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दरवाज़ा

darwaza

लनचेनबा मीतै

और अधिकलनचेनबा मीतै

    दरवाज़ा खुला है!

    खुला है बंद दरवाज़ा?

    खोलोगे नहीं तो देख कैसे पाओगे

    ज़मीन पर पड़े

    लाल गुलाब की चुड़ी टहनी पर मंडराती

    काले कपड़े पहने भौंरों की भीड़ में से

    असंख्य काँटों से बिंधे

    अनेक भौंरो के रक्तरंजित शव?

    पालने से श्मशान की आवाजाही के बीच

    गा रहा एक अजनबी मधुर गीत

    एकत्र कर मन में सारे सुख

    तुम सुनते यह गीत भाव विभोर हो

    सोचा भी है कभी तुमने

    लोरी है यह कोई या है जागरण-गीत?

    जानता हूँ मैं

    इस बंद दरवाज़े को खोलने के बारे में

    सोचा ही नहीं तुमने कभी;

    क्योंकि

    नहीं है तुम्हारे पास साहस

    इस पुराने भवन में

    रंग-रंग के मकड़ों ने पूर दिया कपट-जाल

    छिपे-छिपे और खुलेआम

    बने रहो समझ कर नासमझ तुम देखकर देखने वाले

    ये अँधेरे से कमरे ही हैं तुम्हारे अकेले के

    अपने अँधेरे संसार में घूमो सब कमरों में

    वही है तुम्हारे जीवन का लक्ष्य

    तुम्हारे जीने का अर्थ

    यदि किसी क्षण

    एक बड़ा मकड़ा

    आए तुम्हारी ओर खोले पूरा मुँह

    डरना मत करना संदेह

    वही होगा तुम्हारा ईश्वर, अल्लाह, ईसा

    उसके ख़ाली पेट में घुस जाना

    कोशिश करना उसकी धमनियों और मांस-मज्जा में घुसने की

    शायद हो तुम्हारा पुनर्जन्म।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुझे नहीं खेया नाव (पृष्ठ 34)
    • संपादक : देवराज
    • रचनाकार : लनचेनबा मीतै
    • प्रकाशन : हिंदी लेखक मंच, मणिपुर
    • संस्करण : 2000

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