ख़बर थी—
एक बीमार नेता ने, लंदन में
अंतिम साँस ली।
उधर यमदूत नेता को लेकर
नरक पहुँचे भी नहीं
उससे पहले चैनल का रिपोर्टर
लंदन पहुँच गया अपनी टीम लेकर
और नेता के बेटे का इंटरव्यू लिया—
“आपको कैसा लग रहा है?”
“जी, मैं कुछ समझा नहीं, क्या कैसा लग रहा है?”
“आपके पिताजी के मरने की ख़बर सुनकर”
“आपको कैसा लग रहा है?”
“जी, बहुत बुरा लग रहा है।”
“अंतिम साँस लेने से पहले
उन्होंने किसी दर्द या तकलीफ़ की शिकायत की थी?”
“जी नहीं। डायरेक्ट अंतिम साँस ली थी।”
“इससे पहले भी कभी
उन्होंने अंतिम साँस ली थी?”
“जी, कोशिश तो की थी
लेकिन डॉक्टरों ने लेने नहीं दी।”
“अंतिम साँस लेने के बाद क्या हुआ?”
“जी, अंतिम साँस लेने के बाद वो मर गए।''
क्या उनको पता था
कि अंतिम साँस लेने के बाद वे मर जाएँगे?”
“जी, पता था।”
“जब उनको पता था कि अंतिम साँस लेने के बाद
वे मर जाएँगे तो उन्होंने अंतिम साँस क्यों ली?”
“जी, राष्ट्रहित में ली।”
“उन्होंने राष्ट्रहित में अंतिम साँस ली,
यह आप कैसे कह सकते हैं?”
“जी, मैं ऐसे कह सकता हूँ कि
उन्होंने जो भी काम किया, वो या तो राष्ट्रहित में किया
या पार्टी के हित में किया।
अगर पार्टी के हित में किया।
अगर पार्टी के हित में अंतिम साँस लेते
तो चुनाव से ठीक पहले लेते,
सहानुभूति की लहर बनती,
दो-चार सीटें ज़्यादा मिलतीं
यानी पार्टी के हित में
अंतिम साँस नहीं ली।
इसका ये मतलब हुआ
कि उन्होंने राष्ट्रहित में अंतिम साँस ली।”
“वे लंदन क्यों आए?”
“जी, अंतिम साँस लेने के लिए आए।”
“वे ये अंतिम साँस भारत में भी ले सकते थे
इसके लिए इतनी दूर क्यों आए?”
“जी, राष्ट्रहित में आए।”
“आपने प्रधानमंत्री का वो बयान पढ़ा है
जिसमें उन्होंने कहा है कि नेता जी के जाने से
राष्ट्र का बड़ा नुक़सान हुआ है?”
“जी पढ़ा है।”
रिपोर्टर के चेहरे पर एक चमक-सी आई
उसने प्रधानमंत्री के बयान में सेंध लगाई :
“आप कह रहे हैं उन्होंने राष्ट्रहित में
अंतिम साँस ली और प्रधानमंत्री कह रहे हैं
कि उनके जाने से राष्ट्र का बड़ा नुक़सान हुआ है!
अब सवाल ये उठता है कि राष्ट्रहित में
अंतिम साँस ली तो राष्ट्र का नुक़सान कैसे हुआ?
फ़ायदा होना चाहिए!
फ़ायदा क्या हुआ
ये प्रधानमंत्री को बताना चाहिए।
और क्या इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए?
सरकारी ख़र्चे पर डायलिसिस के सहारे जीवित
निकम्मे नेताओं को राष्ट्रहित में मरने के लिए
आगे आना चाहिए?
बहरहाल, ये हैं कुछ अनसुलझे सवाल।”
वो आँधी की तरह आया
और तूफ़ान की तरह छा गया
कुछ सवाल किए
और जवाब लिए बिना ही
ब्रेक पर चला गया।
- पुस्तक : हास्य-व्यंग्य की शिखर कविताएँ (पृष्ठ 49)
- संपादक : अरुण जैमिनी
- रचनाकार : आश करण अटल
- प्रकाशन : राधाकृष्ण पेपरबैक्स
- संस्करण : 2013
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