सेल्फ़ी
selfie
चमकते-लहकते लश्कर के बीच खड़ा
सेल्फ़ीमैन तानता है मोबाइल
ठीक इसी समय
दम तोड़ देती है एक बच्ची
भात से लंबी लड़ाई के बाद
ठीक इसी समय
क़त्ल कर दिया जाता है
सड़क पर अकेला आदमी
भीड़-जनता द्वारा पीट-पीटकर
ठीक इसी समय
बेटी बचाओ के सरकारी नारों के पोस्टर पर
कोई दरिंदा
चींथ डालता है एक मासूम की योनि
और साफ़ बच निकलता है
उसके लंगोट का रंग खोजती भीड़ के साथ
ठीक इसी समय
प्रमाण-पत्र जारी करती
रक्त प्यासी भीड़ के बीच
आस्था के झंडे में लपेट
उतारता है विमान से भाँड
कोई मुख्यमंत्री देश का
ठीक इसी समय
हो जाता है चंपत एक धनपति
लाखों की जेब काँख में दबा
ठीक इसी समय
बिक जाती है एक नदी
किसी शर्बत वाले के हाथों
ठीक इसी समय
एक और पहाड़ ख़रीद लेता है
धरती से लोहा चुराने वाला
एक व्यापारी
ठीक इसी समय
अपने वजूद की आख़िरी लड़ाई लड़ता
एक जंगल हो जाता है लहूलुहान
ठीक इसी समय
झूल जाते हैं हज़ारों किसान
क़र्ज़ के पेड़ से
आमदनी के चारगुनी होने के ख़्वाबी समाचार के बीच
ठीक इसी समय
पारित हो जाता है एक और अधिनियम
हो जाती है प्रजा और कम आज़ाद
ठीक इसी समय
क्लिक हो जाती है सेल्फ़ी
सेल्फ़ी में
मुस्कुराहट है
ख़ूबसूरती और मादकता है
सेल्फ़ी में नहीं है
कैमरे के पीछे का देश
- रचनाकार : ऋतेश कुमार
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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