kuch dhundhla sa paD gaya hai itna yaad hai ki hum qutub par chaDhe the sabse unchi manzil se hamne niche jhanka tha—n jane kaisa laga tha niche chalte hue adami chabhi bhare hue khilaunon se lagte the hamne upar se un par mungaphliyan phenki thi, lekin hum bahut nirash hue the kyonki unmen se kisi ne hamari taraf nahin dekha shayad man ne mujhe Danta tha, aur main sirf niche jhankte hue Dar gai thi suna hai, ab to dilli itna badal gaya hai ki pahchana nahin jata
we donon phir chalne lage hawa ka weg Dhila paDne laga uDte hue badal ab sustane se lage the, unki chhayayen nandadewi aur panchchuli ki pahaDiyon par gir rahi thi school ke pas pahunchte pahunchte cheeD ke peD pichhe chhoot gaye, kahin kahin ख़ubani ke peDon ke aas pas buruns ke lal phool dhoop mein chamak jate the school tak aane mein unhonne polo graunD ka lamba chakkar laga liya tha
miss latika, aap kahin chhuttiyon mein jati kyon nahin—sardiyon mein to yahan sab kuch wiran ho jata hoga?
ab mujhe yahan achchha lagta hai, latika ne kaha, pahle sal akelapan kuch akhra tha—ab aadi ho gai hoon christmas se ek raat pahle club mein Dans hota hai, latri Dali jati hai aur raat ko der tak nach gana hota rahta hai nae sal ke din kumaun rejiment ki or se parade graunD mein karniwal kiya jata hai, barf par sketing hoti hai, rang birange ghubbaron ke niche fauji band bajta hai, fauji afsar phainsi dress mein bhag lete hain har sal aisa hi hota hai, mistar hyubart phir kuch din baad wintar sports ke liye angrez tourist aate hain har sal main unse parichit hoti hoon, wapas lautte hue we hamesha wada karte hain ki agle sal bhi ayenge, par main janti hoon ki we nahin ayenge, we bhi jante hain ki we nahin ayenge, phir bhi hamari dosti mein koi antar nahin paDta phir phir kuch dinon baad pahaDon par barf pighalne lagti hai, chhuttiyan khatm hone lagti hain, aap sab log apne apne gharon se wapas laut aate hain aur mistar hyubart, pata bhi nahin chalta ki chhuttiyan kab shuru hui theen, kab khatm ho gain
latika ne dekha ki hyubart uski or atankit bhayakul drishti se dekh raha hai wo sitapitakar chup ho gai use laga, mano wo itni der mein pagal si anargal pralap kar rahi ho
mujhe maf karna mistar hyubart kabhi kabhi main bachchon ki tarah baton mein bahak jati hoon
miss latika hyubart ne dhire se kaha wo chalte chalte ruk gaya tha latika hyubart ke bhari swar se chaunk si gai
kya baat hai mistar hyubart?
wo patr uske liye main lajjit hoon use aap wapas lauta den, samajh len ki mainne use kabhi nahin likha tha
latika kuch samajh na saki, digbhrant si khaDi hui hyubart ke pile, udwign chehre ko dekhti rahi
hyubart ne dhire se latika ke kandhe par hath rakh diya
kal doctor ne mujhe sab kuch bata diya agar mujhe pahle se malum hota to to hyubart haklane laga
mistar hyubart kintu latika se aage kuch bhi nahin kaha gaya uska chehra safed ho gaya tha
donon chupchap kuch der tak school ke gate ke bahar khaDe rahe
miDoz pagDanDiyon, patton, chhayaon se ghira chhota sa dweep, mano koi ghonsla do hari ghatiyon ke beech aa daba ho bhitar ghuste hi picnic ki kali aag se jhulse hue patthar, adhajli tahniyan, baithne ke liye bichhaye gaye purane akhbaron ke tukDe idhar udhar bikhre dikhai de jate hain aksar tourist picnic ke liye yahan aate hain miDoz ko beech mein katta hua teDha meDha barsati nala bahta hai, jo door se dhoop mein chamakta hua safed ribbon sa dikhai deta hai
yahin par kath ke takhton ka bana hua tuta sa pul hai, jis par laDkiyan hichkole khati hui chal rahi hain
doctor mukarji, aap to sara jangal jala denge—miss wuD ne apni unchi eDi ke sainDal mein jalti hui diyasalai ko daba Dala, jo doctor ne cigar sulgakar cheeD ke patton ke Dher par phenk di thi we nale se kuch door hatkar cheeD ke do peDon ki gunthi hui chhaya ke niche baithe the unke samne ek chhota sa rasta niche pahaDi ganw ki or jata tha, jahan pahaD ki god mein shakarparon ke khet ek dusre ke niche bichhe hue the dopahar ke sannate mein bheD bakariyon ke galon mein bandhi hui ghantiyon ka swar hawa mae bahta hua sunai de jata tha
ghas par lete lete doctor cigar pite rahe
jangal ki aag kabhi dekhi hai, miss wuD ek almast nashe ki tarah dhire dhire phailti jati hai
apne kabhi dekhi hai doctor? miss wuD ne puchha, mujhe to baDa Dar lagta hai
bahut sal pahle shahron ko jalte hue dekha tha doctor lete hue akash ki or tak rahe the ek ek makan tash ke patton ki tarah girta jata hai durbhagyawash aise awsar dekhne mein bahut kam aate hain
apne kahan dekha, doctor?
laDai ke dinon mein apne shahr rangun ko jalte hue dekha tha
miss wuD ki aatma ko thes lagi, kintu phir bhi unki utsukta shant nahin hui
apka ghar—kya wo bhi jal gaya tha?
doctor kuch der tak chupchap leta raha
hum use khali chhoDkar chale aaye the—malum nahin, baad mein kya hua? apne wyaktigat jiwan ke sambandh mein kuch bhi kahne mein doctor ko kathinai mahsus hoti hai
doctor, kya aap kabhi wapas barma jane ki baat nahin sochte? doctor ne angDai li aur karwat badalkar aundhe munh let gaye unki ankhen mund gai aur mathe par balon ki laten jhool i
sochne se kya hota hai miss wuD jab barma mein tha, tab kya kabhi socha tha ki yahan aakar umr katni hogi?
lekin doctor, kuch bhi kah lo, apne desh ka sa sukh kahin aur nahin milta yahan tum chahe kitne warsh rah lo, apne ko hamesha ajnabi hi paoge
doctor ne cigar ke dhuen ko dhire dhire hawa mein chhoD diya—darasal ajnabi to main wahan bhi samjha jaunga, miss wuD itne warsho baad wahan mujhe kaun pahchanega? is umr mein nae sire mein rishte joDna kafi sirdard ka kaam hai— kam se kam mere bus ki baat nahin hai
lekin doctor, aap kab tak is pahaDi qasbe mein paDe rahenge—isi desh mein rahna hai to kisi baDe shahr mae practice shuru kijiye?
practice baDhane ke liye kahan kahan bhatakta phirunga, miss wuD jahan raho, wahin mariz mil jate hain yahan aaya tha kuch dinon ke liye—phir muddat ho gai aur tika raha jab kabhi ji ubega kahin chala jaunga jaDen kahin nahin jamti, to pichhe bhi nahin chhoot jata mujhe apne bare mein koi ghaltafahmi nahin hai miss wuD, main sukhi hoon
miss wuD ne doctor ki baat par wishesh dhyan nahin diya! dil mein wo hamesha doctor ko uchchhrinkhal, laparwah aur sanki samajhti rahi hai, kintu doctor ke charitr mein uska wishwas hai—n jane kyon, kyonki doctor ne jane anjane mein uska koi praman diya ho, ye use yaad nahin paDta
miss wuD ne ek thanDi sans bhari wo hamesha ye sochti thi ki yadi doctor itna aalsi aur laparwah na hota, to apni yogyata ke bal par kafi chamak sakta tha isiliye unhen doctor par krodh bhi aata tha aur duःkh bhi hota tha
miss wuD ne apne bag se un ka gola aur salaiyan nikali, phir uske niche se akhbar mein lipta hua chauDa coffe ka Dibba uthaya, jismen anDon ki sainDawichen aur haimbargar dabe hue the thormas se pyalon mein coffe unDelate miss wuD ne kaha, doctor, coffe thanDi ho rahi hai
doctor lete lete buDabuDaya miss wuD ne niche jhukkar dekha, wo kuhni par sir tikaye chupchap so raha tha upar ka honth zara sa phailkar muD gaya tha, mano kisi se mazaq karne se pahle muskura raha ho
uski unguliyon mein daba hua cigar niche jhuka hua latak raha tha
meri, meri, what Du yu want— dusre standard mein paDhne wali meri ne apni chanchal chapal ankhen upar uthai—laDakiyon ka dayara use ghere hue, kabhi pas aata tha, kabhi khinchta chala jata tha
i want i want bloo— donon hathon ko hawa mein ghumate hue, meri chillai dayara pani ki tarah toot gaya sab laDkiyan ek dusre par girti paDti kisi nili wastu ko chhune ke liye bhag dauD karne lagin
lunch samapt ho chuka tha laDkiyon ke chhote chhote dal miDoz mein bikhar gaye the unchi class ki kuch laDkiyan chay ka pani garm karne ke liye peDon par chaDh kar sukhi tahniyan toD rahi theen
dopahar ki us ghaDi mein miDoz alsaya unghana sa jaan paDta tha hawa ka koi bhula bhatka jhonka—chiD ke patte khaDakhDa uthte the kabhi koi pakshi apni susti mitane jhaDiyon se uDkar nale ke kinare baith jata tha, pani mein sir Dubota tha, phir ubkar hawa mein do chaar niruddeshy chakkar katkar dubara jhaDiyon mein dubak jata tha
kintu jangal ki khamoshi shayad kabhi chup nahin rahti gahri neend mein Dubi sapnon si kuch awazen nirawta ke halke jhine parde par salawten bichha jati hain—muk lahron si hawa mein tirti hain—mano koi dabe panw jhankakar adrshy sanket kar jata hai—dekho main yahan hoon—
latika ne juli ke baub hair ko sahlate hue kaha, tumhein kal raat bulaya tha
maiDam, main gai thi—ap apne kamre mein nahin theen latika ko yaad aaya ki kal raat wo doctor ke kamre ke taires par der tak baithi rahi thi—aur bhitar hyubart piano par shopan ka nauktarn baja raha tha
juli, tumse kuch puchhna tha use laga, wo juli ki ankhon se apne ko bacha rahi hai
juli ne apna chehra upar uthaya uski bhuri ankhon se kautuhal jhank raha tha
tum aufisars mes mein kisi ko janti ho?
juli ne anishchit bhaw se sir hilaya latika kuch der tak juli ko aplak ghurti rahi
juli, mujhe wishwas hai, tum jhooth nahin bologi kuch kshan pahle juli ke ankhon mein jo kautuhal tha, wo bhay mein parinat hone laga
latika ne apni jaikat ki jeb se ek nila lifafa nikalkar juli ki god mein phenk diya
ye kiski chitthi hai?
juli ne lifafa uthane ke liye hath baDhaya, kintu phir ek kshan ke liye uska hath kanpakar thithak gaya—lifafe par uska nam aur hostel ka pata likha hua tha
thenk yu maiDam, mere bhai ka patr hai, wo jhansi mein rahte hai! juli ne ghabrahat mein lifafe ko apni skirt ki tahon mein chhipa liya
juli, zara mujhe lifafa dikhlao latika ka swar tikha, karkash sa ho aaya
juli ne anamne bhaw se latika ko patr de diya
tumhare bhai jhansi mein rahte hai?
juli is bar kuch nahin boli uski udbhrant ukhDi si ankhen latika ko dekhti rahi
ye kya hai?
juli ka chehra safed, phak paD gaya lifafe par kumaun rejimental centre ki muhr uski or ghoor rahi thi
kaun hai yah— latika ne puchha usne pahle bhi hostel mein uDti hui afwah suni thi ki juli ko club mein kisi military afsar ke sang dekha gaya tha, kintu aisi afwahen aksar uDti rahti thi, aur usne us par wishwas nahin kiya tha
juli, tum abhi bahut chhoti ho—juli ke honth kanpe uski ankhon mein nirih yachana ka bhaw ghir aaya
achchha abhi jao—tumse chhuttiyon ke baad baten karungi
juli ne lalchai drishti se lifafe ki or dekha, kuch bolne ko udyat hui, phir bina kuch kahe chupchap wapas laut gai
latika der tak juli ko dekhti rahi, jab tak wo ankhon se ojhal nahin ho gai kya main kisi khusat buDhiya se kam hoon! apne abhaw ka badla kya main dusron se le rahi hoon?
shayad—kaun jane—shayad juli ka ye pratham parichai ho, us anubhuti se, jise koi bhi laDki baDe chaw se sanjokar, sanbhalakar apne mein chhipaye rahti hai ek anirwachniy sukh, jo piDa liye hai, piDa aur sukh ko Duboti hui umaDte jwar ki khumari jo donon ko apne mein samo leti hai—ek dard, jo anand se upja hai aur piDa deta hai—
yahin isi dewdar ke niche use bhi yahi laga tha, jab girish ne puchha tha, tum chup kyon ho? wo ankhen munde soch rahi thi—soch kahan rahi thi, ji rahi thi, us kshan ko jo bhay aur wismay ke beech bhincha tha—bahka sa pagal kshan! wo abhi pichhe muDegi to girish ki nerwous muskurahat dikhai de jayegi, us din se aaj dopahar tak ka atit ek duaswapn ki manind toot jayega wahin dewdar hai, jis par usne apne balon ke klip se girish ka nam likha tha peD ki chhaal utarti nahin thi, klip toot toot jata tha, tab girish ne apne nam ke niche uska nam likha tha jab kabhi koi akshar bigaDkar teDha meDha ho jata tha, tab wo hansti thi, aur girish ka kanpta hath aur bhi kanp jata tha—
latika ko laga ki jo wo yaad karti hai, wahi bhulna bhi chahti hai, lekin jab sachmuch bhulne lagti hai, tab use bhay lagta hai ki jaise koi uski kisi cheez ko uske hathon se chhine liye ja raha hai, aisa kuch jo sada ke liye kho jayega bachpan mein jab kabhi wo apne kisi khilaune ko kho deti thi, to wo gumsum si hokar socha karti thi, kahan rakh diya mainne jab bahut dauD dhoop karne par khilauna mil jata, to wo bahana karti ki abhi use khoj hi rahi hai ki wo abhi mila nahin hai jis sthan par khilauna rakha hota, jaan bujhkar use chhoDkar ghar ke dusre konon mein use khojne ka upakram karti tab khoi hui cheez yaad rahti, isliye bhulne ka bhay nahin rahta tha—
aj wo us bachpan ke khel ka bahana kyon nahin kar pati? bahana—shayad karti hai, use yaad karne ka bahana, jo bhulta ja raha hai din, mahine beet jate hain, aur wo uljhi rahti hai, anjane mein girish ka chehra dhundhla paDta jata hai, yaad wo karti hai, kintu jaise kisi purani taswir ke dhool bhare shishe ko saf kar rahi ho ab waisa dard nahin hota, sirf usko yaad karti hai, jo pahle kabhi hota tha—tab use apne par glani hoti hai wo phir jaan boojh kar us ghaw ko kuredti hai, jo bharta ja raha hai, khu ba khu, uski koshishon ke bawjud bharta ja raha hai
dewdar par khude hue adhamite nam latika ki or nistabdh nirih bhaw se nihar rahe the miDoz ke ghane sannate mein nale par se khelti hui laDkiyon ki awajen goonj jati thi
what Du yu want what Du yu want—?
titliyan, jhingur, jugnu—miDoz par utarti hui sanjh ki chhayaon mein pata nahin chalta, kaun awaz kiski hai? dopahar ke samay jin awazon ko alag alag karke pahchana ja sakta tha, ab we ekaswarta ki awiral dhara mein ghul gai thi ghas se apne pairon ko ponchhta hua koi reng raha hai jhaDiyon ke jhurmut se paron ko phaDaphData hua jhapatkar koi upar mein uD jata hai—kintu upar dekho to kahin kuch bhi nahin hai miDoz ke jharne ka gaDagData swar—jaise andheri surang mein jhapate se train guzar gai ho, aur der tak ummen sitiyon aur pahiyon ki chitkar gunjti rahi ho
picnic kuch der tak aur chalti, kintu badalon ki tahen ek dusre par chaDhti ja rahi thi picnic ka saman batora jane laga miDoz ke charon or bikhri hui laDkiyan miss wuD ke ird gird jama hone lagi apne sang we ajib o gharib chizen lai thi koi kisi pakshi ke tute pankh ko balon mein lagaye hue thi, kisi ne peD ki tahni ko chaku se chhilkar chhoti si bent bana li thi unchi class ki kuch laDkiyon ne apne apne rumalon mein nale se pakDi hui chhoti chhoti balisht bhar ki machhliyon ko daba rakha tha jinhen miss wuD se chhipakar we ek dusre ko dikha rahi theen
miss wuD laDkiyon ki toli ke sang aage nikal gain miDoz se pakki saDak tak teen chaar farlang ki chaDhai thi latika hanphane lagi doctor mukarji sabse pichhe aa rahe the latika ke pas pahunchakar wo thithak gaye doctor ne donon ghutnon ko zamin par tekte hue sir jhukakar elijabeth yugin angrezi mae kaha—maiDam, aap itni pareshan kyon nazar aa rahi hain—
aur doctor ki natkiya mudra ko dekhkar latika ke honthon par ek thaki si Dhili Dhili muskurahat bikhar gai
pyas ke mare gala sookh raha hai aur ye chaDhai hai ki khatm hone mein nahin aati
doctor ne apne kandhe par latakte hue thormas ko utarkar latika ke hathon mein dete hue kaha—thoDi si coffe bachi hai, shayad kuch madad kar sake
dopahar bhar sota raha—miss wuD ke sang mera matlab hai, miss wuD pas baithi theen
mujhe lagta hai, miss wuD mujhse mohabbat karti hain koi bhi mazaq karte samay doctor apni munchhon ke konon ko chabane lagta hai
kya kahti thee? latika ne thormas se coffe ko munh mein uDel liya
shayad kuch kahti, lekin bad qismti se beech mein hi mujhe neend aa gai meri zindagi ke kuch khubsurat prem prsang kambakht is neend ke karan adhure rah gaye hain
aur is dauran mein jab donon baten kar rahe the, unke pichhe miDoz aur motor roD ke sang chaDhti hui cheeD aur banj ke wrikshon ki qataren sanjh ke ghirte andhere mein Dubne lagi, mano pararthna karte hue unhonne chupchap apne sir niche jhuka liye hon inhin peDon ke upar badalon mein girje ka cross kahin uljha paDa tha uske niche pahaDon ki Dhalan par bichhe hue khet bhagti hui gilahriyon se lag rahe the, mano kisi ki toh mae stabdh thithak gai hon
doctor, mistar hyubart picnic par nahin aye?
doctor mukarji tarch jalakar latika ke aage aage chal rahe the
mainne unhen mana kar diya tha
kisaliye?
andhere mein pairon ke niche dabe hue patton ki charamrahat ke atirikt kuch sunai nahin deta tha doctor mukarji ne dhire se khansa
pichhle kuch dinon se mujhe sandeh hota ja raha hai ki hyubart ki chhati ka dard mamuli dard nahin hai doctor thoDa sa hansa, jaise use apni ye gambhirta aruchikar lag rahi ho
doctor ne pratiksha ki, shayad latika kuch kahegi kintu latika chupchap uske pichhe chal rahi thi
ye mera mahz shak hai, shayad main bilkul ghalat houn, kintu ye behtar hoga ki wo apne ek phephDe ka x re kara len—isse kam se kam koi bhram to nahin rahega
apne mistar hyubart se iske bare mein kuch kaha hai?
abhi tak kuch nahin kaha hyu bird zara si baat par chintit ho uthta hai, isliye kabhi sahas nahin ho pata
doctor ko laga, uske pichhe aate hue latika ke pairon ka swar sahsa band ho gaya hai unhonne pichhe muDkar dekha, latika beech saDak par andhere mein chhaya si chupchap nishchal khaDi hai
doctor latika ka swar bharraya hua tha
kya baat hai miss latika aap ruk kyon gai?
doctor kya mistar hyubart
doctor ne apni tarch ki maddhim raushani latika par di—usne dekha latika ka chehra ekdam pila paD gaya hai aur wo rah rahkar patte si kanp jati hai
miss latika, kya baat hai, aap to bahut Dari si jaan paDti hai?
kuch nahin doctor mujhe mujhe kuch yaad aa gaya tha
we donon phir chalne lage kuch door jane par unki ankhen upar uth gai pakshiyon ka ek beDa dhumil akash mein trikon banata hua pahaDon ke pichhe se unki or aa raha tha latika aur doctor sir uthakar in pakshiyon ko dekhte rahe latika ko yaad aaya, har sal sardi ki chhuttiyon se pahle ye parinde maidanon ki or uDte hain, kuch dinon ke liye beech ke is pahaDi station par basera karte hain, pratiksha karte hai barf ke dinon ki, jab we niche ajnabi, anjane deshon mein uD jayenge
kya we sab bhi pratiksha kar rahe hain? wo, doctor mukarji, mistar rabart—lekin kahan ke liye, hum kahan jayenge—
kintu uska koi uttar nahin mila—us andhere mein miDoz ke jharne ke bhutaile swar aur cheeD ke patton ki sarsarahat ke atirikt kuch sunai nahin deta tha
latika haDabDakar chauk gai apni chhaDi par jhuka doctor dhire dhire siti baja raha tha
miss latika, jaldi kijiye, barish shuru honewali hai
hostel pahunchte pahunchte bijli chamakne lagi thi kintu us raat barish der tak nahin hui badal barasne bhi nahin pate the ki hawa ke thapeDon se dhakel diye jate the dusre din taDke hi bus pakaDni thi, isliye dinner ke baad laDkiyan sone ke liye apne apne kamron mein chali gai thi
jab latika apne kamre mein gai, us samay kumaun rejimental centre ka bigul baj raha tha uske kamre mein karimuddin koi pahaDi dhun gungunata hua lainp mein gas pump kar raha tha latika unhin kapDon mein, takiye ko dohra karke let gai karimuddin ne uDti hui nigah se latika ko dekha, phir apne kaam mein gaya
picnic kaisi rahi mem sahab?
tum kyon nahin aaye, sab laDkiyan tumhein poochh rahi thee? latika ko laga, din bhar ki thakan dhire dhire uske sharir ki pasliyon par chipatti ja rahi hai anayas uski ankhen neend ke bojh se jhapakne lagi
main chala aata to hyubart sahab ki timaradari kaun karta? din bhar unke bistare se sata hua baitha raha aur ab wo ghayab ho gaye hain
karimuddin ne kandhe par latakte hue maile kuchaile tauliye ko utara aur lainp ke shishon ki gard ponchhne laga
latika ki adhmundi ankhen khul gain kya hyubart sahab apne kamre mein nahin hain?
khuda jane, is haalat mein kahan bhatak rahe hain! pani garm karne kuch der ke liye bahar gaya tha, wapas aane par dekhta hoon ki kamra khali paDa hai
karimuddin baDbaData hua bahar chala gaya latika ne lete lete palang ke niche chappalon ko pairon se utar diya
hyubart itni raat kahan gaye? kintu latika ki ankhen phir jhapak gai din bhar ki thakan ne sab pareshaniyon, prashnon par kunji laga di thi, mano din bhar ankhmichauni khelte hue usne apne kamre mein dayya ko chhu liya tha ab wo surakshait thi, kamre ki chaharadiwari ke bhitar use koi nahin pakaD sakta din ke ujale mein wo gawah thi, mujrim thi, har cheez ka usmen taqaza tha, ab is akelepan mein koi gila nahin, ulahna nahin, sab khinchatani khatm ho gai hai, jo apna hai, wo bilkul apna sa ho gaya hai, uska duःkh nahin, apnane ki phursat nahin
latika ne diwar ki or munh ghuma liya lainp ke phike aalok mein hawa mein kanpte pardon ki chhayayen hil rahi theen bijli kaDakne se khiDkiyon ke shishe chamak chamak jate the, darwaze chatakhne lagte the, jaise koi bahar se dhime dhime khat khata raha ho corridor se apne apne kamron mein jati hui laDkiyon ki hansi, baton ke kuch shabd—phir sab kuch shant ho gaya, kintu phir bhi der tak kachchi neend mein wo lainp ka dhima sa si si swar sunti rahi kab wo swar bhi maun ka bhag bankar mook ho gaya, use pata na chala
kuch der baad usko laga, siDhiyon se kuch dabi awazen upar aa rahi hai, beech beech mein koi chilla uthta hai, aur phir sahsa awaz dhimi paD jati hai
miss latika, zara apna lainp le aiye corridor ke zine se doctor mukarji ki awaz i thi
corridor mein andhera tha wo teen chaar siDhiyan niche uttari, lainp niche kiya siDhiyon se sate jangle par hyubart ne apna sir rakh diya tha uski ek banh jangle ke niche latak rahi thi aur dusri doctor ke kandhe par jhool rahi thi, jise doctor ne apne hathon mein jakaD rakha tha
miss latika, lainp zara aur niche jhuka dijiye hyu barta hyubart doctor ne hyubart ko sahara dekar upar khincha hyubart ne apna chehra upar kiya hwiski ki tez bu ka jhonka latika ke sare sharir ko jhinjhoD gaya hyubart ki ankhon mein surkh Dore khinch aaye the, qamiz ka collar ulta ho gaya tha aur tie ki ganth Dhili hokar niche khisak i thi latika ne kanpte hathon se lainp siDhiyon par rakh diya aur aap diwar ke sahare khaDi ho gai uska sir chakrane laga tha
in e baik len off d city, deyar iz e girl, hu labz mi hyubart hichkiyon ke beech gunguna uthta tha
hyubart, pleez pleez, doctor ne hyubart ke laDkhaDate sharir ko apni mazbut giraft mein le liya
miss latika, aap lainp lekar aage chaliye latika ne lainp uthaya diwar par un tinon ki chhayayen Dagmagane lagi
in e baik len off d city dewar iz e girl hu labz mi hyubart doctor mukarji ke kandhe par sir tikaye andheri siDhiyon par ulte sidhe pair rakhta chaDh raha tha
doctor! hum kahan hain? hyubart sahsa itne zor se chillaya ki uski laDkhaDati awaz sunsan andhere mein corridor ki chhat se takrakar der tak hawa mein gunjti rahi
hyubart doctor ko ekdam hyubart par ghussa aa gaya, phir apne ghusse par hi use kheejh si ho i aur wo hyubart ki peeth thapthapane laga
kuch baat nahin hai hyubart Dear, tum sirf thak gaye ho rabart ne apni ankhen doctor par gaDa di, unmen ek bhaybhit bachche ki si katarta jhalak rahi thi, mano doctor ke chehre se wo kisi parashn ka uttar pa lena chahta ho
hyubart ke kamre mein pahunchakar doctor ne use bistare par lita diya hyubart ne bina kisi wirodh ke chupchap jute moze utarwa diye jab doctor hyubart ki tie utarne laga, to hyubart apni kuhni ke sahare utha, kuch der tak doctor ko ankhen phaDte hue ghurta raha, phir dhire se uska hath pakaD liya
doctor, kya main mar jaunga?
kaisi baat karte ho hyubart! doctor ne hath chhuDakar dhire se hyubart ka sir takiye par tika diya
good knight hyubart !
good knight doctor, hyubart ne karwat badal li
good knight mistar hyubart latika ka swar sihar gaya
kintu hyubart ne koi uttar nahin diya karwat badalte hi use neend aa gai thi
corridor mein wapas aakar doctor mukarji railing ke samne khaDe ho gaye hawa ke tez jhonkon se akash mein phaile badalon ki parten jab kabhi ikahri ho jati, tab unke pichhe se chandni bujhti hui aag ke dhuen si asapas ki pahaDiyon par phail jati thi
apko mistar hyubart kahan mile? latika corridor ke dusre kone mein railing par jhuki hui thi
club ki bar mein unhen dekha tha, main na pahunchta to na jane kab tak baithe rahte, doctor mukarji ne cigarette jalai unhen abhi ek do marizon ke ghar jana tha kuch der tak unhen tal dene ke irade se wo corridor mein khaDe rahe
niche apne quarter mein baitha hua karimuddin mouth argon par koi purani filmi dhun baja raha tha
aj din bhar badal chhaye rahe, lekin khulkar barish nahin hui
christmas tak shayad mausam aisa hi rahega kuch der tak donon chupchap khaDe rahe conwent school ke bahar phaile lawn se jhinguron ka anawrat swar charon or phaili nistabdhata ko aur bhi adhik ghana bana raha tha kabhi kabhi upar motor roD par kisi kutte ki ririyahat sunai paD jati thi
doctor kal raat aapne mistar hyubart se kuch kaha tha—mere bare mein?
wahi jo sab log jante hai aur hyubart, jise janna chahiye tha, lekin nahin janta tha
doctor ne latika ki or dekha, wo jaDwat awichlit railing par jhuki hui thi
waise hum sabki apni apni zid hoti hai, koi chhoD deta hai, koi akhir tak usse chipka rahta hai doctor mukarji andhere mein muskuraye unki muskurahat mein sukha sa wirakti ka bhaw bhara tha
kabhi kabhi main sochta hoon miss latika, kisi cheez ko na janna yadi ghalat hai, to janbujhkar na bhool pana, hamesha jonk ki tarah usse chipte rahna—yah bhi ghalat hai barma se aate hue jab meri patni ki mirtyu hui thi, mujhe apni zindagi bekar si lagi thi aaj is baat ko arsa guzar gaya aur jaisa aap dekhti hain, main ji raha hoon; ummid hai ki kafi arsa aur jiunga zindagi kafi dilchasp lagti hai; aur yadi umr ki mazburi na hoti to shayad main dusri shadi karne mein bhi na hichakta iske bawjud kaun kah sakta hai ki main apni patni se prem nahin karta tha—aj bhi karta hoon
lekin doctor latika ka gala rundh aaya tha
kya miss latika
doctor, sab kuch hone ke bawjud wo kya cheez hai jo hamein chalaye chalti hai, hum rukte hain to bhi apne rele mein wo hamein ghasit le jati hai latika ko laga ki wo jo kahna chah rahi hai kah nahin pa rahi, jaise andhere mein kuch kho gaya hai, jo mil nahin pa raha, shayad kabhi nahin mil payega
ye to aapko father elmanD hi bata sakenge miss latika, doctor ki khokhli hansi mein unka purana sankipan ubhar aaya tha
achchha, chalta hoon, miss latika, mujhe kafi der ho gai hai, doctor ne diyasalai jalakar ghaDi ko dekha
good knight miss latika!
good knight doctor !
doctor ke jane par latika kuch der tak andhere mein railing se sati khaDi rahi hawa chalne se corridor mein jama hua kuhra sihar uthta tha sham ko saman bandhte hue laDkiyon ne apne apne kamre ke samne jo purani copiyon, akhbar aur raddi ke Dher laga diye the we sab, ab andhere corridor mein hawa ke jhonkon se idhar udhar bikharne lage the
latika ne lainp uthaya aur apne kamre ki or jane lagi corridor mein chalte hue usne dekha, juli ke kamre se parkash ki ek patli rekha darwaze ke bahar khinch i hai latika ko kuch yaad aaya wo kuch kshnon tak sans roke juli ke kamre ke bahar khaDi rahi kuch der baad usne darwaza khatkhataya bhitar se koi awaz nahin i latika ne dabe hathon se halka sa dhakka diya darwaza khul gaya juli lainp bujhana bhool gai thi latika dhire dhire dabe panw juli ke palang ke pas chali i juli ka sota hua chehra lainp ke phike aalok mein pila sa dikh raha tha latika ne apni jeb se wahi nila lifafa nikala aur use dhire se juli ke takiye ke niche dabakar rakh diya
andhiyare galiyare mein chalte hue latika thithak gai diwar ka sahara lekar usne lainp ki batti baDha di siDhiyon par uski chhaya ek beDaul phati phati akriti khinchne lagi sat number kamre se laDkiyon ki batachit aur hansi thahakon ka swar abhi tak aa raha tha latika ne darwaza khatkhataya shor achanak band ho gaya
kaun hai?
latika chupchap khaDi rahi kamre mein kuch der tak ghusur pusur hoti rahi, phir darwaze ki chatakhni ke khulne ka swar aaya latika kamre ki dehri se kuch aage baDhi, lainp ki jhapakti lau mein laDkiyon ke chehre cinema ke parde par thahre hue kloz ap ki bhanti ubharne lage
kamre mein andhera kyon kar rakha hai? latika ke swar mein halki si jhiDak ka abhas tha
lamp mein tel hi khatm ho gaya, maiDam!
ye sudha ka kamra tha, isliye use hi uttar dena paDa hostel mein shayad wo sabse adhik lokapriy thi kyonki sada chhutti ke samay ya raat ke dinner ke baad aas pas ke kamron mein rahne wali laDkiyon ka jamghat usi ke kamre mein lag jata tha der tak gapshap, hansi mazaq chalta rahta
tel ke liye karimuddin se kyon nahin kaha?
kitni bar kaha maiDam, lekin use yaad rahe tab to!
kamre mein hansi ki phuhar ek kone mein dusre kone tak phail gai latika ke kamre mein aane se anushasan ki jo ghutan ghir i thi, wo achanak bah gai karimuddin hostel ka naukar tha uske aalas aur kaam mein talamtol karne ke qisse hostel ki laDkiyon mein piDhi dar piDhi chale aate the
latika ko hathat kuch smarn ho aaya andhere mein lainp ghumate hue charon or nigahen dauDai kamre mein charon or ghera banakar we baithi thi—pas pas ek dusre se satkar sabke chehre parichit the, kintu lainp ke pile maddhim parkash mein mano kuch badal gaya tha, ya jaise wo unhen pahli bar dekh rahi thi
juli, ab tak tum is blauk mein kya kar rahi ho?
juli khiDki ke pas palang ke sirhane baithi thi usne chupchap ankhen nichi kar li lainp ka parkash charon or se simatkar ab kewal uske chehre par gir raha tha
knight register par dastakhat kar diye?
han, maiDam
phir ? latika ka swar kaDa ho aaya juli sakuchakar khiDki se bahar dekhne lagi
jab se latika is school mein i hai, usne anubhaw kiya hai ki hostel ke is niyam ka palan Dant phatkar ke bawjud nahin hota
maiDam, kal se chhuttiyan shuru ho jayengi, isliye aaj raat hum sabne milkar aur sudha puri baat na kahkar hemanti ki or dekhte hue muskurane lagi
hemanti ke gane ka program hai; aap bhi kuch der baithiye n!
latika ko uljhan malum hui is samay yahan aakar usne unke maze ko kirkira kar diya is chhote se hil station par rahte use khasa arsa ho gaya, lekin kab samay patjhaD aur garmiyon ka ghera par kar sardi ki chhuttiyon ki god mein simat jata hai, use kabhi yaad nahin rahta
choron ki tarah chupchap wo dehri se bahar ho gai uske chehre ka tanaw Dhila paD gaya wo muskurane lagi
mere sang sno faul dekhne koi nahin thahrega?
maiDam, chhuttiyon mein kya aap ghar nahin ja rahi hai? sab laDkiyon ki ankhen us par jam gain
abhi kuch pakka nahin hai—i lawa d sno faul!
latika ko laga ki yahi baat usne pichhle sal bhi kahi thi aur shayad pichhle se pichhle sal bhi use laga, mano laDkiyan use sandeh ki drishti se dekh rahi hain, mano unhonne uski baat par wishwas nahin kiya uska sir chakrane laga mano badalon ka syah jhurmut kisi anjane kone se uthkar use apne mein samo lega wo thoDa sa hansi, phir dhire se usne apne sir ko jhatak diya
juli, tumse kuch kaam hai, apne blauk mein jane se pahle mujhse mil lena—wel, good knight! latika ne apne pichhe darwaza band kar diya
good knight maiDam, good knight, good knight !
galiyare ki siDhiyan na utarkar latika railing ke sahare khaDi ho gai lainp ki batti ko niche ghumakar kone mein rakh diya bahar dhundh ki nili tahen bahut ghani ho chali theen lawn par lage hue cheeD ke patton ki sarsarahat hawa ke jhonkon ke sang kabhi tez, kabhi dhimi hokar bhitar bah aati thi hawa mein sardi ka abhas pakar latika ke dimagh mein kal se shuru hone wali chhuttiyon ka dhyan bhatak aaya usne ankhen moond li use laga ki jaise uski tangen bans ki lakDiyon ki tarah uske sharir se bandhi hain jinki ganthen dhire dhire khulti ja rahi hain sir ki chakrahat abhi miti nahin thi, magar ab jaise wo bhitar na hokar bahar phaili hui dhundh ka hissa ban gai thi
siDhiyon par batachit ka swar sunkar latika jaise sote se jagi shaul ko kandhon par sameta aur lainp utha liya doctor mukarji mistar hyubart ke sang ek angrezi dhun gungunate hue upar aa rahe the siDhiyon par andhera tha aur hyubart ko bar bar apni chhaDi se rasta tatolna paDta tha latika ne do chaar siDhiyan utarkar lainp ko niche jhuka diya good iwning doctor, good iwning mistar hyubart! thaink yu miss latika—hyubart ke swar mein kritaj~nata ka bhaw tha siDhiyan chaDhne se unki sans tez ho rahi thi aur wo diwar se lage hue hanph rahe the lainp ki raushani mein unke chehre ka pilapan kuch tanbe ke rang jaisa ho gaya tha
yahan akeli kya kar rahi ho miss latika? doctor ne honthon ke bhitar se siti bajai
cheking karke laut rahi thi aaj is waqt upar kaise aana hua mistar hyubart?
hyubart ne muskurakar apni chhaDi doctor ke kandhon se chhua di—inse puchho, yahi mujhe zabardasti ghasit laye hain
miss latika, hum aapko nimantran dene aa rahe the aaj raat mere kamre mein ek chhota sa kansart hoga, jismen mi hyubart shopan aur chaikowski ke kampojishan bajayenge aur phir kreem coffe pi jayegi aur uske baad agar samay raha, to pichhle sal hamne jo gunah kiye hain unhen hum milkar kanphes karenge doctor mukarji ke chehre par ubhri muskan khel gai
doctor, mujhe maf karen, meri tabiat kuch theek nahin hai
chaliye, ye theek raha phir to aap waise bhi mere pas aati doctor ne dhire se latika ke kandhon ko pakaDkar apne kamre ki taraf moD diya
doctor mukarji ka kamra blauk ke dusre sire par chhat se juDa hua tha wo aadhe barmi the, jiske chihn unki thoDi dabi hui nak aur chhoti chhoti chanchal ankhon se aspasht the barma par japaniyon ka akramn hone ke baad wo is chhote se pahaDi shahr mein aa base the praiwet practice ke alawa wo conwent school mein haijin fiziyalauji bhi paDhaya karte the aur isliye unko school ke hostel mein hi ek kamra rahne ke liye de diya gaya tha kuch logon ka kahna tha ki barma se aate hue raste mein unki patni ki mirtyu ho gai, lekin is sambandh mein nishchit roop se kuch nahin kaha ja sakta kyonki doctor swayan kabhi apni patni ki charcha nahin karte
baton ke dauran doctor aksar kaha karte hain—marne se pahle main ek bar barma zarur jaunga—aur tab ek kshan ke liye unki ankhon mein ek nami si aa jati latika chahne par bhi unse kuch poochh nahin pati use lagta ki doctor nahin chahte ki koi atit ke sambandh mein unse kuch bhi puchhe ya sahanubhuti dikhlaye dusre hi kshan apni gambhirta ko door thelte hue wo hans paDte—ek sukhi, bujhi hui hansi
hom siknes hi ek aisi bimari hai jiska ilaj kisi doctor ke pas nahin hai
chhat par mez kursiyan Dal di gai aur bhitar kamre se parkoletar mein coffe ka pani chaDha diya gaya
suna hai agle do teen warshon mein yahan par bijli ka intizam ho jayega— doctor ne sprit lamp jalate hue kaha
ye baat to pichhle salon se sunne mein aa rahi hai angrezon ne bhi koi lambi chauDi scheme banai thi pata nahin uska kya hua—hyubart ne kaha wo aram kursi par leta hua bahar lawn ki or dekh raha tha
latika kamre se do mombattiyan le i mez ke donon siron par tikakar unhen jala diya gaya chhat ka andhera mombatti ki phiki raushani ke ird gird simatne laga ek ghani nirawta charon or ghirne lagi hawa mein cheeD ke wrikshon ki sanya sanya door door tak phaili pahaDiyon aur ghatiyon mein sitiyon ki goonj si chhoDti ja rahi thi
is bar shayad barf jaldi giregi, abhi se hawa mein ek sard khushki si mahsus hone lagi hai—doctor ka cigar andhere mein lal bindi sa chamak raha tha
pata nahin, miss wuD ko special serwice ka gorakhdhandha kyon pasand aata hai chhuttiyon mein ghar jane se pahle kya ye zaruri hai ki laDkiyan father elmanD ka sarman sunen? hyubart ne kaha
pichhle panch sal se main sunta aa raha hun—father elmanD ke sarman mein kahi her pher nahin hota
doctor ko father elmanD ek ankh nahin suhate the
latika kursi par aage jhukkar pyalon mein coffe unDelne lagi har sal school band hone ke din yahi do program hote hain—chaipal mein special serwice aur uske baad din mein picnic latika ko pahla sal yaad aaya jab doctor ke sang picnic ke baad wo club gai thi doctor bar mein baithe the ball room kumaun rejiment afsaron se bhara hua tha kuch der tak biliyarD ka khel dekhne ke baad jab wo wapas bar ki or aa rahe the, tab unhonne dai or club ki library mein dekha—magar usi samay doctor mukarji pichhe se aa gaye the miss latika, ye mi girish negi hain? biliyarD room se aate hue hansi thahakon ke beech wo kuch thahar gaya tha wo kisi kitab ke beech mein ungli rakhkar library ki khiDki se bahar dekh raha tha halo doctor wo pichhe muDa tab us kshan
us kshan na jane kyon latika ka hath kanp gaya aur coffe ki garm bunden uski saDi par chhalak i andhere mein kisi ne nahin dekha ki latika ke chehre par ek unida ritapan ghir aaya hai
hawa ke jhonke se mombattiyon ki lau phaDakne lagi chhat se bhi unchi kath godam jane wali saDak par yu pi roDwez ki akhiri bus Dak lekar ja rahi thi bus ki haiD laits mein aas pas phaili hui jhaDiyon ki chhayayen ghar ki diwar par sarakti hui ghayab hone lagi
miss latika, aap is sal bhi chhuttiyon mein yahin rahengi? doctor ne puchha
doctor ka sawal hawa mein tanga raha usi kshan piano par shopan ka nauktarn hyubart ki ungliyon ke niche se phisalta hua dhire dhire chhat ke andhere mein ghulne laga—mano jal par komal swapnil urmiyan bhanwaron ka jhilmilata jal bunti hui door door kinaron tak phailti ja rahi ho latika ko laga ki jaise kahin bahut door barf ki chotiyon se parindon ke jhunD niche anjan deshon ki or uDe ja rahe hain in dinon aksar usne apne kamre ki khiDki se unhen dekha hai—dhage mein bandhe chamkile lattuon ki tarah we ek lambi teDhi meDhi qatar mein uDe jate hain, pahaDon ki sunsan nirawta se pare, un wichitr shahron ki or jahan shayad wo kabhi nahin jayegi
latika aarm chair par unghne lagi doctor mukarji ka cigar andhere mein chupchap jal raha tha doctor ko ashchary hua ki latika na jane kya soch rahi hai aur latika soch rahi thi—kya wo buDhi hoti ja rahi hai? uske samne school ki prinsipal miss wuD ka chehra ghoom gaya—popala munh, ankhon ke niche jhulti hui mans ki thailiyan, zara zara si baat par chiDh jana, karkash awaz mein chikhna—sab use olDmeD kahkar pukarte hain kuch warshon baad wo bhi hu ba hu waisi hi ban jayegi latika ke samuche sharir mein jhurjhuri si dauD gai, mano anjane mein usne kisi galiz wastu ko chhu liya ho use yaad aaya, kuch mahine pahle achanak use hyubart ka prempatr mila tha—bhawuk, yachana se bhara hua patr, jismen usne na jane kya kuch likha tha, jo kabhi uski samajh mein nahin aaya use hyubart ki is bachkana harkat par hansi i thi, kintu bhitar hi bhitar prasannata bhi hui thi uski umr abhi biti nahin hai, ab bhi wo dusron ko apni or akarshait kar sakti hai hyubart ka patr paDhkar use krodh nahin aaya, i thi kewal mamta wo chahti to uski ghaltafahmi ko door karne mein der na lagti, kintu koi shakti use roke rahti hai, uske karan apne par wishwas rahta hai, apne sukh ka bhram mano hyubart ki ghaltafahmi se juDa hai
hyubart hi kyon, wo kya kisi ko bhi chah sakegi, us anubhuti ke sang, jo ab nahin rahi, jo chhaya si us par manDrati rahti hai, na swayan mitti hai, na use mukti de pati hai use laga, jaise badalon ka jhurmut phir uske mastishk par dhire dhire chhane laga hai, uski tange phir nirjiw, shithil si ho gai hain
wo jhatke se uth khaDi hui, ‘doctor, maf karna, mujhe bahut thakan si lag rahi hai bina waky pura kiye hi wo chali gai
kuch der tak taires par nistabdhata chhai rahi mombattiyan bujhne lagi thi doctor mukarji ne cigar ka naya kash liya—sab laDkiyan ek jaisi hoti hain—bewaquf aur sentimental!
hyubart ki ungliyon ka dabaw piano par Dhila paDta gaya—antim dhunon ki jhijhki si goonj kuch kshnon tak hawa mein tirti rahi
doctor, aapko malum hai miss latika ka wywahar pichhle kuch arse se ajib sa lagta hai —hyubart ke swar mein laparwahi ka bhaw tha wo nahin chahta tha ki doctor ko latika ke prati uski bhaunaun ka abhas matr bhi mil sake jis komal anubhuti ko wo itne samay se sanjota aaya hai, hyubart use hansi ke ek hi thahake mein uphasaspad bana dega
kya tum niyti mein wishwas karte ho, hyubart? doctor ne kaha hyubart dam roke pratiksha karta raha wo janta tha ki koi bhi baat kahne se pahle doctor ko filausophaiz karne ki aadat thi doctor taires ke jangle se satkar khaDa ho gaya phiki si chandni mein cheeD ke peDon ki chhayayen lawn par gir rahi thi kabhi kabhi koi jugnu andhere mein hara parkash chhiDakta hawa mein ghayab ho jata tha
main kabhi kabhi sochta hoon, insan zinda kisaliye rahta hai—kya use koi aur behtar kaam karne ko nahin milta? hazaron meel apne mulk se door main yahan paDa hun—yahan kaun mujhe janta hai yahin shayad mar bhi jaunga hyubart, kya tumne kabhi mahsus kiya hai ki ek ajnabi ki haisiyat se parai zamin par jana kafi khaufana baat hai ?
hyubart wismit sa doctor ki or dekhne laga usne pahli bar doctor mukarji ke is pahlu ko dekha tha apne sambandh mein wo aksar chup rahte the
koi pichhe nahin hai, ye baat mujh mein ek ajib qim ki befiri paida kar deti hai lekin kuch logon ki maut ant tak paheli bani rahti hai shayad we zindagi mein bahut ummid lagate the use traijik bhi nahin kaha ja sakta, kyonki akhiri dam tak unhen marne ka ehsas nahin hota
doctor, aap kiska zikr kar rahe hain? hyubart ne pareshan hokar puchha
doctor kuch der tak chupchap cigar pita raha phir muDkar wo mombattiyon ki bujhti hui lau ko dekhne laga
tumhen malum hai, kisi samay latika bila nagha club jaya karti thi girish negi se uska parichai wahin hua tha kashmir jane se ek raat pahle usne mujhe sab kuch bata diya tha main ab tak latika se us mulaqat ke bare mein kuch nahin kah saka hoon kintu us roz kaun janta tha ki wo wapas nahin lautega aur ab ab kya farq paDta hai let d dead Dai
doctor ki sukhi sard hansi mein khokhli si shunyata bhari thi
kaun girish negi?
kumaun rejiment captain tha
doctor tatha latika hyubart se aage kuch nahin kaha gaya use yaad aaya wo patr, jo usne latika ko bheja tha kitna arthahin aur uphasaspad, jaise uska ek ek shabd uske dil ko kachot raha ho! usne dhire se piano par sir tika liya latika ne use kyon nahin bataya, kya wo iske yogya bhi nahin tha?
latika wo to bachchi hai, pagal! marne wale ke sang khu thoDe hi mara jata hai
kuch der chup rahkar doctor ne apne parashn ko phir duhraya
lekin hyubart, kya tum niyti par wishwas karte ho?
hawa ke halke jhonke se mombattiyan ek bar prajjwlit hokar bujh gain taires par hyubart aur doctor andhere mein ek dusre ka chehra nahin dekh pa rahe the, phir bhi we ek dusre ki or dekh rahe the conwent school se kuch door maidan mein bahte pahaDi nale ka swar aa raha tha jab bahut der baad kumaun rejiment centre ka bigul sunai diya, to hyubart haDbaDa kar khaDa ho gaya
achchha chalta hoon, doctor, guDnait!
guDnait hyubart mujhe maf karna, main cigar khatm karke uthunga
subah badli chhayi thi latika ke khiDki kholte hi dhundh ka ghubbara sa bhitar ghus aaya, jaise raat bhar diwar ke sahare sardi mein thithurta hua wo bhitar aane ki pratiksha kar raha ho school mein upar chaipal jane wali saDak badalon mein chhip gai thi, kewal chaipal ka kras dhundh ke parde par ek dusre ko katti hui pencil ki rekhaon sa dikhai de jata tha
latika ne khiDki se ankhen hatai, to dekha ki karimuddin chay ki tray liye khaDa hai karimuddin military mein ardali rah chuka tha, isliye tray mez par rakhkar atenshan ki mudra mein khaDa ho gaya
latika jhatke se uth baithi subah se aalas karke kitni bar jagkar wo so chuki hai apni khisiyahat mitane ke liye latika ne kaha, baDi sardi hai aaj, bistar chhoDne ko ji nahin chahta
aji mem sahab, abhi kya sardi i hai—baDe dinon mein dekhana, kaise dant katkatate hain—aur karimuddin apne hathon ko baghlon mein Dale hue is tarah sikuD gaya jaise un dinon ki kalpana matr se use jaDa lagna shuru ho gaya ho ganje sir par donon taraf ke uske baal khizab lagane se katthai rang ke bhure ho gaye the baat chahe kisi wishay par ho rahi ho, wo hamesha khinchtan kar use aise kshaetr mein ghasit lata tha, jahan wo bejhijhak apne wicharon ko prakat kar sake
ek bar to yahan lagatar itni barf giri ki bhuwali se lekar Dak bangale tak sari saDken jam ho gai itni barf thi mem sahab, ki peDon ki tahniyan tak sikuDkar tanon se lipat gai thi—bilkul aise, aur karimuddin niche jhuk kar murgi sa ban gaya
kab ki baat hai? latika ne puchha
ab ye to joD hisab karke hi pata chalega, mem sahab lekin itna yaad hai ki us waqt angrez bahadur yahin the kentonment ki imarat par qaumi jhanDa nahin laga tha baDe jabar the ye angrez, do ghanton mein hi sari saDken saf karwa di un dinon ek siti bajate hi pachas ghoDe wale jama ho jate the ab to sare shaiD khali paDe hain we log apni khidmat bhi karwana jante the, ab ujaD ho gaya hai, karimuddin udas bhaw se bahar dekhne laga
aj ye pahli bar nahin hai jab latika karimuddin se un dinon ki baten sun rahi hai jab angrez bahadur ne is sthan ko swarg bana rakha tha
ap chhuttiyon mein is sal bhi yahin rahengi, memasahab?
dikhta to kuch aisa hi hai karimuddin—tumhen phir tang hona paDega
kya kahti hain memasahab! aapke rahne se hamara bhi man lag jata hai, warna chhuttiyon mein to yahan kutte lotte hain
tum zara mistri se kah dena ki is kamre ki chhat ki marammat kar jaye pichhle sal barf ya pani dararon se tapakta rahta tha latika ko yaad aaya ki pichhli sardiyon mein jab kabhi barf girti thi, to use pani se bachne ke liye raat bhar kamre ke kone mein simatkar sona paDta tha
karimuddin chay ki tray uthata hua bola, bart sahab to kal hi chale jayenge—kal raat unki tabiat phir kharab ho gai aadhi raat ke waqt mujhe jagane aaye the kahte the, chhati mein taklif hai unhen ye mausam nahin ras aata kah rahe the, laDkiyon ki bus mein wo bhi kal hi chale jayenge
karimuddin darwaza band karke chala gaya latika ki ichha hui ki wo hyubart ke kamre mae jakar unki tabiat ki puchhatachh kar aaye kintu phir na jane kyon sleeper pairon mein tange rahe aur wo khiDki ke bahar badalon ko umaDta hua dekhti rahi hyubart ka chehra jab use dekhkar sahma sa dayniy ho jata hai, tab lagta hai ki wo apni mook nirih yachana mein use kos raha hai—n wo uski ghaltafahmi ko door karne ka prayatn kar pati hai, na use apni wiwashta ki safai dene ka sahas hota hai use lagta hai ki is jale se bahar nikalne ke liye wo dhage ke jis sire ko pakaDti hai, wo khu ek ganth bankar rah jata hai
bahar bundabandi hone lagi thi—kamre ki tin ki chhat khat khat bolne lagi latika palang se uth khaDi hui bistar ko tah kar bichhaya phir pairon mein slipron ko ghasitte hue wo baDe aine tak i aur uske samne stool par baith kar balon ko kholne lagi kintu kuch der tak kanghi balon mein hi uljhi rahi aur wo gumsum ho shishe mein apna chehra takti rahi karimuddin ko ye kahna yaad hi nahin raha ki dhire dhire aag jalane ki lakDiyan jama kar len in dinon saste damon par sukhi lakDiyan mil jati hain pichhle sal to kamra dhuen se bhar jata tha jiske karan kanpknpate jaDe mein bhi use khiDki kholkar hi sona paDta tha
aine mein latika ne apna chehra dekha—wah muskura rahi thi pichhle sal apne kamre ki silan aur thanD se bachne ke liye kabhi kabhi wo miss wuD ke khali kamre mein chori chupke sone chali jaya karti thi miss wuD ka kamra bina aag ke bhi garm raha karta tha, unke gadole sofe par lette hi ankh lag jati thi kamra chhuttiyon mein khali paDa rahta hai, kintu miss wuD se itna nahin hota ki do mahinon ke liye uske hawale kar jayen har sal kamre mein tala thonk jati hain wo to pichhle sal ghusalkhane mein bhitar ki sankal dena bhool gai thi, jise latika chor darwaze ke roop mein istemal karti rahi thi
pahle sal akele mein use baDa Dar sa laga tha chhuttiyo mein sare school aur hostel ke kamre sanya sanya karne lagte hain Dar ke mare use jab kabhi neend nahin aati thi, tab wo karimuddin ko raat mein der tak baton mein uljhaye rakhti baton mein jab wo khoi si so jati, tab karimuddin lainp bujhakar chala jata kabhi kabhi bimari ka bahana karke wo doctor ko bulwa bhejti thi aur baad mein bahut zid karke dusre kamre mein unka bistar lagwa deti
latika ne kandhe se balon ka guchchha nikala aur use bahar phenkne ke liye wo khiDki ke pas aa khaDi hui bahar chhat ki Dhalan se barish ke jal ki moti si dhaar barabar lawn par gir rahi thi meghachchhann akash mae sarakte hue badalon ke pichhe pahaDiyon ke jhunD kabhi ubhar aate the, kabhi chhip jate the, mano chalti train se koi unhen dekh raha ho latika ne khiDki se sir bahar nikal liya—hawa ke jhonke se uski ankhen jhap gai use jitne kaam yaad aate hain, utna hi aalas ghana hota jata hai! bus ki seaten reserw karwane ke liye chaprasi ko rupae dene hain jo saman hostel ki laDkiyan pichhe chhoDe ja rahi hai, unhen godam mein rakhwana hoga kabhi kabhi to chhoti class ki laDkiyon ke sath packing karwane ke kaam mein bhi use hath bantana paDta tha
wo in kamon se ubti nahin dhire dhire sab nibatte jate hai koi ghalati idhar udhar rah jati hai, jo baad mein sudhar jati hai—har kaam mein kichkich rahti hai, pareshani aur diqqat hoti hai—kintu der saber isse chhutkara mil hi jata hai kintu jab laDkiyon ki akhiri bus chali jati hai, tab man uchat sa ho jata hai—khali corridor mein ghumti hui wo kabhi is kamre mein jati hai aur kabhi usmen wo nahin jaan pati ki apne se kya kare—dil kahin bhi nahin tik pata, hamesha bhatka bhatka sa rahta hai
is sabke bawjud sab koi sahj bhaw se poochh baithta hai, miss latika, chhuttiyon mein aap ghar nahin ja rahi? tab wo kya kahe?
Ding Dang Ding special serwice ke liye school chaipal ke ghante bajne lage the latika ne apna sir khiDki ke bhitar kar liya usne jhatpat saDi utari aur petikot mein hi kandhe par tauliya Dal ghusalkhane mein ghus gai
left rait left left
kentonment jane wali pakki saDak par chaar chaar ki pankti mein kumaun rejiment ke sipahiyon ko ek tukDi march kar rahi thi fauji buton ki bhari aur khuradri awazen school chaipal ki diwaron se takrakar bhitar preyar hall mein goonj rahi thi
blseD aar d meek father elmanD ek ek shabd chabate hue khankharate swar mein sarman off d maunt paDh rahe the isa masih ki murti ke niche kainDal briyam ke donon or mombattiyan jal rahi thi, jinka parkash aage baithi hui laDkiyon par paD raha tha pichhli lainon ki benche andhere mein Dubi hui thi, jahan laDkiyan pararthna ki mudra mein baithi hui sir jhukaye ek dusre se ghusar pusar kar rahi thi miss wuD school season ke saphaltapurwak samapt ho jane par widyathiyon aur staff sadasyon ko badhai ka bhashan de chuki thi—aur ab father ke pichhe baithi hui apne mein hi kuch buDbuDa rahi thi mano dhire dhire father ko praumt kar rahi ho
amin father elmanD ne bible mez par rakh di aur preyar buk utha li hall ki khamoshi kshan bhar ke liye toot gai laDkiyon ne khaDe hote hue jaan bujhkar bencho ko pichhe dhakela—benchen farsh par ragaD khakar siti bajati hui pichhe khisak gai—hall ke kone se hansi phoot paDi miss wuD ka chehra tan gaya, mathe par bhrikutiyan chaDh gai phir achanak nistabdhata chha gai—hall ke us ghute hue dhundhalake mein father ka tikha phata hua swar sunai dene laga—jisas seD, i em d lait off d world—hi dait faloeth mi shail not wak in Darknes, bat shail haiw d lait off d lait
doctor mukarji ne ub aur akulahat se bhari jamuhai li, kab ye qissa khatm hoga? usne itne unche swar mein latika se puchha ki wo sakuchakar dusri or dekhne lagi special serwice ke samay doctor mukarji ke honthon par wyangyatmak muskan khelti rahi aur wo dhire dhire apni munchhon ko khinchta raha
father elmanD ki wesh bhusha dekhkar latika ke dil mein gudgudi si dauD gai jab wo chhoti thi, to aksar ye baat sochkar wismit hua karti thi ki kya padari log safed choghe ke niche kuch nahin pahante, agar dhokhe se wo upar uth jaye to?
left left left march karte fauji boot chaipal se door hote ja rahe the—kewal unki goonj hawa mein shesh rah gai thi
hig number 117— father ne pararthna pustak kholte hue kaha hall mein pratyek laDki ne desk par rakhi hui him buk khol li pannon ke ulatne ki khaDkhaDahat phisalti ek sire se dusre sire tak phail gai
age ki bench se uthkar hyubart piano ke samne stool par baith gaya sangit shikshak hone ke karan har sal special serwice ke awsar par use kauyar ke sang piano bajana paDta tha rabart ne apne rumal se nak saf ki apni ghabrahat chhipane ke liye hyubart hamesha aisa hi kiya karta tha kanakhiyon se hall ki or dekhte hue usne kanpte hathon se him buk kholi
leeD kainDli lait
piano ke sur dabe, jhijhakte se milne lage ghane balon se Dhanki hyubart ki lambi, pili ungliyan khulne simatne lagi kauyar mein gane wali laDkiyon ke swar ek dusre se gunthakar komal snigdh lahron mein bindh gaye
latika ko laga, uska juDa Dhila paD gaya hai, mano gardan ke niche jhool raha hai miss wuD ki ankh bacha latika ne chupchap balon mein lage klipon ko kas kar kheench diya
baDa jhakki adami hai subah mainne hyubart ko yahan aane se mana kiya tha, phir bhi chala aaya doctor ne kaha
latika ko karimuddin ki baat yaad ho gai raat bhar hyubart ko khansi ka daura paDa tha kal jane ke liye kah rahe the
latika ne sir teDha karke hyubart ke chehre ki ek jhalak pane ki wiphal cheshta ki itne pichhe se kuch bhi dekh pana asambhau tha; piano par jhuka hua kewal hyubart ka sir dikhai deta tha
leeD kainDli lait sangit ke sur mano ek unchi pahaDi par chaDhkar hanpti hui sanson ko akash ki agadh shunyata mae bikherte hue niche utar rahe hain barish ki mulayam dhoop chaipal ke lambe chaukor shishon par jhalamla rahi hai, jiski ek muhin chamkili rekha isamsih ki pratima par tirchhi hokar gir rahi hai mombattiyon ka dhuan dhoop mein nili si lakir khinchta hua hawa mein tirne laga hai piano ke kshanaik poz mein latika ko patton ka marmar kahin door anjani disha se aata hua sunai de jata hai ek kshan ke liye use ye bhram hua ki chaipal ka phika sa andhera us chhote se preyar hall ke charon konon se simatta hua uske asapas ghir aaya hai—mano koi uski ankhon par patti bandhakar use yahan tak le aaya ho aur achanak uski donon ankhen khol di hon use laga ki jaise mombattiyon ke dhumil aalok mein kuch bhi thos, wastawik na raha ho—chaipal ki chhat, diwaren, desk par rakha hua doctor ka sughaD suDaul hath—aur piano ke sur atit ki dhundh ko bhedte hue swayan us dhundh ka bhag bante ja rahe hon
ek pagli si smriti, ek udbhrant bhawna—chaipal ke shishon ke pare pahaDi sukhi hawa, hawa mein jhuki hui wiping wiloz ki kanpti tahniyan, pairon tale cheeD ke patton ki dhimi si chir parichit khaD khaD wahin par girish ek hath mein military ka khaki hat liye khaDa hai—chauDe uthe hue sabal kandhe, apna sir wahan tika do, to jaise simatkar kho jayega chaarls woyar, ye nam usne rakha tha wo jhempkar hansne lagta
tumhen army mein kisne chun liya, major ban gaye ho, lekin laDkiyon se bhi gaye bite ho zara zara si baat par chehra lal ho jata hai ye sab wo kahti nahin, sirf sochti bhar thi—socha tha kahungi, wo kabhi kabhi nahin aaya
buruns ka lal phool
laye ho
na
jhuthe
khaki qamiz ki jis jeb par baij chipke the, usi mein se musa hua buruns ka phool nikal aaya
chhih, sara murjha gaya
abhi khila kahan hai?
(hau klamzi)
uske balon mein girish ka hath ulajh raha hai—phul kahin tik nahin pata, phir use klip ke niche phansakar usne kaha—
dekha
wo muDi aur ismen pahle ki wo kuch kah pati, girish ne apna military ka hat dhap se uske sir par rakh diya wo mantrmugdh si waise hi khaDi rahi uske sir par girish ka hat hai—mathe par chhoti si bindi hai bindi par uDte hue baal hain girish ne us bindi ko apne honthon se chhua hai usne uske nange sir ko apne donon hathon mein samet liya hai —
latika
girish ne chiDhate hue kaha—main itar off kumaun—(uska ye nam girish ne use chiDhane ke liye rakha tha), wo hansne lagi
latika suno girish ka swar kaisa ho gaya tha?
na, main kuch bhi nahin sun rahi
latika main kuch mahinon mein wapas laut aunga
na main kuch bhi nahin sun rahi kintu wo sun rahi hai—wah nahin jo girish kah raha hai, balki wo, jo nahin kaha ja raha hai, jo uske baad kabhi nahin kaha gaya
leeD kainDli lait
laDkiyon ka swar piano ke swron mein Duba hua gir raha hai, uth raha hai hyubart ne sir moDkar latika ko nimish bhar dekha—ankhen munde dhyanmagna prastar murti si wo sthir nishchal khaDi thi kya ye bhaw uske liye? kya latika ne aise kshnon mein use apna sathi banaya hai? hyubart ne ek gahri sans li aur us sans mae Dher si thakan umaD i
dekho miss wuD kursi par baithe baithe so rahi hain doctor honthon mein hi phus phusaya ye doctor ka purana mazaq tha ki miss wuD pararthna karne ke bahane ankhen munde hue neend ki jhapkiyan leti hain
father elmanD ne kursi par phaile apne gown ko samet liya aur preyar buk band karke miss wuD ke kanon mein kuch kaha piano ka swar kramash mand paDne laga, hyubart ki ungliyan Dhili paDne lagi serwice ke samapt hone se poorw miss wuD ne order paDhkar sunaya barish hone ki ashanka se aaj ke karyakram mein kuch awashyak pariwartan karne paDe the picnic ke liye jhula dewi ke mandir jana sambhaw nahin ho sakega isliye school se kuch door miDoz mein hi sab laDkiyan nashte ke baad jama hongi sab laDkiyon ko dopahar ka lanch hostel kitchen se hi le jana hoga, kewal sham ki chay miDoz mein banegi
pahaDon ki barish ka kya bharosa! kuch der pahle dhuandhar badal garaj rahe the, sara shahr pani mein bhiga thithur raha tha—ab dhoop mein nahata nila akash dhundh ki ot se bahar nikalta hua phail raha tha latika ne chaipal se bahar aate hue dekha—wipig wiloz ki bhigi shakhaon se dhoop mein chamakti hui barish ki bunden tapak rahi theen
laDkiyan chaipal se bahar nikalkar chhote chhote jhunD banakar corridor mein jama ho gai hain nashte ke liye abhi pauna ghanta paDa tha aur unmen se koi laDki hostel jane ke liye ichchhuk nahin thi chhuttiyan abhi shuru nahin hui thi kintu shayad isiliye we in chand bache khuche kshnon mein anushasan ke ghere ke bhitar bhi mukt hone ka bharpur anand utha lena chahti theen
miss wuD ko laDkiyon ka ye gul gapaDa akhra, kintu father elmanD ke samne wo unhen Dant phatkar nahin saki apni jhunjhlahat dabakar wo muskurate hue boli, kal sab chali jayengi, sara school wiran ho jayega!
father elmanD ka lamba ojpurn chehra chaipal ki ghuti hui garmai se lal ho utha tha corridor ke jangle par apni chhaDi latkakar wo bole, chhuttiyon mein pichhe hostel mein kaun rahega?
pichhle do teen salon se miss latika hi rah rahi hain
aur doctor mukarji? father ka upri honth tanik khinch aaya
doctor to sardi garmi yahin rahte hain miss wuD ne wismay se father ki or dekha wo samajh nahin saki ki father ne doctor ka prsang kyon chheD diya hai
doctor mukarji chhuttiyon mein kahin nahin jate?
do mahine ki chhuttiyon mein barma jana kafi kathin hai, father! miss wuD hansne lagin
miss wuD, pata nahin aap kya sochti hain mujhe to miss latika ka hostel mein akele rahna kuch samajh mein nahin aata
lekin father, miss wuD ne kaha, ye to conwent school ka niyam hai ki koi bhi teacher chhuttiyon mein apne kharche par hostel mein rah sakti hai
main filaha school ke niymon ki baat nahin kar raha miss latika doctor ke sang yahan akeli hi rah jayengi aur sach puchhiye miss wuD, doctor ke bare mein meri ray kuch bahut achchhi nahin hai
father, aap kaisi baat kar rahe hain miss latika bachchi thoDe hi hain miss wuD ko aisi aasha nahin thi ki father elmanD apne dil mein daqiyanusi bhawna ko sthan denge
father elmanD kuch hataprabh se ho gaye baat talte hue bole, miss wuD, mera matlab ye nahin tha aap to janti hain, miss latika aur us military afsar ko lekar ek achchha khasa scandal ban gaya tha, school ki badnami hone mein kya der lagti hai!
wo bechara to ab nahin raha main use janti thi father! ishwar uski aatma ko shanti de!
miss wuD ne dhire se apni donon banhon se cross kiya
father elmanD ko miss wuD ki murkhata par itna adhik kshaobh hua ki unse aage aur kuch nahin bola gaya doctor mukarji se unki kabhi nahin patti thi, isliye miss wuD ki ankhon mein wo doctor ko nicha dikhana chahte the kintu miss wuD latika ka rona le baithi aage baat baDhana byarth tha unhonne chhaDi ko jangle se uthaya aur upar saf khule akash ko dekhte hue bole, program aapne yoon hi badla; miss wuD, ab kya barish hogi!
hyubart jab chaipal se bahar nikla to uski ankhen chakachaundh si ho gain use laga jaise kisi ne achanak Dher si chamkili uchalti hui raushani mutthi mein bharkar uski ankhon mein jhonk di ho piano ke sangit ke sur rui ke chhui mui reshon ki bhanti ab tak uske mastishk ki thaki mandi nason par phaDphaDa rahe the wo kafi thak gaya tha piano bajane se phephaDon par hamesha bhari dabaw paDta, dil ki dhaDkan tez ho jati thi use lagta tha ki sangit ke ek not ko dusre not mein utarne ke prayatn mein wo ek andheri khai par kar raha hai
aj chaipal mein mainne jo mahsus kiya, wo kitna rahasyamay, kitna wichitr tha, hyubart ne socha mujhe laga, piano ka har not chirantan khamoshi ki andheri khoh mein nikalkar bahar phaili nili dhundh ko katta, tarashta hua ek bhula sa arth kheench lata hai girta hua har poz ek chhoti si maut hai, mano ghane chhayadar wrikshon ki kanpti chhayaon mein koi pagDanDi gum ho gai ho, ek chhoti si maut jo aane wale suron ko apni bachi khuchi gunjon ki sansen samarpit kar jati hai jo mar jati hai, kintu mit nahin pati, mitti nahin isliye markar bhi jiwit hai, dusre suron mein lai ho jati hai
doctor, kya mirtyu aise hi aati hai? agar main doctor se puchhun to wo hansakar tal dega mujhe lagta hai, wo pichhle kuch dinon se koi baat chhipa raha hai—uski hansi mein jo sahanubhuti ka bhaw hota hai, wo mujhe achchha nahin lagna aaj usne mujhe special serwice mein aane se roka tha—karan puchhne par wo chup raha tha kaun si aisi baat hai, jise mujhse kahne mein doctor katrata hai shayad main shakki mizaj hota ja raha hoon, aur baat kuch bhi nahin hai
hyubart ne dekha, laDkiyon ki qatar school se hostel jane wali saDak par niche utarti ja rahi hai ujli dhoop mein unke rang birange ribbon, halki asmani rang ki frauken aur safed petiyan chamak rahi hain siniyar kaimbriz ki kuch laDkiyon ne chaipal ki watika se gulab ke phulon ko toDkar apne balon mein laga liya hai kentonment ke teen chaar sipahi laDkiyon ko dekhte hue ashlil mazaq karte hue hans rahe hain aur kabhi kabhi kisi laDki ki or zara sa jhukkar siti bajane lagte hain
halo mistar hyubart hyubart ne chaunkkar pichhe dekha latika ek mota sa register baghal mein dabaye khaDi thi
ap abhi yahin hain? hyubart ki drishti latika par tiki rahi wo kreem rang ki puri banhon ki uni jaikat pahne hui thi kumaunni laDkiyon ki tarah latika ka gala gol tha, dhoop ki tapan se paka gehuna rang kahin kahin halka sa gulabi ho aaya tha, mano bahut dhone par bhi gulab ke kuch dhabbe idhar udhar bikhre rah gaye hon
un laDkiyon ke nam not karne the, jo kal ja rahi hain so pichhe rukna paDa! aap bhi to kal ja rahe hain mistar hyubart?
abhi tak to yahi irada yahan rukkar bhi kya karunga? aap school ki or ja rahi hain?
chaliye
pakki saDak par laDkiyon ki bheeD jama thi, isliye we donon polo graunD ka chakkar katti hui pagDanDi se niche utarne lage
hawa tez ho chali cheeD ke patte har jhonke ke sang toot tutkar pagDanDi par Dher lagate jate the hyubart rasta banane ke liye apni chhaDi se unhen buharkar donon or bikher deta tha latika pichhe khaDi hui dekhti rahti thi almoDa ki or se aate hue chhote chhote badal reshmi rumalon se umaDte hue suraj ke munh par lipte se jate the, phir hawa mein bah nikalte the is khel mae dhoop kabhi mand, phiki si paD jati thi, kabhi apna ujla anchal kholkar samuche shahr ko apne mein samet leti thi
latika tanik aage nikal gai hyubart ki sans chaDh gai thi aur wo dhire dhire hanpta hua pichhe se aa raha tha jab we polo graunD ke paiweliyan ko chhoDkar military ke darin or muDe, to latika hyubart ki pratiksha karne ke liye khaDi ho gai use yaad aaya, chhuttiyon ke dinon mein jab kabhi kamre mae akele baithe baithe uska man ub jata tha, to wo aksar tahalte hue military tak chali jati thi usse sati pahaDi par chaDhkar wo barf mein Dhanke dewdar wrikshon ko dekha karti thi, jinki jhuki hui shakhon se rui ke galon si barf niche gira karti thi niche bazar jane wali saDak par bachche slez par phisla karte the wo khaDi khaDi barf mein chhipi hui us saDak ka anuman lagaya karti thi jo father elmanD ke ghar se guzarti hui military aspatal aur Dakghar se hokar church ki siDhiyon tak jakar gum ho jati thi jo manoranjan ek durgam paheli ko suljhane mein hota hai, wahi latika ko barf mein khoe raston ko khoj nikalne mein hota tha
ap bahut tez chalti hain, miss latika—thakan se hyubart ka chehra kumhla gaya tha mathe par pasine ki bunden chhalak i thi
kal raat apaki tabiat kya kuch kharab ho gai thee?
apne kaise jana? kya main aswasth dikh raha hoon? hyubart ke swar mein halki si kheejh ka abhas tha sab log meri sehat ko lekar kyon baat shuru karte hain, usne socha
nahin, mujhe to pata bhi nahin chalta, wo to subah karimuddin ne baton hi baton mein zikr chheD diya tha latika kuch apratibh si ho i
koi khas baat nahin, wo purana dard shuru ho gaya tha—ab bilkul theek hai apne kathan ki pushti ke liye hyubart chhati sidhi karke tez qadam baDhane laga
doctor mukarji ko dikhlaya tha?
wo subah aaye the unki baat kuch samajh mein nahin aati hamesha do baten ek dusre se ulti kahte hain kahte the ki is bar mujhe chhe sat mahine ki chhutti lekar aram karna chahiye lekin agar main theek hoon to bhala iski kya zarurat hai?
hyubart ke swar mein wyatha ki chhaya latika se chhipi na rah saki baat ko talte hue usne kaha, aap to nahaq chinta karte hain, mi hyubart! aaj kal mausam badal raha hai, achchhe bhale adami tak bimar ho jate hain
hyubart ka chehra prasannata mein damakne laga usne latika ko dhyan se dekha wo apne dil ka sanshay mitane ke liye nishchint ho jana chahta tha ki kahin latika use kewal dilasa dene ke liye hi to jhooth nahin bol rahi
yahi to main soch raha tha, miss latika! doctor ki salah sunkar to main Dar hi gaya bhala chhः mahine ki chhutti lekar main akela kya karunga? school mein to bachchon ke sang man laga rahta hai sach puchho to dilli mein ye do mahinon ki chhuttiyan dubhar ho jata hai
mistar hyubart kal aap dilli ja rahe hain ?
latika chalte chalte hathat thithak gai samne polo graunD phaila tha, jiske dusri or military ki trken kentonmet ki or ja rahi thi hyubart ko laga, jaise latika ki ankhen adhmundi si khuli rah gai hai, mano palkon par ek purana bhula sa sapna sarak aaya hai
mistar hyubart aap dilli ja rahe hain is bar latika ne parashn nahin duhraya—uske swar mein kewal ek asim duri ka bhaw ghir aaya
bahut arsa pahle main bhi dilli gai thi, mi hyubart! tab main bahut chhoti thee—n jane kitne baras beet gaye hamari mausi ka byah wahin hua tha bahut si chizen dekhi theen, lekin ab to sab kuch dhundhla sa paD gaya hai itna yaad hai ki hum qutub par chaDhe the sabse unchi manzil se hamne niche jhanka tha—n jane kaisa laga tha niche chalte hue adami chabhi bhare hue khilaunon se lagte the hamne upar se un par mungaphliyan phenki thi, lekin hum bahut nirash hue the kyonki unmen se kisi ne hamari taraf nahin dekha shayad man ne mujhe Danta tha, aur main sirf niche jhankte hue Dar gai thi suna hai, ab to dilli itna badal gaya hai ki pahchana nahin jata
we donon phir chalne lage hawa ka weg Dhila paDne laga uDte hue badal ab sustane se lage the, unki chhayayen nandadewi aur panchchuli ki pahaDiyon par gir rahi thi school ke pas pahunchte pahunchte cheeD ke peD pichhe chhoot gaye, kahin kahin ख़ubani ke peDon ke aas pas buruns ke lal phool dhoop mein chamak jate the school tak aane mein unhonne polo graunD ka lamba chakkar laga liya tha
miss latika, aap kahin chhuttiyon mein jati kyon nahin—sardiyon mein to yahan sab kuch wiran ho jata hoga?
ab mujhe yahan achchha lagta hai, latika ne kaha, pahle sal akelapan kuch akhra tha—ab aadi ho gai hoon christmas se ek raat pahle club mein Dans hota hai, latri Dali jati hai aur raat ko der tak nach gana hota rahta hai nae sal ke din kumaun rejiment ki or se parade graunD mein karniwal kiya jata hai, barf par sketing hoti hai, rang birange ghubbaron ke niche fauji band bajta hai, fauji afsar phainsi dress mein bhag lete hain har sal aisa hi hota hai, mistar hyubart phir kuch din baad wintar sports ke liye angrez tourist aate hain har sal main unse parichit hoti hoon, wapas lautte hue we hamesha wada karte hain ki agle sal bhi ayenge, par main janti hoon ki we nahin ayenge, we bhi jante hain ki we nahin ayenge, phir bhi hamari dosti mein koi antar nahin paDta phir phir kuch dinon baad pahaDon par barf pighalne lagti hai, chhuttiyan khatm hone lagti hain, aap sab log apne apne gharon se wapas laut aate hain aur mistar hyubart, pata bhi nahin chalta ki chhuttiyan kab shuru hui theen, kab khatm ho gain
latika ne dekha ki hyubart uski or atankit bhayakul drishti se dekh raha hai wo sitapitakar chup ho gai use laga, mano wo itni der mein pagal si anargal pralap kar rahi ho
mujhe maf karna mistar hyubart kabhi kabhi main bachchon ki tarah baton mein bahak jati hoon
miss latika hyubart ne dhire se kaha wo chalte chalte ruk gaya tha latika hyubart ke bhari swar se chaunk si gai
kya baat hai mistar hyubart?
wo patr uske liye main lajjit hoon use aap wapas lauta den, samajh len ki mainne use kabhi nahin likha tha
latika kuch samajh na saki, digbhrant si khaDi hui hyubart ke pile, udwign chehre ko dekhti rahi
hyubart ne dhire se latika ke kandhe par hath rakh diya
kal doctor ne mujhe sab kuch bata diya agar mujhe pahle se malum hota to to hyubart haklane laga
mistar hyubart kintu latika se aage kuch bhi nahin kaha gaya uska chehra safed ho gaya tha
donon chupchap kuch der tak school ke gate ke bahar khaDe rahe
miDoz pagDanDiyon, patton, chhayaon se ghira chhota sa dweep, mano koi ghonsla do hari ghatiyon ke beech aa daba ho bhitar ghuste hi picnic ki kali aag se jhulse hue patthar, adhajli tahniyan, baithne ke liye bichhaye gaye purane akhbaron ke tukDe idhar udhar bikhre dikhai de jate hain aksar tourist picnic ke liye yahan aate hain miDoz ko beech mein katta hua teDha meDha barsati nala bahta hai, jo door se dhoop mein chamakta hua safed ribbon sa dikhai deta hai
yahin par kath ke takhton ka bana hua tuta sa pul hai, jis par laDkiyan hichkole khati hui chal rahi hain
doctor mukarji, aap to sara jangal jala denge—miss wuD ne apni unchi eDi ke sainDal mein jalti hui diyasalai ko daba Dala, jo doctor ne cigar sulgakar cheeD ke patton ke Dher par phenk di thi we nale se kuch door hatkar cheeD ke do peDon ki gunthi hui chhaya ke niche baithe the unke samne ek chhota sa rasta niche pahaDi ganw ki or jata tha, jahan pahaD ki god mein shakarparon ke khet ek dusre ke niche bichhe hue the dopahar ke sannate mein bheD bakariyon ke galon mein bandhi hui ghantiyon ka swar hawa mae bahta hua sunai de jata tha
ghas par lete lete doctor cigar pite rahe
jangal ki aag kabhi dekhi hai, miss wuD ek almast nashe ki tarah dhire dhire phailti jati hai
apne kabhi dekhi hai doctor? miss wuD ne puchha, mujhe to baDa Dar lagta hai
bahut sal pahle shahron ko jalte hue dekha tha doctor lete hue akash ki or tak rahe the ek ek makan tash ke patton ki tarah girta jata hai durbhagyawash aise awsar dekhne mein bahut kam aate hain
apne kahan dekha, doctor?
laDai ke dinon mein apne shahr rangun ko jalte hue dekha tha
miss wuD ki aatma ko thes lagi, kintu phir bhi unki utsukta shant nahin hui
apka ghar—kya wo bhi jal gaya tha?
doctor kuch der tak chupchap leta raha
hum use khali chhoDkar chale aaye the—malum nahin, baad mein kya hua? apne wyaktigat jiwan ke sambandh mein kuch bhi kahne mein doctor ko kathinai mahsus hoti hai
doctor, kya aap kabhi wapas barma jane ki baat nahin sochte? doctor ne angDai li aur karwat badalkar aundhe munh let gaye unki ankhen mund gai aur mathe par balon ki laten jhool i
sochne se kya hota hai miss wuD jab barma mein tha, tab kya kabhi socha tha ki yahan aakar umr katni hogi?
lekin doctor, kuch bhi kah lo, apne desh ka sa sukh kahin aur nahin milta yahan tum chahe kitne warsh rah lo, apne ko hamesha ajnabi hi paoge
doctor ne cigar ke dhuen ko dhire dhire hawa mein chhoD diya—darasal ajnabi to main wahan bhi samjha jaunga, miss wuD itne warsho baad wahan mujhe kaun pahchanega? is umr mein nae sire mein rishte joDna kafi sirdard ka kaam hai— kam se kam mere bus ki baat nahin hai
lekin doctor, aap kab tak is pahaDi qasbe mein paDe rahenge—isi desh mein rahna hai to kisi baDe shahr mae practice shuru kijiye?
practice baDhane ke liye kahan kahan bhatakta phirunga, miss wuD jahan raho, wahin mariz mil jate hain yahan aaya tha kuch dinon ke liye—phir muddat ho gai aur tika raha jab kabhi ji ubega kahin chala jaunga jaDen kahin nahin jamti, to pichhe bhi nahin chhoot jata mujhe apne bare mein koi ghaltafahmi nahin hai miss wuD, main sukhi hoon
miss wuD ne doctor ki baat par wishesh dhyan nahin diya! dil mein wo hamesha doctor ko uchchhrinkhal, laparwah aur sanki samajhti rahi hai, kintu doctor ke charitr mein uska wishwas hai—n jane kyon, kyonki doctor ne jane anjane mein uska koi praman diya ho, ye use yaad nahin paDta
miss wuD ne ek thanDi sans bhari wo hamesha ye sochti thi ki yadi doctor itna aalsi aur laparwah na hota, to apni yogyata ke bal par kafi chamak sakta tha isiliye unhen doctor par krodh bhi aata tha aur duःkh bhi hota tha
miss wuD ne apne bag se un ka gola aur salaiyan nikali, phir uske niche se akhbar mein lipta hua chauDa coffe ka Dibba uthaya, jismen anDon ki sainDawichen aur haimbargar dabe hue the thormas se pyalon mein coffe unDelate miss wuD ne kaha, doctor, coffe thanDi ho rahi hai
doctor lete lete buDabuDaya miss wuD ne niche jhukkar dekha, wo kuhni par sir tikaye chupchap so raha tha upar ka honth zara sa phailkar muD gaya tha, mano kisi se mazaq karne se pahle muskura raha ho
uski unguliyon mein daba hua cigar niche jhuka hua latak raha tha
meri, meri, what Du yu want— dusre standard mein paDhne wali meri ne apni chanchal chapal ankhen upar uthai—laDakiyon ka dayara use ghere hue, kabhi pas aata tha, kabhi khinchta chala jata tha
i want i want bloo— donon hathon ko hawa mein ghumate hue, meri chillai dayara pani ki tarah toot gaya sab laDkiyan ek dusre par girti paDti kisi nili wastu ko chhune ke liye bhag dauD karne lagin
lunch samapt ho chuka tha laDkiyon ke chhote chhote dal miDoz mein bikhar gaye the unchi class ki kuch laDkiyan chay ka pani garm karne ke liye peDon par chaDh kar sukhi tahniyan toD rahi theen
dopahar ki us ghaDi mein miDoz alsaya unghana sa jaan paDta tha hawa ka koi bhula bhatka jhonka—chiD ke patte khaDakhDa uthte the kabhi koi pakshi apni susti mitane jhaDiyon se uDkar nale ke kinare baith jata tha, pani mein sir Dubota tha, phir ubkar hawa mein do chaar niruddeshy chakkar katkar dubara jhaDiyon mein dubak jata tha
kintu jangal ki khamoshi shayad kabhi chup nahin rahti gahri neend mein Dubi sapnon si kuch awazen nirawta ke halke jhine parde par salawten bichha jati hain—muk lahron si hawa mein tirti hain—mano koi dabe panw jhankakar adrshy sanket kar jata hai—dekho main yahan hoon—
latika ne juli ke baub hair ko sahlate hue kaha, tumhein kal raat bulaya tha
maiDam, main gai thi—ap apne kamre mein nahin theen latika ko yaad aaya ki kal raat wo doctor ke kamre ke taires par der tak baithi rahi thi—aur bhitar hyubart piano par shopan ka nauktarn baja raha tha
juli, tumse kuch puchhna tha use laga, wo juli ki ankhon se apne ko bacha rahi hai
juli ne apna chehra upar uthaya uski bhuri ankhon se kautuhal jhank raha tha
tum aufisars mes mein kisi ko janti ho?
juli ne anishchit bhaw se sir hilaya latika kuch der tak juli ko aplak ghurti rahi
juli, mujhe wishwas hai, tum jhooth nahin bologi kuch kshan pahle juli ke ankhon mein jo kautuhal tha, wo bhay mein parinat hone laga
latika ne apni jaikat ki jeb se ek nila lifafa nikalkar juli ki god mein phenk diya
ye kiski chitthi hai?
juli ne lifafa uthane ke liye hath baDhaya, kintu phir ek kshan ke liye uska hath kanpakar thithak gaya—lifafe par uska nam aur hostel ka pata likha hua tha
thenk yu maiDam, mere bhai ka patr hai, wo jhansi mein rahte hai! juli ne ghabrahat mein lifafe ko apni skirt ki tahon mein chhipa liya
juli, zara mujhe lifafa dikhlao latika ka swar tikha, karkash sa ho aaya
juli ne anamne bhaw se latika ko patr de diya
tumhare bhai jhansi mein rahte hai?
juli is bar kuch nahin boli uski udbhrant ukhDi si ankhen latika ko dekhti rahi
ye kya hai?
juli ka chehra safed, phak paD gaya lifafe par kumaun rejimental centre ki muhr uski or ghoor rahi thi
kaun hai yah— latika ne puchha usne pahle bhi hostel mein uDti hui afwah suni thi ki juli ko club mein kisi military afsar ke sang dekha gaya tha, kintu aisi afwahen aksar uDti rahti thi, aur usne us par wishwas nahin kiya tha
juli, tum abhi bahut chhoti ho—juli ke honth kanpe uski ankhon mein nirih yachana ka bhaw ghir aaya
achchha abhi jao—tumse chhuttiyon ke baad baten karungi
juli ne lalchai drishti se lifafe ki or dekha, kuch bolne ko udyat hui, phir bina kuch kahe chupchap wapas laut gai
latika der tak juli ko dekhti rahi, jab tak wo ankhon se ojhal nahin ho gai kya main kisi khusat buDhiya se kam hoon! apne abhaw ka badla kya main dusron se le rahi hoon?
shayad—kaun jane—shayad juli ka ye pratham parichai ho, us anubhuti se, jise koi bhi laDki baDe chaw se sanjokar, sanbhalakar apne mein chhipaye rahti hai ek anirwachniy sukh, jo piDa liye hai, piDa aur sukh ko Duboti hui umaDte jwar ki khumari jo donon ko apne mein samo leti hai—ek dard, jo anand se upja hai aur piDa deta hai—
yahin isi dewdar ke niche use bhi yahi laga tha, jab girish ne puchha tha, tum chup kyon ho? wo ankhen munde soch rahi thi—soch kahan rahi thi, ji rahi thi, us kshan ko jo bhay aur wismay ke beech bhincha tha—bahka sa pagal kshan! wo abhi pichhe muDegi to girish ki nerwous muskurahat dikhai de jayegi, us din se aaj dopahar tak ka atit ek duaswapn ki manind toot jayega wahin dewdar hai, jis par usne apne balon ke klip se girish ka nam likha tha peD ki chhaal utarti nahin thi, klip toot toot jata tha, tab girish ne apne nam ke niche uska nam likha tha jab kabhi koi akshar bigaDkar teDha meDha ho jata tha, tab wo hansti thi, aur girish ka kanpta hath aur bhi kanp jata tha—
latika ko laga ki jo wo yaad karti hai, wahi bhulna bhi chahti hai, lekin jab sachmuch bhulne lagti hai, tab use bhay lagta hai ki jaise koi uski kisi cheez ko uske hathon se chhine liye ja raha hai, aisa kuch jo sada ke liye kho jayega bachpan mein jab kabhi wo apne kisi khilaune ko kho deti thi, to wo gumsum si hokar socha karti thi, kahan rakh diya mainne jab bahut dauD dhoop karne par khilauna mil jata, to wo bahana karti ki abhi use khoj hi rahi hai ki wo abhi mila nahin hai jis sthan par khilauna rakha hota, jaan bujhkar use chhoDkar ghar ke dusre konon mein use khojne ka upakram karti tab khoi hui cheez yaad rahti, isliye bhulne ka bhay nahin rahta tha—
aj wo us bachpan ke khel ka bahana kyon nahin kar pati? bahana—shayad karti hai, use yaad karne ka bahana, jo bhulta ja raha hai din, mahine beet jate hain, aur wo uljhi rahti hai, anjane mein girish ka chehra dhundhla paDta jata hai, yaad wo karti hai, kintu jaise kisi purani taswir ke dhool bhare shishe ko saf kar rahi ho ab waisa dard nahin hota, sirf usko yaad karti hai, jo pahle kabhi hota tha—tab use apne par glani hoti hai wo phir jaan boojh kar us ghaw ko kuredti hai, jo bharta ja raha hai, khu ba khu, uski koshishon ke bawjud bharta ja raha hai
dewdar par khude hue adhamite nam latika ki or nistabdh nirih bhaw se nihar rahe the miDoz ke ghane sannate mein nale par se khelti hui laDkiyon ki awajen goonj jati thi
what Du yu want what Du yu want—?
titliyan, jhingur, jugnu—miDoz par utarti hui sanjh ki chhayaon mein pata nahin chalta, kaun awaz kiski hai? dopahar ke samay jin awazon ko alag alag karke pahchana ja sakta tha, ab we ekaswarta ki awiral dhara mein ghul gai thi ghas se apne pairon ko ponchhta hua koi reng raha hai jhaDiyon ke jhurmut se paron ko phaDaphData hua jhapatkar koi upar mein uD jata hai—kintu upar dekho to kahin kuch bhi nahin hai miDoz ke jharne ka gaDagData swar—jaise andheri surang mein jhapate se train guzar gai ho, aur der tak ummen sitiyon aur pahiyon ki chitkar gunjti rahi ho
picnic kuch der tak aur chalti, kintu badalon ki tahen ek dusre par chaDhti ja rahi thi picnic ka saman batora jane laga miDoz ke charon or bikhri hui laDkiyan miss wuD ke ird gird jama hone lagi apne sang we ajib o gharib chizen lai thi koi kisi pakshi ke tute pankh ko balon mein lagaye hue thi, kisi ne peD ki tahni ko chaku se chhilkar chhoti si bent bana li thi unchi class ki kuch laDkiyon ne apne apne rumalon mein nale se pakDi hui chhoti chhoti balisht bhar ki machhliyon ko daba rakha tha jinhen miss wuD se chhipakar we ek dusre ko dikha rahi theen
miss wuD laDkiyon ki toli ke sang aage nikal gain miDoz se pakki saDak tak teen chaar farlang ki chaDhai thi latika hanphane lagi doctor mukarji sabse pichhe aa rahe the latika ke pas pahunchakar wo thithak gaye doctor ne donon ghutnon ko zamin par tekte hue sir jhukakar elijabeth yugin angrezi mae kaha—maiDam, aap itni pareshan kyon nazar aa rahi hain—
aur doctor ki natkiya mudra ko dekhkar latika ke honthon par ek thaki si Dhili Dhili muskurahat bikhar gai
pyas ke mare gala sookh raha hai aur ye chaDhai hai ki khatm hone mein nahin aati
doctor ne apne kandhe par latakte hue thormas ko utarkar latika ke hathon mein dete hue kaha—thoDi si coffe bachi hai, shayad kuch madad kar sake
dopahar bhar sota raha—miss wuD ke sang mera matlab hai, miss wuD pas baithi theen
mujhe lagta hai, miss wuD mujhse mohabbat karti hain koi bhi mazaq karte samay doctor apni munchhon ke konon ko chabane lagta hai
kya kahti thee? latika ne thormas se coffe ko munh mein uDel liya
shayad kuch kahti, lekin bad qismti se beech mein hi mujhe neend aa gai meri zindagi ke kuch khubsurat prem prsang kambakht is neend ke karan adhure rah gaye hain
aur is dauran mein jab donon baten kar rahe the, unke pichhe miDoz aur motor roD ke sang chaDhti hui cheeD aur banj ke wrikshon ki qataren sanjh ke ghirte andhere mein Dubne lagi, mano pararthna karte hue unhonne chupchap apne sir niche jhuka liye hon inhin peDon ke upar badalon mein girje ka cross kahin uljha paDa tha uske niche pahaDon ki Dhalan par bichhe hue khet bhagti hui gilahriyon se lag rahe the, mano kisi ki toh mae stabdh thithak gai hon
doctor, mistar hyubart picnic par nahin aye?
doctor mukarji tarch jalakar latika ke aage aage chal rahe the
mainne unhen mana kar diya tha
kisaliye?
andhere mein pairon ke niche dabe hue patton ki charamrahat ke atirikt kuch sunai nahin deta tha doctor mukarji ne dhire se khansa
pichhle kuch dinon se mujhe sandeh hota ja raha hai ki hyubart ki chhati ka dard mamuli dard nahin hai doctor thoDa sa hansa, jaise use apni ye gambhirta aruchikar lag rahi ho
doctor ne pratiksha ki, shayad latika kuch kahegi kintu latika chupchap uske pichhe chal rahi thi
ye mera mahz shak hai, shayad main bilkul ghalat houn, kintu ye behtar hoga ki wo apne ek phephDe ka x re kara len—isse kam se kam koi bhram to nahin rahega
apne mistar hyubart se iske bare mein kuch kaha hai?
abhi tak kuch nahin kaha hyu bird zara si baat par chintit ho uthta hai, isliye kabhi sahas nahin ho pata
doctor ko laga, uske pichhe aate hue latika ke pairon ka swar sahsa band ho gaya hai unhonne pichhe muDkar dekha, latika beech saDak par andhere mein chhaya si chupchap nishchal khaDi hai
doctor latika ka swar bharraya hua tha
kya baat hai miss latika aap ruk kyon gai?
doctor kya mistar hyubart
doctor ne apni tarch ki maddhim raushani latika par di—usne dekha latika ka chehra ekdam pila paD gaya hai aur wo rah rahkar patte si kanp jati hai
miss latika, kya baat hai, aap to bahut Dari si jaan paDti hai?
kuch nahin doctor mujhe mujhe kuch yaad aa gaya tha
we donon phir chalne lage kuch door jane par unki ankhen upar uth gai pakshiyon ka ek beDa dhumil akash mein trikon banata hua pahaDon ke pichhe se unki or aa raha tha latika aur doctor sir uthakar in pakshiyon ko dekhte rahe latika ko yaad aaya, har sal sardi ki chhuttiyon se pahle ye parinde maidanon ki or uDte hain, kuch dinon ke liye beech ke is pahaDi station par basera karte hain, pratiksha karte hai barf ke dinon ki, jab we niche ajnabi, anjane deshon mein uD jayenge
kya we sab bhi pratiksha kar rahe hain? wo, doctor mukarji, mistar rabart—lekin kahan ke liye, hum kahan jayenge—
kintu uska koi uttar nahin mila—us andhere mein miDoz ke jharne ke bhutaile swar aur cheeD ke patton ki sarsarahat ke atirikt kuch sunai nahin deta tha
latika haDabDakar chauk gai apni chhaDi par jhuka doctor dhire dhire siti baja raha tha
miss latika, jaldi kijiye, barish shuru honewali hai
hostel pahunchte pahunchte bijli chamakne lagi thi kintu us raat barish der tak nahin hui badal barasne bhi nahin pate the ki hawa ke thapeDon se dhakel diye jate the dusre din taDke hi bus pakaDni thi, isliye dinner ke baad laDkiyan sone ke liye apne apne kamron mein chali gai thi
jab latika apne kamre mein gai, us samay kumaun rejimental centre ka bigul baj raha tha uske kamre mein karimuddin koi pahaDi dhun gungunata hua lainp mein gas pump kar raha tha latika unhin kapDon mein, takiye ko dohra karke let gai karimuddin ne uDti hui nigah se latika ko dekha, phir apne kaam mein gaya
picnic kaisi rahi mem sahab?
tum kyon nahin aaye, sab laDkiyan tumhein poochh rahi thee? latika ko laga, din bhar ki thakan dhire dhire uske sharir ki pasliyon par chipatti ja rahi hai anayas uski ankhen neend ke bojh se jhapakne lagi
main chala aata to hyubart sahab ki timaradari kaun karta? din bhar unke bistare se sata hua baitha raha aur ab wo ghayab ho gaye hain
karimuddin ne kandhe par latakte hue maile kuchaile tauliye ko utara aur lainp ke shishon ki gard ponchhne laga
latika ki adhmundi ankhen khul gain kya hyubart sahab apne kamre mein nahin hain?
khuda jane, is haalat mein kahan bhatak rahe hain! pani garm karne kuch der ke liye bahar gaya tha, wapas aane par dekhta hoon ki kamra khali paDa hai
karimuddin baDbaData hua bahar chala gaya latika ne lete lete palang ke niche chappalon ko pairon se utar diya
hyubart itni raat kahan gaye? kintu latika ki ankhen phir jhapak gai din bhar ki thakan ne sab pareshaniyon, prashnon par kunji laga di thi, mano din bhar ankhmichauni khelte hue usne apne kamre mein dayya ko chhu liya tha ab wo surakshait thi, kamre ki chaharadiwari ke bhitar use koi nahin pakaD sakta din ke ujale mein wo gawah thi, mujrim thi, har cheez ka usmen taqaza tha, ab is akelepan mein koi gila nahin, ulahna nahin, sab khinchatani khatm ho gai hai, jo apna hai, wo bilkul apna sa ho gaya hai, uska duःkh nahin, apnane ki phursat nahin
latika ne diwar ki or munh ghuma liya lainp ke phike aalok mein hawa mein kanpte pardon ki chhayayen hil rahi theen bijli kaDakne se khiDkiyon ke shishe chamak chamak jate the, darwaze chatakhne lagte the, jaise koi bahar se dhime dhime khat khata raha ho corridor se apne apne kamron mein jati hui laDkiyon ki hansi, baton ke kuch shabd—phir sab kuch shant ho gaya, kintu phir bhi der tak kachchi neend mein wo lainp ka dhima sa si si swar sunti rahi kab wo swar bhi maun ka bhag bankar mook ho gaya, use pata na chala
kuch der baad usko laga, siDhiyon se kuch dabi awazen upar aa rahi hai, beech beech mein koi chilla uthta hai, aur phir sahsa awaz dhimi paD jati hai
miss latika, zara apna lainp le aiye corridor ke zine se doctor mukarji ki awaz i thi
corridor mein andhera tha wo teen chaar siDhiyan niche uttari, lainp niche kiya siDhiyon se sate jangle par hyubart ne apna sir rakh diya tha uski ek banh jangle ke niche latak rahi thi aur dusri doctor ke kandhe par jhool rahi thi, jise doctor ne apne hathon mein jakaD rakha tha
miss latika, lainp zara aur niche jhuka dijiye hyu barta hyubart doctor ne hyubart ko sahara dekar upar khincha hyubart ne apna chehra upar kiya hwiski ki tez bu ka jhonka latika ke sare sharir ko jhinjhoD gaya hyubart ki ankhon mein surkh Dore khinch aaye the, qamiz ka collar ulta ho gaya tha aur tie ki ganth Dhili hokar niche khisak i thi latika ne kanpte hathon se lainp siDhiyon par rakh diya aur aap diwar ke sahare khaDi ho gai uska sir chakrane laga tha
in e baik len off d city, deyar iz e girl, hu labz mi hyubart hichkiyon ke beech gunguna uthta tha
hyubart, pleez pleez, doctor ne hyubart ke laDkhaDate sharir ko apni mazbut giraft mein le liya
miss latika, aap lainp lekar aage chaliye latika ne lainp uthaya diwar par un tinon ki chhayayen Dagmagane lagi
in e baik len off d city dewar iz e girl hu labz mi hyubart doctor mukarji ke kandhe par sir tikaye andheri siDhiyon par ulte sidhe pair rakhta chaDh raha tha
doctor! hum kahan hain? hyubart sahsa itne zor se chillaya ki uski laDkhaDati awaz sunsan andhere mein corridor ki chhat se takrakar der tak hawa mein gunjti rahi
hyubart doctor ko ekdam hyubart par ghussa aa gaya, phir apne ghusse par hi use kheejh si ho i aur wo hyubart ki peeth thapthapane laga
kuch baat nahin hai hyubart Dear, tum sirf thak gaye ho rabart ne apni ankhen doctor par gaDa di, unmen ek bhaybhit bachche ki si katarta jhalak rahi thi, mano doctor ke chehre se wo kisi parashn ka uttar pa lena chahta ho
hyubart ke kamre mein pahunchakar doctor ne use bistare par lita diya hyubart ne bina kisi wirodh ke chupchap jute moze utarwa diye jab doctor hyubart ki tie utarne laga, to hyubart apni kuhni ke sahare utha, kuch der tak doctor ko ankhen phaDte hue ghurta raha, phir dhire se uska hath pakaD liya
doctor, kya main mar jaunga?
kaisi baat karte ho hyubart! doctor ne hath chhuDakar dhire se hyubart ka sir takiye par tika diya
good knight hyubart !
good knight doctor, hyubart ne karwat badal li
good knight mistar hyubart latika ka swar sihar gaya
kintu hyubart ne koi uttar nahin diya karwat badalte hi use neend aa gai thi
corridor mein wapas aakar doctor mukarji railing ke samne khaDe ho gaye hawa ke tez jhonkon se akash mein phaile badalon ki parten jab kabhi ikahri ho jati, tab unke pichhe se chandni bujhti hui aag ke dhuen si asapas ki pahaDiyon par phail jati thi
apko mistar hyubart kahan mile? latika corridor ke dusre kone mein railing par jhuki hui thi
club ki bar mein unhen dekha tha, main na pahunchta to na jane kab tak baithe rahte, doctor mukarji ne cigarette jalai unhen abhi ek do marizon ke ghar jana tha kuch der tak unhen tal dene ke irade se wo corridor mein khaDe rahe
niche apne quarter mein baitha hua karimuddin mouth argon par koi purani filmi dhun baja raha tha
aj din bhar badal chhaye rahe, lekin khulkar barish nahin hui
christmas tak shayad mausam aisa hi rahega kuch der tak donon chupchap khaDe rahe conwent school ke bahar phaile lawn se jhinguron ka anawrat swar charon or phaili nistabdhata ko aur bhi adhik ghana bana raha tha kabhi kabhi upar motor roD par kisi kutte ki ririyahat sunai paD jati thi
doctor kal raat aapne mistar hyubart se kuch kaha tha—mere bare mein?
wahi jo sab log jante hai aur hyubart, jise janna chahiye tha, lekin nahin janta tha
doctor ne latika ki or dekha, wo jaDwat awichlit railing par jhuki hui thi
waise hum sabki apni apni zid hoti hai, koi chhoD deta hai, koi akhir tak usse chipka rahta hai doctor mukarji andhere mein muskuraye unki muskurahat mein sukha sa wirakti ka bhaw bhara tha
kabhi kabhi main sochta hoon miss latika, kisi cheez ko na janna yadi ghalat hai, to janbujhkar na bhool pana, hamesha jonk ki tarah usse chipte rahna—yah bhi ghalat hai barma se aate hue jab meri patni ki mirtyu hui thi, mujhe apni zindagi bekar si lagi thi aaj is baat ko arsa guzar gaya aur jaisa aap dekhti hain, main ji raha hoon; ummid hai ki kafi arsa aur jiunga zindagi kafi dilchasp lagti hai; aur yadi umr ki mazburi na hoti to shayad main dusri shadi karne mein bhi na hichakta iske bawjud kaun kah sakta hai ki main apni patni se prem nahin karta tha—aj bhi karta hoon
lekin doctor latika ka gala rundh aaya tha
kya miss latika
doctor, sab kuch hone ke bawjud wo kya cheez hai jo hamein chalaye chalti hai, hum rukte hain to bhi apne rele mein wo hamein ghasit le jati hai latika ko laga ki wo jo kahna chah rahi hai kah nahin pa rahi, jaise andhere mein kuch kho gaya hai, jo mil nahin pa raha, shayad kabhi nahin mil payega
ye to aapko father elmanD hi bata sakenge miss latika, doctor ki khokhli hansi mein unka purana sankipan ubhar aaya tha
achchha, chalta hoon, miss latika, mujhe kafi der ho gai hai, doctor ne diyasalai jalakar ghaDi ko dekha
good knight miss latika!
good knight doctor !
doctor ke jane par latika kuch der tak andhere mein railing se sati khaDi rahi hawa chalne se corridor mein jama hua kuhra sihar uthta tha sham ko saman bandhte hue laDkiyon ne apne apne kamre ke samne jo purani copiyon, akhbar aur raddi ke Dher laga diye the we sab, ab andhere corridor mein hawa ke jhonkon se idhar udhar bikharne lage the
latika ne lainp uthaya aur apne kamre ki or jane lagi corridor mein chalte hue usne dekha, juli ke kamre se parkash ki ek patli rekha darwaze ke bahar khinch i hai latika ko kuch yaad aaya wo kuch kshnon tak sans roke juli ke kamre ke bahar khaDi rahi kuch der baad usne darwaza khatkhataya bhitar se koi awaz nahin i latika ne dabe hathon se halka sa dhakka diya darwaza khul gaya juli lainp bujhana bhool gai thi latika dhire dhire dabe panw juli ke palang ke pas chali i juli ka sota hua chehra lainp ke phike aalok mein pila sa dikh raha tha latika ne apni jeb se wahi nila lifafa nikala aur use dhire se juli ke takiye ke niche dabakar rakh diya
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।