प्रेम के मेनिफ़ेस्टो का ख़ाली काग़ज़
prem ke menifesto ka khali kaghaz
एक
मैं प्रेम का मेनिफ़ेस्टो लिखने बैठता हूँ
एक पतंग की डोर हाथों में आती है
माँझा मेरे सीने को काटता
हाथ से छूट जाता है
मैं सबसे पहले दर्द की मरम्मत में लग जाता हूँ
इस तरह मेनिफ़ेस्टो नहीं लिखा गया
उधार ली एक ज़मीन पर
मैं पेड़ लगा रहा हूँ
ज़मीन मेरी नहीं है
पेड़ मेरे हैं
पेड़ की जो छाया ज़मीन पर पड़ेगी
वह हमारी होगी
और फल आने वाले वक़्त के
एक रजिस्ट्री है इस छाया की
बिना किसी नाम के
समूची दुनिया के लिए
थोड़े-से आकाश के नीचे
एक पेड़ खड़ा है
पेड़ के नीचे एक प्रेमी है
प्रेमी के ऊपर प्रेयसी का दुपट्टा
आकाश पेड़ के ऊपर से नीचे उतरकर
प्रेमी के ऊपर आ जाता है
थोड़ा-सा आकाश पिघल जाता है
थोड़ा-सा प्रेम आकाश बन जाता है
इस थोड़ेपन में एक बूँद गिरती है
यह थोड़ापन गल जाता है
पेड़ से दीमक की मिट्टी धुल जाती है
थोड़ी मिट्टी को दुपट्टा छान देता है
थोड़े पानी को आकाश रोक लेता है
अब कुछ थोड़ा भी नहीं बचता
पूरा ख़ालीपन है—
दो व्यक्तियों के बीच
दो व्यक्ति कोई भी हो सकते थे
दुपट्टे का होना ज़रूरी नहीं था
जब-जब दुपट्टा हटेगा
आकाश धड़ाम से गिरेगा
पानी सन्न से वाष्प बनेगा
प्रेम धम्म से गिर जाएगा
अतः दुपट्टे का ढकना
अनचाही हत्या के निमंत्रण से बचाता है
जंगले की सलाख़ों पर जमी काली परत
जंगले के उस पार रास्ता है
जंगले के इस पार
खड़कते बर्तन हैं
खटिए पर पड़ी किताब है
इनके बीच नाक-कान-नज़रें हैं
जो ख़ुद को जंगले पर टाँगे हुए हैं
मैं उस रास्ते से गुज़रने वाला पहला नहीं हूँ
वह उस पार बैठी पहली नहीं है
ये मेरी नितांत कल्पना नहीं है
यह कल्पना से थोड़े पीछे की बात है
यह शहर बनने के पहले की बात है
एक उदास सड़क पर
पीली रोशनी तले
सिगरेट का धुआँ है
तुम्हारे चेहरे को ढके हुए
मैं इस पार से
तुमसे सिगरेट छीनकर
तुमसे लड़ना चाहता हूँ
पर बैग के पट्टे को रगड़ता आगे बढ़ जाता हूँ
आगे बढ़ना पहली बार दुर्भाग्य इस तरह बनता है
इस तरह शुरुआत होती है
गाँव की शहर से दूरी
इसी तरह खेत बिल्डिंग को देख
चुप रह जाते हैं
इसी तरह हवा सिगरेट के धुएँ को
गाँव तक लाते-लाते
गंगा दशहरा पर खेतों में उठती है
और इसी तरह पैदा होता है
गाँव में शहर से लौटे शख़्स का अकेलापन
नदी में पत्थर मारकर मैं
यादों को तिलांजलि देता हूँ
एक प्रेत वहाँ से पीछा करता आता है
मेरे तकिये तले छुप जाता है
अपने करवटों के निशान पर
तुम्हें ढूँढ़ता हूँ
प्रेत मुस्कुराता है
थोड़ी-सी ज़मीन में
थोड़े आकाश की परछाईं होती है
दुपट्टे के कुछ रेशे एक घड़े में होते हैं
किताब का एक पन्ना
पन्ने पर बार-बार काटा गया
एक जमा एक बराबर एक ही नाम
और धुएँ की राख
मेनिफ़ेस्टो का ख़ाली काग़ज़
प्रेत का वस्त्र है।
दो
मेनिफ़ेस्टो के वस्त्र पर
नहीं दर्ज एक भी हर्फ़
न एक निशान
जैसे क़ायम हैं प्रकृति के निशान
पर्वतों और पठारों को चीरती नदी की भाँति
मेरे हाथों पर कुछ लकीरें हैं
जिन्हें मैं घिस रहा हूँ
तुमसे मिलने की ख़ातिर
और संसार मुझे पागल कह रहा है
मैं पर्वतीय दुर्भाग्य का चलता-फिरता रूप हूँ
इस कमरे के चारों ओर टँगे हैं सफ़ेद काग़ज़
जिसे मेरे घरवालों ने जला दिया है
मैं प्रेम की राख से उपजने वाला व्यक्ति हूँ
मैं पूरे जहान का मुँह काला करूँगा
अगर झाँक सको इस कुएँ में
जो मेरे भीतर सूख रहा है
तो तुम्हें सदियों का चेहरा दिखेगा
तुम्हें दिखेगा कि कहीं न कहीं
कोई कृष्ण है
राधा है
आदम है
हौवा है
दुःख यह कि यह कुआँ सूख रहा है
और लोगों के चेहरे की कालिख
और काली हो रही है
इस काग़ज़ के सिरे जो पहली क़लम चली थी
उसकी नोक तोड़ने की नाकाम कोशिश
सबसे पहले ईश्वर ने ही की थी
और निकाले गए थे स्वर्ग से प्रेमी
मैंने देखा तो नहीं है पर यक़ीनन
इस काग़ज़ पर जो आख़िरी क़लम चलेगी
वह उतार सकती ईश्वर को उसके आसन से
एक बिंदु पर एकत्रित किरणें
जला देती हैं काग़ज़ को
मध्य में छूट जाता है जलने का निशान
आज तक इकट्ठा नहीं हुए सभी प्रेमी
उनके मध्य नहीं ली गई
कोई टेनिस कोर्ट की शपथ
मैं उनके इंतिज़ार में इस मैदान में बैठा हूँ
और सूरज को अपना चक्कर लगाते देखता हूँ
मुझे पता है कि एक दिन
जब लोग काट रहे होंगे
एक दूसरे का गला
जब हथियार ही रहेंगे आभूषण
तो मेनिफ़ेस्टो के पन्नों पर हस्ताक्षर करने
यहाँ सभी प्रेमी आएँगे
जब दुनिया कसेगी अपनी औलादों पर
ईमानदार होने का व्यंग्य
दोस्त हँसेंगे दोस्तों पर
इतना सीधा-सादा होने के लिए
और बजेगी हर राष्ट्र की सीमा पर
जब युद्ध की गगनभेदी दुंदुभी
मैं आह्वान करूँगा प्रेम का
उस दिन ख़ाली काग़ज़ पर सफ़ेद स्याही से
एक बात दर्ज होगी
कि कुछ नहीं होता प्रेम में
सिवाय प्रेम के
यह लिखते हुए मैं
तुम्हारी आँखों को सोचता हूँ
जिनकी सजीवता की हत्या हो चुकी है
और प्रेत अपने वस्त्र को त्याग रहा है
दूसरे वस्त्र को धारण करने के लिए।
- रचनाकार : उज्ज्वल शुक्ल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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