हे मृत्यु

he mirtyu

आरुद्र

आरुद्र

हे मृत्यु

आरुद्र

और अधिकआरुद्र

    पिछले साल धुले

    मटमैले रविवार को

    किसी किसी प्रकार लपेट कर

    जल्दी-जल्दी पहने

    शनिवार पर

    भीतर तक खोंस कर,

    खुले बादलों की परतें

    झाँकने योग्य खोल कर

    बंद कर

    किरणों को बुझा कर

    खिड़कियों को बंद कर

    दीप की रोशनी कम कर

    एन. जी. ओ. (अराजपत्रित कर्मचारी) सूर्य

    क्या कर रहा है?

    क्या देख रहा है?

    बीम के नीचे लटकने वाली

    कालरूपी रस्सी को तीन लड़ियों में क्यों बाँट रहा है?

    जाँच-पड़ताल के लिए आने वाले

    अधिकारियों के

    आगमन के लिए पहने हुए भेस में

    दिन के कमरे की अँधकार की देशी स्याही में

    तर्जनी डुबो कर

    कुछ झाड़ कर

    गच निकली बेडरूम की चौथाई-ताव फर्श पर

    क्या लिख रहा है?

    लिखा

    काटा

    ग़लतियों से भरा यह आवेदन-पत्र काम आएगा?

    धोबी के पास टूट निकल गए

    तारक रूपी काठ के बटन वाली कालरात्रि है

    यह अल्पाका कोट

    हड़बड़ी में उल्टे-पुल्टे

    पहन कर

    निकाल कर

    फिर पहन कर

    नौकरी से हटाया गया सूर्य

    क्या कर रहा है?

    किसी साहब के हाथ

    पकड़े जाने के भय से

    ताक रहा है।

    अजी! मृत्यु जी!!

    बाल-बच्चों वाला हूँ, कृपा कीजिए

    किराए पर रहते हुए

    इस जीवन के हिस्से का

    सच है

    शुरू से ही किराया नहीं दिया है।

    अजी! मृत्य जी!!

    त्योहार के समय तो अभिलाषाओं की दीवारों पर सफ़ेदी पुतवाइए!

    गिरे यौवन की चहारदीवारी की

    इस साल मरम्मत करवाइए!

    अब आगे सेक्स रूपी पापों के उपलों से

    दीवारों को ख़राब नहीं करूँगा! सच मानिए!!

    नोन-तेल की आवश्यकताओं के रसोईघर में

    ऊपर से दरिद्रता टपक रही है

    ज़रा देखिए तो सही

    सपनों के छज्जे से टपकती संतृप्ति-धारा को

    निद्रा रूपी घड़ों में भर लेने दीजिए!

    परिस्थितियों के खपरैलों को पुनः ठीक करवाइए

    आशय के मूल आसमान को चूम रहे हैं।

    किराया थोड़ा कम कर दीजिए!

    दया करके

    दूसरे हिस्सेदारों को

    त्याग की रंगोलियाँ सजाने के लिए कहिए।

    कुआँ तो थोड़ा गहरा कर दीजिए।

    डरिए मत

    (मैं कभी) उसमें कूद कर

    मरूँगा नहीं।

    स्मृतियों को पेटियाँ

    अनुभवों की गद्दियाँ

    इन्हें

    सड़क पर मत फिंकवाइए।

    भला होगा आपका

    हिसाब देख लेंगे अगले जनम में

    अबकी बार तो छोड़ दीजिए

    अजी? मृत्यु जी!!

    बाल-बच्चों वाला हूँ।

    कृपा किजिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द से शताब्दी तक (पृष्ठ 101)
    • संपादक : माधवराव
    • रचनाकार : आरुद्र
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी
    • संस्करण : 1985

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