सच बोलो, किसकी कन्या हो
sach bolo, kiski kanya ho
सच बोलो, किसकी कन्या हो
नाम तुम्हारा केन साँवरी
जिसके तुम पीछे बहती हो
मेरा ही घर और गाँव री
बचपन ने पहले तुमसे जब
मेरा यह परिचय करवाया
गहरी श्यामलता धारा की
देख-देखकर जी घबराया
लेकिन जब अपना कहलाने
वाले लोग हुए बेगाने
तब तुमने ही मेरे घायल
शिशु जैसे मन को दुलराया
फिर तो गाँठ जुड़ गई ऐसी
हम दोनों ज्यों धूप-छाँव री
पहले परिचय की घबराहट
धीरे-धीरे नेह बन गई
प्राणों की सूखी वृंदा पर
झरने वाला मेह बन गई
अब तो यह रेती, यह धारा
और शिला की अनगढ़ शैया
मेरे भीतर विकल चिरंतन
कलाकार का गेह बन गई
ऐसी अपनी प्रीति पुरातन
देती हो हर एक दाँव री
- पुस्तक : यह कैसी दुर्धर्ष चेतना (पृष्ठ 74)
- रचनाकार : कृष्ण मुरारी पहारिया
- प्रकाशन : दर्पण प्रकाशन
- संस्करण : 1998
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