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कृतज्ञता की तख्ती लेकर

kritagyta ki takhti lekar

खेमकरण ‘सोमन’

खेमकरण ‘सोमन’

कृतज्ञता की तख्ती लेकर

खेमकरण ‘सोमन’

और अधिकखेमकरण ‘सोमन’

    पेड़ खड़े हैं कृतज्ञ भाव से

    धूप के चेहरे पर भी है तेज

    और कृतज्ञता की हरियाली

    पानी दिख जाता है धरती पर हर जगह

    शालीनता और कृतज्ञता की तख्ती लेकर

    किसी भी रूप में ढलने के लिए

    नदी बही जा रही है कृतज्ञता से

    छल है मन में—

    कपट, चमचागिरी

    उसका सरल-सुंदर रूप देखकर,

    सैकड़ों जीव-जन्तु भी हैं कृतज्ञ

    उसके प्रति

    फल, फूल-फसलें,

    सूरज, चाँद, सितारे, समुद्र, माटी

    पहाड़ भी पढ़ रहे हैं कृतज्ञता के पाठ

    बाकी बचा आसमान तो

    वह पहले ही पढ़ चुका है कृतज्ञता के सभी अध्याय

    और विचार-विमर्श

    आग भी तो कृतज्ञ है

    दिखती नहीं है पर होती है प्रत्येक जगह

    बिलकुल हवा की तरह,

    ज़िंदगी उगाने के लिए

    तभी छोड़कर नहीं जाती है कभी किसी को

    सुबह, दोपहर, शाम और शांत रातें

    सबके हाथों में डायरी

    जिसमें लिखा हुआ है— हम सब कृतज्ञ हैं

    ये किनके प्रति कृतज्ञ हैं?

    और किनका किससे संबंध है?

    ये सब ये जानें

    मैं तो बस यह कहना चाहता हूँ

    कि मेरे ऊपर से दुख की चादर हटाकर

    आपने जिस प्रकार मुझे छुआ—

    मुझे भारी विश्वास और सुख का एहसास हुआ

    बस तभी से हूँ मै—

    कृतज्ञ आपका।

    स्रोत :
    • रचनाकार : खेमकरण ‘सोमन’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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