सरहद, बँटवारा और हत्यारों के शोक-संदेश
sarhad, bantwara aur hatyaron ke shok sandesh
आधी सदी उन्नीस सौ सैंतालीस
कुछ शरारतें बचाकर रख ली
उन्नीस सौ चौरासी तक पहुँचने के लिए
पहले तेज़ धार छुरी चलती है
फिर मंचीय शब्दों के भाषण नाटकीय अदा में
सियासत खेलती है शतरंज
ये भी मान्यवर, अग्रज
शोक और भय में काँप रहे हैं।
ये पवित्रता की श्वेतांबर चादरें
कहीं से तो आए ही होंगे वे सब
एक-दूसरे की जड़ों में सिर क़लम करने के वास्ते
कहीं से तो आए ही होंगे
अपने ही घरों के आसपास से
कहाँ थी गीता
कहाँ गुम थी क़ुरान
और ग्रंथ उसे तो आपने हमने
रुमाले में लपेटकर
अर्थों के अनर्थ कर
अरदास से सदैव, सर्दी के लिए जलावतन कर दिया
आधी सदी के नाम
पर ये शोक ये फ़रियादें
इतिहास के सत्य झूठ के साथ खेलने की
यह आपकी आदत
बहुत पुरानी है सनातनी
ये जो मुल्क है
मैं उस देश का मालिक नहीं
बेनाम निहत्था ग़ुलाम हूँ
यह आधी सदी का आज़ादी उत्सव
शोक-रोग, ये उनके अभियान की
उधड़ी तस्वीरें हैं
जिन्होंने तलाशी, तराशी लकीरें, बँटवारे
सरहदें और बेरौनक़ ध्वज
भीड़ को जोड़ने और
गुमराह करने के लिए
यह आज़ादी नहीं
फिर कोई चाल है नई
अंधी हो चुकी
आजादी के नाम पर
मुझे अपने जश्नों में
बिल्कुल शरीक मत करना।
- पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 256)
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2014
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