विवश होकर
मैं महानगरीय संस्कृति को कुछ इस तर्ज़ पर पाना चाहता था
कि वहाँ बेरोज़गारों का भी मन लगा रहे
और इसलिए मैं एक अवसाद पर एकाग्र होना चाहता था
लेकिन विवश होकर मुझे एक पत्रकार बनना पड़ा
बाद इसके सच को व्यक्त करने में ज़्यादा समय लगता है या झूठ को
यह सोचने का भी वक़्त नहीं बचा मेरे पास
अब वह वक़्त याद आता है जब वक़्त था
और एक ऐसे घर की भी याद आती है
जो कहीं कभी था ही नहीं
और कभी-कभी वे स्थानीयताएँ भी बेतरह याद आती हैं
जहाँ मैं एक पुनर्वास में बस गया था
इतने निर्दोष और बालसुलभ प्रश्न थे मेरे नज़दीक़
कि मैं उत्तरों पर नहीं केवल विकल्पों पर सोचा करता था
में
अख़बार में चरित्र होना चाहिए
चरित्र में कविता
कविता में भाषा
और भाषा में अख़बार
दो
माता ऐसी दो जैसी दूसरी न हो
पिता ऐसा दो जो घर से बाहर हो
पत्नी ऐसी दो जो मनोरमा हो
पति ऐसा दो जो श्रवणशील हो
बहन ऐसी दो जो चरित्रचिंतणी हो
भाई ऐसा दो जो शुभाकांक्षी हो
विचार ऐसा दो कि कुछ विवाद हो
और अख़बार ऐसा दो कि दिन बर्बाद हो
शोर का कारोबार
वहाँ बहुत शोर था
और बहुत कारोबार
इस वजह कविताएँ रचने के लिए
मैं अतीत में जाना चाहता था
ग़रीबी गर्वीली नहीं थी मेरे लिए
मुझे उससे भयंकर घृणा थी
इस वजह कविताएँ रचने के लिए
मैं अतीत में जाना चाहता था
प्रेम पवित्र नहीं था मेरे लिए
मुझे बस उससे आनंद की गंध आती थी
इस वजह कविताएँ रचने के लिए
मैं अतीत में जाना चाहता था
इस क़दर अतीत में कि
मुझे आग के लिए
पत्थरों की ज़रूरत पड़ती
और शिश्न ढँकने के लिए पत्तों की
अच्छी ख़बर
वे ख़बरें बहुत अच्छी होती हैं
जिनमें कोई हताहत नहीं होता
आग पर क़ाबू पा लिया गया होता है
और सुरक्षा व बचावकर्मी मौक़े पर मौजूद होते हैं
वे ख़बरें बहुत अच्छी होती हैं
जिनमें तानाशाह हारते हैं
और जन साधारणता से ऊपर उठकर
असंभव को स्पर्श करते हैं
वे ख़बरें बहुत अच्छी होती हैं
जिनमें मानसून ठीक जगहों पर
ठीक वक़्त पर पहुँचता है
और फ़सलें बेहतर होती हैं
वे ख़बरें बहुत अच्छी होती हैं
जिनमें स्थितियों में सुधार की बात होती है
जनजीवन सामान्य हो चुका होता है
और बच्चे स्कूलों को लौट रहे होते हैं
वे ख़बरें बहुत अच्छी होती हैं
इतनी अच्छी कि शायद ख़बर नहीं होतीं
इसलिए उन्हें विस्तार से बताया नहीं जाता
लेकिन फिर भी वे फैल जाती हैं
उप संपादिका
वह अक्सर पूछती है :
अकसर में आधा ‘क’ होता है कि पूरा
मैं बिल्कुल भ्रमित हो जाता हूँ
बिलकुल में आधा ‘ल’ होता है कि पूरा
अक्सर बिलकुल
बिल्कुल अकसर
समाचार संपादक
इराक़ में छोटी ‘इ’
और ईरान में बड़ी ‘ई’
कुछ मात्राएँ शाश्वत होती हैं कभी नहीं बदलतीं
जैसे
तबाही का मंज़र
उ ऊ
करुणा बहुत बड़ा शब्द है
लेकिन मात्रा उसके ‘र’ में
छोटे ‘उ’ की ही लगती है
रूढ़ि बहुत घटिया शब्द है
लेकिन मात्रा उसके ‘र’ में
बड़े ‘ऊ’ की लगती है
जो जागरूक नहीं होते
वे जागरूक के ‘र’ में
छोटा ‘उ’ लगा देते हैं
लेकिन जागरूक होना बेहद ज़रूरी है
और इसकी शुरुआत होती है
जागरूक के ‘र’ में बड़ा ‘ऊ’ लगाने से
और अगर एक बार यह ज़रूरी शुरुआत हो गई
तब फिर शुरुआत के ‘र’ में
कोई बड़ा ‘ऊ’ नहीं लगाता
और न ही ज़रूरी के ‘र’ में छोटा ‘उ’
सांप्रदायिक वक्तव्य
‘सांप्रदायिक’ मैं हमेशा ग़लत लिखता हूँ
और ‘वक्तव्य’ भी
सांप्रदायिक वक्तव्य मैं ग़लत लिखता हूँ
मैं ग़लत लिखता हूँ सांप्रदायिक वक्तव्य
मैंने कहा
मैंने कहा : साहस
उन्होंने कहा : अब तुम्हारे लायक़ यहाँ कोई काम नहीं
मैंने कहा : एक इस्तीफ़ा भी रचनात्मक हो सकता है
उन्होंने कहा : ‘रचनात्मकता’ वह तो कब की ख़त्म कर चुके हम
अब केवल इस्तीफ़ा ही बचा है तुम्हारे पास
- रचनाकार : अविनाश मिश्र
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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