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आत्महत्या से पहले एक क़र्ज़िया का बयान

atmahatya se pahle ek qarziya ka byan

मुकेश निर्विकार

मुकेश निर्विकार

आत्महत्या से पहले एक क़र्ज़िया का बयान

मुकेश निर्विकार

और अधिकमुकेश निर्विकार

    क़र्ज़ में आकंठ डूबे हुए

    उसने तड़पकर चाहा

    काश! सारी समस्याओं के समाधान

    मुद्रा के रास्ते जाते!

    काश! वे जाते उसकी हाड़-तोड़ मेहनत की राह,

    काम के प्रति उसके समर्पण की राह,

    उसकी उगाई फ़सल की राह

    उसकी अपनाई नैतिकता और सदाचार की राह

    उसके द्वारा की गईं पूजाओं और प्रार्थनाओं की राह

    किंतु वे जा रहे हैं

    (उसने आह भरी)

    मुद्रा के रास्ते

    साहूकार की बही में

    उसके जीवन को क़ैद करने के लिए

    काश! धरती के गर्भ में ही छुपा रह जाता कोई बीज

    उसकी समस्याओं के समाधान का

    कोई रूखड़ी जिसे चबाकर पा लेता वह निजात

    क़र्ज़ की समस्या से

    जैसे पा लेता है व्याधियों से मुक्ति

    घरेलू नुस्ख़ों को अपनाकर

    वह आहत था यह सोचकर कि

    आख़िर क्यों मुद्रा में उलझकर

    रह गई हैं उसकी साँसें?

    आख़िर क्यों जकड़ लिया है।

    मुद्रा ने उसका जीवन?

    इस क़दर कि जिसके पास नहीं है मुद्रा

    उसके पास नहीं बचता है जीवन

    उसे करनी पड़ती है आत्महत्या

    जबकि धरती पर क़तई निःशुल्क हैं

    देह के संजीवनी तत्त्व

    हवा-पानी-धूप-आकाश-मिट्टी

    मुद्रा के अभाव में

    हल की मूँठ पकड़े किसान के पैरों से

    निकल जाती है उसकी ज़मीन

    खेत में उसकी उगाई फ़सल भी नहीं रह जाती है

    उसकी अपनी

    क्या हम आँकड़ों (मौद्रिक आँकड़ों) की गिरफ़्त में

    फँस गए हैं बुरी तरह

    ईश्वर के साम्राज्य से परे!

    उसने महसूस किया और बुदबुदाया—

    कविता के लिए मैं भले ही प्रिय हूँ

    किंतु मुद्रा के लिए मैं निरा-अपराधी हूँ

    स्वाभाविक है कि संसार और समाज के लिए भी

    मुझे खेद है कि कविता का क़त्ल करके

    जो कि संवेदना की वाहक है,

    कमानी थी मुझे मुद्रा, निष्ठुरतापूर्वक

    जो मुझसे हो सका

    किंतु कविता में मात्र संवेदना थी

    कविता के पास नहीं थी रोटी!

    मुद्रा के अभाव में क़र्ज़ से दबे हुए

    अब तो उसे मृत्यु ही भली लगती है।

    जब ज़मीर धिक्कारता है

    समाज नकारता है

    चैन पाते हैं उसके आकुल-व्याकुल प्राण

    केवल मृत्यु की कल्पना में

    उसने याद किया कि

    वह भी हँसना चाहता था

    सच्ची हँसी

    लेकिन उसकी हँसी में

    क़र्ज़ की लाचारी थी

    मुद्रा के अभाव में

    सर्वथा विकल्पहीन पाया उसने

    ख़ुद को

    उसने महसूस किया कि

    क़र्ज़दार इंसान को

    नहीं रह जाता है हक़

    इस दुनिया में

    पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के

    उपभोग का

    धरती पर मुद्रा में बिकने लगे हैं

    जीवन के तमाम अवयव!

    देह के कलेवर में

    छुपे रहो तुम

    कायरतापूर्वक

    डरपोक मेमने की तरह!—

    उसने धिक्कारा

    मुद्रा के भंडारों में छुपे लोगों को

    और जीवन को निहारा

    भरपूर हसरत से

    वह सचमुच जीना चाहता था!

    यह दुनिया कितनी तंग और विकल्पहीन है,

    बेगानी भी

    यह किसी क़र्ज़दार इंसान से पूछो!—

    हम ज़िंदा लोगों के लिए

    मरने से पहले

    यह उसका अंतिम बयान था!

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रार्थनाएँ कुछ इस तरह से करो (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : मुकेश निर्विकार
    • प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
    • संस्करण : 2023
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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