रूप-नारान के तट पर
roop naran ke tat par
रूप-नारान के तट पर
जाग उठा मैं।
जाना, यह जगत्
सपना नहीं है।
लहू के अक्षरों में लिखा
अपना रूप देखा;
प्रत्येक आघात
प्रत्येक वेदना में
अपने को पहचाना।
सत्य कठिन है
कठिन को मैंने प्यार किया—
वह कभी छलता नहीं।
मरने तक के दुःख का तप है यह जीवन—
सत्य के दारुण मूल्य को पाने के लिए
मृत्यु में सारा ऋण चुका देना।
- पुस्तक : रवींद्रनाथ की कविताएँ (पृष्ठ 319)
- रचनाकार : रवींद्रनाथ टैगोर
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 1967
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