प्रेम के बारे में एक शब्द नहीं
prem ke bare mein ek shabd nahin
शहद के बारे में
मैं एक शब्द भी नहीं बोलूँगा
वह
जो बहुश्रुत संकलन था
सहस्र पुष्प कोषों में संचित रहस्य रस का
जो न पारदर्शी न ठोस न गाढ़ा न द्रव
न जाने कब
एक तर्जनी की पोर से
चखी थी उसकी श्यानता
गई नहीं अब भी वह
काकु से तालु से
जीभ के बीचों-बीच से
आँखों की शीतलता में भी वही
प्रेम के बारे में
मैं एक शब्द भी नहीं बोलूँगा।
- पुस्तक : कविता वीरेन (पृष्ठ 341)
- रचनाकार : वीरेन डंगवाल
- प्रकाशन : नवारुण
- संस्करण : 2018
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